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Nainital Is In Danger : उत्तराखंड के खूबसूरत हिलस्टेशन नैनीताल काे भूस्खलन से चौतरफा खतरा, हर तरफ से दरक रहीं पहाड़ियां

Nainital Is In Danger नैनीताल की पहाड़ियां भूस्खलन के लिहाज से बेहद संवेदशील हैं। वैसे तो यहां बीते डेढ़ सौ सालों से भूस्खलन हो रहा है लेकिन कुछ सालों से चौतरफा हो रहे भूस्खलन ने शहर के भविष्य को लेकर चुनौती खड़ी कर दी है।

By Skand ShuklaEdited By: Updated: Wed, 27 Jul 2022 11:56 AM (IST)
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Landslide In Nainital : नैनीताल में संवेदनशील पहाड़ियों पर चौतरफा भूस्खलन हो रहा है।
जागरण संवाददाता, नैनीताल : Landslide In Nainital : उत्तराखंड के खूबसूरत हिलस्टेशन नैनीताल के अस्तित्व पर संकट मंडराने लगा है। नैनीताल की संवेदनशील पहाड़ियों पर भूस्खलन शुरू हो गया है। बालियानाला, चाइनापीक, मालरोड, कैलाखान, ठंडी सड़क, टिफिनटॉप सात नंबर क्षेत्र में भूस्खलन चौतरफा खतरे का संकेत दे रहे हैं। भूवैज्ञानिक भी इसे संकट की घंटी बता रहे हैं।

सात नंबर में भूस्खलन बड़े खतरे का संकेत

तीन दिनों पहले नैनीताल के सात नंबर क्षेत्र में भारी भूस्खलन हुआ। जिसमें कुछ दरख्त गिर गए तो दो मकान क्षतिग्रस्त हो गए। सात नंबर क्षेत्र उसी आल्मा की पहाड़ी में आता है जहां नैनीताल के इतिहास में सबसे भयानक भूस्खलन हुआ था। 18 सितंबर 1880 के भूस्खलन में तो 151 जिंदगी काल के गाल में समा गई थीं। शहर की बसासत के बाद माना जाता है कि 1867 में पहली भूस्खलन की घटना हुई थी।

बलियानले में 150 से वर्षों से भूस्खलन

Nainital Is In Danger : नैनीताल के नीचे स्थित बलियानले में 150 से भी अधिक वर्षों से भूस्खलन आज भी जारी है। बीते वर्ष शहर की सबसे ऊंची चोटी चाइनापीक में एक बार फिर भारी भूस्खलन हुआ था। साथ ही पहाड़ी के एक बड़े हिस्से में करीब छह इंच चौड़ी दरार उभर आई। इधर टिफिनटॉप में भी भूस्खलन होने लगा है। भूस्खलन और पहाड़ी में दरारे उभरने से ऐतिहासिक ब्रिटिशकालीन डोरोथी सीट का अस्तित्व भी खतरे में नजर आ रहा है।

भूवैज्ञानिक प्रो बीएस कोटलिया ने माना ये कारण

कुमाऊं विवि के भूवैज्ञानिक प्रो बीएस कोटलिया का मानना है कि नैनीताल और नैनीझील के बीच से गुजरने वाले फॉल्ट के एक्टिव होने से भूस्खलन और भूधंसाव की घटनाएं सामने आ रही हैं। शहर में लगातार बढ़ता भवनों का दबाव और भूगर्भीय हलचल इसका कारण हो सकते हैं। उन्होंने चेताया है कि अभी भी शहरवासी नहीं संभले तो परिणाम भयावह हो सकते हैं।

क्या है नैनीताल फॉल्ट जिसे माना जा रहा कारण

भूगर्भ विज्ञान विभाग कुमाऊं विश्विद्यालय प्रो बीएस कोटलिया ने बताया कि ज्योलीकोट से कुंजखड़क तक एक बड़ी क्षेत्रीय भ्रंश रेखा मौजूद है। जो कि बलियानले के समीप से नैनीझील के मध्य से होती हुई गुजरती है। जिसे नैनीताल फॉल्ट का नाम दिया गया है। यह फॉल्ट या दरार भूगर्भिय हलचलों का परिणाम है। भूगर्भीय हलचलों के कारण ही इस फॉल्ट के एक्टिव होने के संकेत मिल रहे है। इस दरार के सिकुड़ने या खुलने से ही भूस्खलन जैसी घटनाएं सामने आ रही है।

अंग्रेजों ने सबक लेते हुए लगा दिए थे कई प्रतिबंध

नैनीताल में 1880 के भूस्खलन हुआ था था तब शहर की आबादी 10 हजार से भी कम थी। तब अंग्रेजों ने कमेटियां गठित कर भूस्खलन के कारणों को जानने के साथ ही इसकी रोकथाम की कवायद शुरू कर दी थी। जिसके बाद शहर के कई क्षेत्रों में भवन निर्माण पर पूरी तरह प्रतिबंध लगा दिया था।

घास काटाने और बागवानी पर भी था प्रतिबंध

अंग्रेजों ने शेर का डांडा पहाड़ी पर तो घास काटने, चारागाह के रूप में उपयोग करने और बागवानी पर भी प्रतिबंध लगा दिया गया। भूस्खलन की रोकथाम के लिए विभिन्न क्षेत्रों में वृहद स्तर पर पौधारोपण भी किया गया। इधर अन्य क्षेत्रों में छुटपुट भवन निर्माण और विकास कार्य चलते रहे।

आजादी के बाद हुए अंधाधुंध निर्माण

आजादी के बाद नैनीताल की दशा ही बदल गयी। 70-80 के दशक के बाद शहर में अंधाधुंध भवन निर्माण हुए। तेजी से बसासत बढ़ी। नियम कायदे की धज्जियां उउ़ती रहीं। आज भी प्रतिबंध के बावजूद शहर में अवैध रूप से निर्माण कार्य जारी है, इसके लिए हरे पेड़ों तक को काट दिया जाता है।

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