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प्रकृति ने दिए बदलाव के संकेत, भादो में फलने लगा चैत्र का काफल

पहाड़ में चैत-बैसाख में होने वाला फल अब भादो (भाद्रपक्ष) ‘का फल’ हो गया है। वनस्पति के फलीकरण में हुए औचक परिवर्तन से पर्यावरणविद् चिंतित व वनस्पति विशेषज्ञ भी हैरान हैं।

By sunil negiEdited By: Updated: Sat, 27 Aug 2016 09:01 AM (IST)
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हल्द्वानी, [अंकुर शर्मा]: प्रकृति ने बदलाव के संकेत देने शुरू कर दिए हैं। सूबे के मौसम व जलवायु चक्र में तेजी से परिवर्तन होने लगा है। इस परिवर्तन ने मैदान के साथ-साथ पहाड़ के पारिस्थितिकी तंत्र को भी प्रभावित करना शुरू कर दिया है। इस प्रभाव की वजह से पहाड़ में चैत-बैसाख में होने वाला फल अब भादो (भाद्रपक्ष) ‘का फल’ हो गया है। वनस्पति के फलीकरण में हुए औचक परिवर्तन से पर्यावरणविद् चिंतित व वनस्पति विशेषज्ञ भी हैरान हैं।

उत्तराखंड की फिजाओं में गूंजने वाला प्रसिद्ध लोकगीत ‘बेडू पाको बारो मासा, काफल पाको चैता’ पहाड़ की संस्कृति की झलक व प्रकृति को दर्शाता है। इस गीत में बताया गया है कि पहाड़ का प्रसिद्ध फल ‘काफल’ हिंदू कैलेंडर के चैत मास यानि अप्रैल में पकता है। इधर नैनीताल जनपद के पहाड़ी क्षेत्र रामगढ़ में काफल अगस्त में पकने लगा है। अगस्त में काफल के पकने पर वनस्पति विशेषज्ञ व पर्यावरणविद् हैरान हैं।

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विशेषज्ञों के अनुसार वनस्पति जलवायु व मौसम के प्रति बेहद संवेदनशील होती हैं। जलवायु व मौसम में परिवर्तन वनस्पतियों को भी प्रभावित करता है। हर वनस्पति के बीज, कली, बौर, फलीकरण आदि में विशेष मौसम, वातावरण, परिस्थितियों की आवश्यकता होती है। इनमें किसी भी दशा में परिवर्तन होने पर वनस्पति में भी परिवर्तन होता है।

विशेषज्ञों की मानें तो प्राकृतिक संसाधनों के अंधाधुंध दोहन, तेजी से बढ़ रहे कंक्रीट के जंगल और वनों के कटान ने पहाड़ की जलवायु व मौसम चक्र में बदलाव किया है। इसका नतीजा सूबे के पारिस्थितिकी तंत्र में बदलाव हुआ है। इससे पहाड़ की वनस्पतियां भी प्रभावित हुई हैं। हाल ही में देहरादून की सेंटर फोर इकोलॉजिकल डेवलपमेंट एंड रिसर्च सेंटर की टीम ने रामगढ़ का दौरा किया। टीम ने वहां के वातावरण, जलवायु व मौसम में हो रहे बदलाव के बारे में भी जानकारी जुटाई। टीम ने वनस्पति में हो रहे इस बदलाव को प्रकृति के लिए बुरा संकेत बताया है।

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बुरांश भी लगा अगस्त में फूलने
बुरांश का वृक्ष पर जनवरी के अंतिम व फरवरी के पहले हफ्ते में फूल निकलते हैं। लेकिन पारिस्थितिकी तंत्र के बदलाव से अब मार्च-अप्रैल में इसमें फूल आने लगे हैं। यह बदलाव यही नहीं समाप्त हुआ है। पर्यावरण विशेषज्ञों के अनुसार अब बुरांश अगस्त में भी फूलने लगा है।

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वनस्पति चक्र में अवश्य हुई गड़बड़ी
सीडार के कोआर्डिनेटर व टीम मेंबर विशाल सिंह ने बताया कि लंबे आब्जर्वेशन के बिना कुछ कह पाना संभव नहीं है, लेकिन वनस्पति चक्र में गड़बड़ी अवश्य हुई है। हां इस साल बारिश में कमी व मौसम का उतार चढ़ाव जलवायु के परिवर्तन का उदाहरण है।

पारिस्थितिक तंत्र बिगड़ा
पर्यावरणविद प्रो. अजय रावत ने बताया कि हिमालयी राज्यों की जैव विविधता को समझे बिना ही पौधे लगाए जा रहे हैं। वनों का कटान, प्राकृतिक संसाधनों के दोहन से पारिस्थितिक तंत्र बिगड़ा है। इससे वनस्पति भी प्रभावित हुई है। प्रकृति के ये संकेत अच्छे नहीं हैं, हमें समय रहते चेतना होगा।

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