मोटे अनाज : उत्तराखंड में रकबा घटा, लेकिन तीन वर्ष में दोगुना बढ़ गई डिमांड
Mota Anaj मोटे अनाजों को लेकर जागरूकता बढ़ गई है। इसी अनुरूप डिमांड भी बढ़ रही है। अब घरों में ही नहीं बल्कि रेस्टोरेंट्स में भी मोटे अनाज से बने भोजन आर्डर किया जाने लगा है लेकिन पिछले कुछ वर्षों से इसका रकबा लगातार कम होता जा रहा है।
By Himanshu JoshiEdited By: Skand ShuklaUpdated: Wed, 09 Nov 2022 11:57 AM (IST)
जागरण संवाददाता, हल्द्वानी : स्वाद और ऊपरी चमक-दमक की वजह से चलन से बाहर होने की कगार पर खड़े मोटे अनाज (Millets) की डिमांड पिछले तीन वर्षों में दोगुना बढ़ गई है। परंतु राज्य गठन के 22 वर्ष बाद भी सरकार और विभागीय प्रयास रकबा बढ़ा पाने में नाकाम रहे हैं।
मोटे अनाजों को लेकर जिस तरीके से जागरूकता बढ़ गई है। इसी अनुरूप डिमांड भी बढ़ रही है। अब घरों में ही नहीं, बल्कि रेस्टोरेंट्स में भी मोटे अनाज से बने भोजन आर्डर किया जाने लगा है, लेकिन पिछले कुछ वर्षों से इसका रकबा लगातार कम होता जा रहा है। इसका कारण खेती प्रति किसानों का मुंह मोडऩा बड़ा कारण है। वह गेहूं, चावल, चना, मटर, मसूर, सोयाबीन में ही लाभ की संभावनाएं देखते हुए अधिक उत्पादन कर रहे हैं।
नई पीढ़ी का भी रुझान खेती को लेकर नहीं दिखता। हमने बदलते समय के साथ ही पारंपरिक उपज और खानपान की घोर उपेक्षा की है। यही कारण है कि वर्ष 2001- 2002 में जहां हम एक लाख 31 हजार हेक्टेयर पर्वतीय भूमि में मंडुवे का उत्पादन करते थे। जो 2021-22 में सिमटकर 90 हजार हेक्टेयर रह गया है। इसी प्रकार झिंगुरे का उत्पादन क्षेत्रफल 67 हजार हेक्टेयर से घटकर 40 हजार हेक्टेयर हो गया है। इन दोनों ही अनाजों के उपज के क्षेत्रफल में राज्य गठन के बाद से करीब 35 प्रतिशत कमी हुई है।
मांग बढऩे में ये भी अहम कारण
मोटे अनाज में पौष्टिकता होने के साथ ही अनेक प्रकार के खाद्य-औषधीय गुण भी हैं। ये रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के साथ ही मधुमेह के रोगियों के लिए भी फायदेमंद है। मोटे अनाज में कैल्शियम आयरन, फास्फोरस, मैग्नीशियम, जस्ता, पोटेशियम, विटामिन बी-6 और विटामिन बी-3 पाया जाता है। यही वजह है कि प्रधानमंत्री मोदी ने कूनो में मोटे-अनाज का जिक्र करके लोगों का ध्यान एकाएक इस ओर खींचा था।
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