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नैनीताल जिले के सौ परिवारों वाला गांव शहद से बना आत्मनिर्भर, हर परिवार की मासिक आय 25 हजार

Beekeeping डिजिटल मार्केटिंग के माध्यम से भीमताल ब्लाक के ज्यालीग्राम के शहद की मांग अमेरिका ब्रिटेन और कतर तक में होने लगी है। पारंपरिक के साथ ही फ्लेवर्ड शहद को बच्चे भी खासा पसंद कर रहे हैं।

By Skand ShuklaEdited By: Updated: Fri, 17 Jun 2022 01:08 PM (IST)
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ज्योलीग्राम के ग्रामीण शहद उत्‍पादन, जैविक खेती, बकरी व मुर्गी पालन से प्रति माह कमा रहे 25 हजार

दीप चंद्र बेलवाल, हल्द्वानी : मधुमक्खी पालन नैनीताल जिले के एक गांव की आर्थिकी का बड़ा आधार बन गया है। भीमताल ब्लाक के ज्योलीग्राम के 100 परिवारों की जीविका मौन पालन पर ही निर्भर है।

रोजगार का माध्यम नहीं होने से सालों पहले गांव में उजाड़ जैसे हालात थे। कुछ लोगों ने घर छोडऩा शुरू कर दिया। मगर 12वीं पास उमेश पांडे की सोच ने गांव की तकदीर बदल डाली। वैसे तो उमेश खुद पिछले 35 साल से गांव में मौन पालन का काम कर रहे हैं।

कुछ लोगों ने घर छोडऩा शुरू कर दिया। मगर 12वीं पास उमेश पांडे की सोच ने गांव की तकदीर बदल डाली। वैसे तो उमेश खुद पिछले 35 साल से गांव में मौन पालन का काम कर रहे हैं।

उन्होंने पिछले 10 सालों में हर परिवार को मौन पालन के लिए प्रेरित किया। आज 100 परिवार वाले गांव में 95 परिवार मौन पालन कर स्वरोजगार को बढ़ावा दे रहे हैं। प्रति वर्ष करीब 300 कुंतल शहद का उत्पादन कर औसत 500 रुपये प्रति किलो के अनुसार बिक्री कर आर्थिक रूप से समृद्ध हो रहे हैं।

अब तो डिजिटल मार्केटिंग के माध्यम से यहां के शहद की मांग अमेरिका, ब्रिटेन और कतर तक में होने लगी है। पारंपरिक के साथ ही फ्लेवर्ड शहद को बच्चे भी खासा पसंद कर रहे हैं। शहद उत्पादन को देख गांव की पहचान अब मधु ग्राम के रूप में होने लगी है।

दैनिक जीवन में शहद का अर्थशास्त्र

दैनिक जीवन में शहद की मिठास घुली तो ज्योलीग्राम के परिवारों की आर्थिक स्थिति बेहतर हो गई। कल तक जो पाई-पाई के लिए मोहताज थे वह आज संपन्न जीवन व्यतीत कर रहे हैं। शहद से बदली व्यवस्था को कुछ ऐसे समझाते हैं। दरअसल, गांव में 90 परिवार मौन पालन से जुड़े हैं।वार्षिक उत्पादन 300 कुंतल को देखें तो ग्रामीणों की कुल आय 1.50 करोड़ रुपये होती है।

प्रत‍ि पर‍िवार वार्ष‍िक आय

औसत प्रति परिवार की हिस्सेसादारी करीब 1.66 लाख रुपये आती है। इसे मासिक आय में तब्दील करें तो यह रकम 13 हजार रुपये होती है। पहाड़ पर सामान्य परिवार के जीवन यापन के लिए यह रकम औसत रूप से बेहतर मानी जाती है। इसके साथ जैविक खेती, बकरी और मुर्गी पालन को जोड़ दें तो यह रकम बढ़कर करीब 25 हजार प्रति माह हो जाती है।

ऐसे तैयार होता है फ्लेवर शहद

उमेश पांडे व मनोज पांडे बताते हैं कि फसलों के सीजन में शहद को फ्लेवर युक्त बनाया जाता है। गांव में फारेस्ट हनी तैयार करते हैं। इसके अलावा लीची फ्लेवर शहद रामनगर व चकलुआ, जामुन फ्लेवर शहद टनकपुर, सरसों फ्लेवर शहद राजस्थान व अजवाइन फ्लेवर शहद बिहार में तैयार किया जाता है। मधुमक्खियां इन क्षेत्रों में फूलों के रस से शहद बनाती है। वह सीजन-सीजन में मधुमक्खियों के डिब्बे इन क्षेत्रों में ले जाकर रखते हैं।

और 15 दिन में शहद तैयार

मनोज पांडे बताते हैं शहद 15 दिन में बनकर तैयार हो जाता है। सालाना एक डिब्बे से 30 किलो शहद मिल जाता है। शहद में एक प्रतिशत भी मिलावट नहीं होती। मगर मधुमक्खियों को ओलावृष्टि व कोहरे में शहद बनाने में परेशानी होती है।

विदेशों में एक्सपोर्ट का तरीका

मौन पालकों के सामने एक तरीके से दुविधा भी है। वह अपना शहद विदेशों को एक्सपोर्ट नहीं कर पाते। हल्द्वानी व नैनीताल के कुछ शहद डीलर इनसे शहद खरीदते हैं। हल्द्वानी निवासी संजय जोशी बताते हैं कि वह पार्सल के जरिए विदेशों में शहद भेज रहे हैं। गूगल पर आनलाइन साइड बनाने की दिशा में वह काम कर रहे हैं। अभी खरीददार सीधे मोबाइल नंबर पर संपर्क कर शहद खरीदते हैं।

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