नैना देवी मंदिर में होता है मां की आंखों का पूजन, नेत्र रोगों से दिलाती हैं मुक्ति
उत्तराखंड का नैनीताल शहर अपनी खूबसूरत झील के साथ नैना देवी मंदिर के लिए भी विख्यात है। देश-विदेश से हर साल नैनीताल आने वाले लाखों पर्यटक नैना देवी मंदिर के दर्शन करना नहीं भूलते। यह मंदिर देवी के शक्तिपीठों में शामिल है।
हल्द्वानी, जेएनएन : उत्तराखंड का नैनीताल शहर अपनी खूबसूरत झील के साथ नैना देवी मंदिर के लिए भी विख्यात है। देश-विदेश से हर साल नैनीताल आने वाले लाखों पर्यटक नैना देवी मंदिर के दर्शन करना नहीं भूलते। यह मंदिर देवी के शक्तिपीठों में शामिल है। कहा जाता है कि अंग्रेज बैरन ने 1841 में नैनीताल में मां के स्वरूप को यहां पर देखा था। 1880 के विनाशकारी भूकंप में यह पूरा इलाका ध्वस्त हो गया। बाद में पूजा-पात्र, शंख आदि मिलने पर यहां मंदिर की स्थापना की गई। मंदिर की पुनस्र्थापना में स्थानीय निवासी अमरनाथ साह ने विशेष योगदान दिया। मां नयना देवी नेत्र रोगों से मुक्ति देती हैं।
सौ सालों से आयोजित हो रहा महोत्सव
स्थानीय निवासी मोतीराम साह ने 1903 में नंदाष्टमी के अवसर पर पहली बार भव्य महोत्सव की शुरुआत की। भाद्रपद मास की पंचमी को महोत्सव का आरंभ होता है। मूॢतयां बनाने के लिए गाजे-बाजे व जुलूस के साथ केले के वृक्ष लाए जाते हैं। षष्ठमी के दिन केले के तनों की पूजा-अर्चना करने के बाद सप्तमी को इनसे मां नंदा की मूॢतयां बनाई जाती हैं। अष्ठमी के दिन मंदिर में स्थापित कर प्राण प्रतिष्ठा की जाती है। दशमी के दिन मां नंदा के डोले के साथ नगर में विशाल शोभायात्रा निकाली जाती है। इस बार कोरोना के संक्रमण को देखते हुए आयोजन को प्रतीक स्वरूप मनाया जा रहा है।
सती के नयन गिरने से बनी नैना देवी
पौराणिक मान्यता के अनुसार दक्ष प्रजापति की बेटी उमा का विवाह महादेव के साथ हुआ। दक्ष प्रजापति शिव को पसंद नहीं करते थे। देवताओं के अनुरोध पर उन्होंने उमा का विवाह शिव के साथ कर दिया। एक बार दक्ष प्रजापति ने एक यज्ञ का आयोजन किया और शिव व उमा को आमंत्रित नहीं किया। देवी उमा जिद के कारण बिना बुलाए यज्ञ आयोजन में पहुंची। प्रजापति ने उन्हें व शिव को अपमानित किया तो उमा यज्ञअग्नि में कूद गईं। तब शिव ने सती उमा के जले हुए शरीर को कंधे पर लादकर आकाश में विचरना शुरू कर दिया। जहां-जहां सती के शरीर के अंग गिरे वहां शक्ति पीठों की स्थापना हुई। नैनीताल में सती का एक नयन गिरा था, दूसरा नयन हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर में गिरा। तब इसे नयना या नैना देवी के रूप में पूजा जाता है।