हल्द्वानी की इस वन वाटिका में हर अंग के रोग की दवा, बोर्ड में लिखा है पौधों के इस्तेमाल का तरीका
दुर्लभ वनस्पतियों को संरक्षित करने वाले वन अनुसंधान केंद्र ने नक्षत्र वाटिका के बाद अब एक अलग ही तरह की वाटिका तैयार की है।
By Skand ShuklaEdited By: Updated: Thu, 19 Dec 2019 11:06 AM (IST)
हल्द्वानी, जेएनएन : दुर्लभ वनस्पतियों को संरक्षित करने वाले वन अनुसंधान केंद्र ने नक्षत्र वाटिका के बाद अब एक अलग ही तरह की वाटिका तैयार की है। हल्द्वानी एफटीआइ स्थित नर्सरी में बनी इस वाटिका में शरीर के अलग-अलग अंगों के मर्ज में लाभदायक मानी जानी वाली औषधियां तैयार की गई हैं। इसे 'मानव अंग वाटिका' का नाम दिया गया है। सिर, पेट, श्वांस, त्वचा के अलावा हड्डी रोग से संबंधित अलग-अलग बीमारियों को ठीक करने वाले औषधीय पौधे यहां तैयार हो चुके हैं। इन पौधों को अलग-अलग नर्सरियों में तैयार किया जाता है। बकायदा बोर्ड लगाकर लोगों को हर पौधे का नाम और महत्व भी बताया गया है। इन्हें लेने के लिए दूर-दराज से लोग पहुंच भी रहे हैं।
पौधा इस अंग में फायदेमंद ब्राह्मी मस्तिष्क
वासा-दमबेल फेफड़ा
कासनी-मकोय यकृत
कासनी, पुनर्नवा व गोखरू गुर्दाचिरायता-नीम रक्तशोधक व संक्रमण नाशकगोखरू-पत्थरचूर मूत्राशयघृतकुमारी त्वचानिर्गुंडी मांसपेशी विकारऑक एड़ीभृंगराज-रीठा बाल
आंवला-राखी बेल नेत्रबज्रदंती-अकरकरा दांतअर्जुन हृदयहरड़-काफल आमाशयबेल, इसबगोल-लेमनग्रास पाचन तंत्रशतावर नाड़ी संस्थानपारिजात, मेदा, हडज़ोड़ घुटना व हड्डी रोगसौ औषधियां खोज चुका अनुसंधान
हिमालयी, निचले क्षेत्र व मैदानी भाग में मिलने वाली उन वनस्पतियों पर वन अनुसंधान केंद्र लंबे समय से काम कर रहा है, जिनका किसी भी रूप में औषधीय महत्व है। अभी तक सौ से अधिक प्रजातियों की खोज कर उन्हें संरक्षित किया जा चुका है। शोधार्थियों को फायदा औषधीय गुणों वाली हर प्रजाति के आगे अनुसंधान केंद्र ने नाम व इस्तेमाल करने का तरीका लिखा है। अक्सर शोधार्थी यहां पहुंच जानकारी जुटाते हैं। अब वाटिका के व्यवस्थित होने पर बार-बार वनकर्मी को बुलाने की जरूरत नहीं पड़ेगी। बोर्ड व पौधों के आगे रखी नेमप्लेट से हर जानकारी मिल जाएगी।
मानव अंग वाटिका का किया गया निर्माण मदन बिष्ट, प्रभारी वन अनुसंधान केंद्र हल्द्वानी ने बताया कि उच्चाधिकारियों के निर्देश पर मानव अंग वाटिका का निर्माण किया गया है। यहां कोई भी आकर औषधीय पौधों का निरीक्षण कर सकता है। अनुसंधान केंद्र उन्हें हर तरह की जानकारी देगा। प्रजातियों की संख्या और बढ़ाई जाएगी।यह भी पढ़ें : आग के छल्ले की तरह नजर आएगा साल का आखिरी सूर्यग्रहण, दक्षिण भारत में देखा जा सकेगा
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