Famous Hindu Temples in Nainital: नैना देवी मंदिर, जिसने दिया नैनीताल को अस्तित्व व दूर करतीं हैं भक्तों के नेत्र रोग
Famous Hindu Temples in Nainital नैना देवी नाम से ही नैनीताल व झील का नाम पड़ा। इसी नाम से पर्यटक खिंचे चले आते हैं। सरोवरनगरी में पहुंचने वाले पर्यटक नैना देवी मंदिर में शीश नवाकर मां का आशीष जरूर लेते हैं।
हल्द्वानी से प्रशान्त मिश्र : उत्तराखंड के नैनीताल का नाम सामने आते ही झील व बर्फीली वादियों के नजारे बरबस कौंध उठते हैं। नैनी झील के किनारे बसा शहर पर्यटन के साथ ही धार्मिक महत्व भी है।
प्राचीन काल में अत्री, पुलस्त्य और पुलह ऋषियों काे नैनीताल के पास पीने को पानी नहीं मिला तो उन्होंने गड्ढा खोदकर उसमें मानसरोवर से पानी लाकर भरा था, जो कि नैनी झील के रूप में विख्यात हुआ।
कहते हैं कि इसमें स्नान करने से कैलास मानसरोवर का पुण्य मिलता है। इसी झील के उत्तरी कोने पर बना है पवित्र नैना देवी का मंदिर।
पौराणिक कथा
दक्ष प्रजापति की बेटी उमा का विवाह महादेव के साथ हुआ। दक्ष प्रजापति शिव को पसंद नहीं करते थे। देवताओं के अनुरोध पर उन्होंने उमा का विवाह शिव के साथ कर दिया। एक बार दक्ष प्रजापति ने एक यज्ञ का आयोजन किया और शिव व उमा को आमंत्रित नहीं किया।
देवी उमा जिद के कारण बिना बुलाए यज्ञ आयोजन में पहुंची। प्रजापति ने उन्हें व शिव को अपमानित किया तो उमा यज्ञअग्नि में कूद गईं। तब क्राेधित भगवान शिव ने सती उमा के जले हुए शरीर को कंधे पर लादकर आकाश में विचरण करना शुरू कर दिया।
इस दौरान भगवान शिव के क्रोध को शांत करने के लिए विष्णु भगवान ने माता सती के अंगों को एक-एककर सुदर्शन चक्र से काटना शुरू कर दिया, जहां जो गिरा वहां उस नाम से शक्तिपीठ बना।
माता सती के दो आंखों में से एक नैनीताल तो दूसरा हिमाचल में गिरा था। दोनों जगहों पर मां के सिद्धपीठ हैं। नैना देवी मंदिर मां के 64 शक्तिपीठों में स्थान रखता है। स्थानीय लोग मां नैना देवी को नंदामाता भी कहते हैं। मां के नाम पर ही झील व शहर का नाम पड़ा।
प्रमुख आयोजन
प्रतिवर्ष नंदा अष्टमी को यहां पर विशाल मेला आयोजित किया जाता है। दरअसल, वर्ष 1880 में भयानक भूकंप में पूरा क्षेत्र ध्वस्त हो गया था। उसके बाद इसी जगह पर पूजन सामग्री, शंख आदि मिलने पर मंदिर की स्थापना की गई। 1903 में नंदाष्टमी के अवसर पर भव्य आयोजन की शुरुआत हुई।
तभी से हर भाद्रपद मास की पंचमी को महोत्सव का आरंभ होता है। षष्ठमी के दिन केले के तनों की पूजा-अर्चना करने के बाद सप्तमी को इनसे मां नंदा की मूर्तियां बनाई जाती हैं। अष्ठमी के दिन मंदिर में स्थापित कर प्राण प्रतिष्ठा की जाती है। दशमी के दिन मां नंदा के डोले के साथ नगर में विशाल शोभायात्रा निकाली जाती है।
इसके अलावा शरदीय व चैत्र नवरात्र में यहां काफी संख्या में माता के भक्त दर्शनों को आते हैं। अष्टमी व नवमी को विशेष कन्या पूजन होता है।
मंदिर की विशेेषता व मान्यता
नैनीताल आने वाले पर्यटक हों या विशिष्ट व्यक्ति, नयना देवी मंदिर जाना कभी नहीं भूलते। बांज व ओक प्रजाति के पेड़ों से लकदक पहाड़ी की तलहटी में स्थापित मंदिर की तुलना हिमाचल प्रदेश के नैनादेवी मंदिर से होती है। मंदिर के डिजाइन को पुरातन शैली में तैयार किया गया है। मां नयना देवी अमर उदय ट्रस्ट की ओर से मंदिर का विस्तार कर बारह अवतार मंदिर भी बनाया गया है। पूरे मंदिर परिसर को सुविधाओं से लैस किया गया है।
दूर होते हैं नेत्रदोष
नंदा अष्टमी व दोनों नवरात्र में मां के पूजन के साथ ही मान्यता है कि यहां पर आने वाले भक्त के नेत्र रोग दूर हो जाते हैं। काफी संख्या में श्रद्धालु नेत्ररोग की समस्या दूर करने के लिए मंदिर में मत्था टेकते हैं।
मुख्य पुजारी बसंत बल्लभ पांडे ने बताया कि नयना देवी मंदिर करोड़ों भक्तों की आस्था का केंद्र है, यहां भक्तों की हर मनोकामना पूर्ण होती है। नवरात्र के साथ ही नंदा देवी महोत्सव, मंदिर स्थापना दिवस व तीज त्यौहारों पर विशेष पूजा अर्चना होती है।
ऐसे पहुंचे
नैना देवी मंदिर पहुंचने के लिए सड़क, ट्रेन व हवाई मार्ग उपलब्ध है। बाई रोड वाया ऊधमसिंह नगर, काठगोदाम होते हुए नैनीताल आया जा सकता है। इसके लिए बस व टैक्सी मौजूद हैं। ट्रेन काठगाेदाम तक आती है। स्टेशन से बस व टैक्सी से आसानी से नैनीताल पहुंचा जा सकता है।
इसके साथ ही निकटतम एयरपोर्ट पंतनगर है, जो कि लखनऊ, दिल्ली आदि शहरों से पूरी तरह से जुड़ा हुआ है। यहां से बस व टैक्सी से नैनीताल वाया हल्द्वानी पहुंचा जा सकता है।