खटीमा, मसूरी और रामपुर तिराहा कांड ने बिगाड़ी थी मुलायम की छवि, बयानों से आहत हुए थे पहाड़ के लोग
Mulayam Singh Yadav was not in favor of Uttarakhand मुलायम अलग उत्तराखंड राज्य के पक्ष में नहीं थे? उनके सीएम रहते हुए ही आज से 27 साल पहले रामपुर तिराहा कांड हुआ था। राज्य आंदोलन के दौरान उस काली रात को आज भी पहाड़ लोग नहीं भूले हैं।
By Jagran NewsEdited By: Skand ShuklaUpdated: Mon, 10 Oct 2022 10:34 AM (IST)
नैनीताल, जागरण संवाददाता : Mulayam Singh Yadav Passed Away : भारतीय राजनीति के दिग्गज, उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री, पूर्व केन्द्रीय रक्षा मंत्री और सपा के संस्थापक रहे मुलायम सिंह यादव के निधन से देशभर में शोक की लहर है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि मुलायम अलग उत्तराखंड राज्य के पक्ष में नहीं थे? संयुक्त प्रदेश के दौरान उनके सीएम रहते हुए ही आज से 27 साल पहले रामपुर तिराहा कांड हुआ था। राज्य आंदोलन के दौरान उस काली रात को आज भी पहाड़ लोेग नहीं भूले हैं।
इन घटनाक्रमों ने बिगाड़ी छवि
- उत्तराखंड बनने से पहले 1994 में मुलायम सिंह यादव उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री थे। उस दौरान जल, जंगल, जमीन और पहाड़ से पलायन के मुद्दे को लेकर लोग अलग राज्य बनाने की मांग कर रहे थे। विरोध-प्रदर्शन तेज होने के कारण मुलायम सरकार की मुसीबत बढ़ती जा रही थी।
- इस दौरान मंडल कमीशन के बाद अन्य पिछड़ा वर्ग के लोगों को 27 फीसदी आरक्षण दिए जाने से संयुक्त प्रदेश के दाैरान पहाड़ी लोगों ने अलगज राज्य की मांग को और तेज कर दिया। उन्हें लग रहा था कि 27 फीसदी आरक्षण के चलते उनकी नौकरियों पर मैदानी इलाकों के लोग कब्जा कर लेंगे।
- अलग राज्य को लेकर आंदोलन तेज हुआ तो पूरे पहाड़ी इलाके में आंदोलन और विरोध प्रदशर्न तेज हो गए। इस बीच साल 1994 में सितंबर और अक्टूबर महीने में दो कांड हुए थे। पहले दो सितंबर को मसूरीकांड में छह आंदोलकारियों ने अपनी जान से हाथ धो दिया था। और दूसरा खटीमा कांड।
- एक सितंबर 1994 को खटीमा में भी पुलिस ने आंदोलन को खत्म कराने के लिए प्रदर्शनकारियों पर गोलियां बरसाईं थीं। इसके बाद एक सितंबर की रात ही संयुक्त संघर्ष समिति ने झूलाघर स्थित कार्यालय पर कब्जा कर लिया था और आंदोलनकारी वहीं धरने पर बैठ गए थे।
- दो सितंबर को नगर के अन्य आंदोलनकारियों ने झूलाघर पहुंचकर शांतिपूर्ण धरना शुरू कर दिया। रात से ही वहां तैनात सशस्त्र पुलिसकर्मियों ने बिना किसी पूर्व चेतावनी के मौन जुलूस निकाल रहे आंदोलनकारियों पर गोलियां बरसानी शुरू कर दीं, जिसमें छह आंदोलनकारी शहीद हो गए।
- खटीमा कांड के दौरान एक पुलिस अधिकारी की भी मौत हुई थी। अब ये वो पहली बड़ी हिंसा रही जिसने तब के सीएम मुलायम सिंह यादव की छवि को उत्तराखंड की जनता के मन में धूमिल कर दिया।
रामपुर तिराहा कांड
मसूरी और खटीमा कांड क बाद मुलायम सरकार के विरोध में आंदोलन और तेज हो गया। लेकिन मुलायम सिंह यादव उत्तराखंड पृथक राज्य के पक्ष में नहीं थे। अलग उत्तराखंड की मांग कर रहे आंदोलनकारियों ने 2 अक्टूबर 1994 को दिल्ली के जंतर-मंतर पर प्रदर्शन करना तय किया। आंदोलनकारियों ने देहरादून से दिल्ली कूच करने का फैसला किया, लेकिन सरकार ने पहले से ही तय कर लिया था कि किसी भी सूरत में न्हें दिल्ली नहीं पहुंचने देना है।Mulayam Singh Yadav was not in favor of Uttarakhand : आंदोलनकारियों को रोकने के लिए पहले नारसन बार्डर पर पुलिस ने नाकाबंदी की, लेकिन यहां पर आंदोलनकारियों के आगे पुलिस प्रशासन बेबस हो गया। इसके बाद गढ़वाल और कुमाऊं के आंदोलनकारियों का काफिला दिल्ली की तरफ बढ़ा तो मुजफ्फरनगर के रामपुर तिराहा पर पुलिस ने जबरदस्त नाकाबंदी कर रखी थी।
प्रशासन के निर्देशों का पालन करने के लिए पुलिस ने प्रदर्शनकारियों को रामपुर तिराहा पर रोक दिया। प्रदर्शन में छात्र थे, बड़े थे और महिलाएं थीं। ऐसे में उन्हें आगे जाने से रोका गया तो नाराजगी इस कदर बढ़ी कि पत्थरबाजी शुरू कर दी गई। फिर उस पत्थरबाजी का जवाब पुलिस ने अपनी लाठी और गोलियों से दिया। पुलिस की गोलियों से सात आंदोलनकारी शहीद हो गए थे। इस घटना ने उत्तराखंड के लोगों से मुलायम सिंह यादव को दूर कर दिया।
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