नंधौर वन अभ्यारण्य के टाइगर तस्करों के निशाने पर, बरामद हड्डियां वहीं के बाघ की
करीब दो वर्ष पूर्व हल्द्वानी वन प्रभाग स्थित नंधौर वन्यजीव अभ्यारण्य में बाघ काफी अधिक मात्रा में देखने को मिल रहे हैं। यही वजह है कि यहां पर बाघ तस्करी के निशाने पर हैं।
By Skand ShuklaEdited By: Updated: Fri, 22 Feb 2019 07:14 PM (IST)
टनकपुर, दीपक सिंह धामी : करीब दो वर्ष पूर्व हल्द्वानी वन प्रभाग स्थित नंधौर वन्यजीव अभ्यारण्य में बाघ काफी अधिक मात्रा में देखने को मिल रहे हैं। यही वजह है कि यहां पर बाघ तस्करी के निशाने पर हैं। इसका खुलासा बीते बुधवार को बनबसा थाना क्षेत्र में हुआ। पुलिस द्वारा बाघ की हड्डी के साथ पकड़े गए तस्करों ने बताया कि यह हड्डियां नंधौर वन्यजीव अभ्यारण्य से लाए।
गौरतलब है कि बनबसा पुलिस टीम, एसओजी व वन विभाग की संयुक्त टीम ने बाघ की हड्डियों के साथ पकड़े गए तस्कर से पूछताछ के बाद खुलासा यह हुआ है कि बाघ की हड्डिया नंधौर वन अभ्यारण्य केंद्र से लायी गई थी। टीम ने गड़ीगोठ मार्ग पर रईस अहमद सलमानी पुत्र नजर अहमद सलमानी निवासी जामा मस्जिद वार्ड नंबर पांच सितारगंज से 11किलो 600 ग्राम बाघ की हड्डिया बरामद की थी। रईस ने बताया कि यह बाघ की हड्डियां निक्का वन गूजर व विक्की निवासी रेला हंसपुर खत्ता चोरगलिया नैनीताल द्वारा उसे लाकर दी थी। वह इसे गड़ीगोठ मार्ग से नेपाल बेचने के लिए ले जा रहा था।
बाघों को रास आया वन अभ्यारण्य केंद्र
वन अभ्यारण्य केन्द्र स्थापित होने के बाद इस वन क्षेत्र में बाघों का मूवमेंट अधिक पाया गया है। वही वन विभाग के अधिकारियों ने बताया कि वन अभ्यारण्य केन्द्र स्थापित हुए दो वर्ष हो चुके है। इस केन्द्र में बाघों की संख्या में इजाफा हो रहा है।
वर्ष 2011 में भी बाघिन को तस्करों ने मारा था
वर्ष 2011 में शारदा वन रेंज के गुलियापानी वन क्षेत्र में लोहे का कड़का लगाकर तस्करों ने एक बाघिन को मार गिराया था। जिसमें सरगना तोता राम समेत गुजरों को गिरफ्तार कर लिया गया था। उनसे बाघिन की खाल व अन्य सामग्री व औजार बरामद किए गए थे। बताया जाता है कि इसका मुख्य सरगना तोता राम उर्फ बीरबल को जमानत मिलने के बाद तबसे वह नेपाल फरार बताया जाता है।
शिकारी ऐसे लगाते है लोहे का कड़का जंगल में बाघ या बाघिन को मारने को लेकर तस्करों द्वारा वन क्षेत्र में उनकी मूवमेंट का पता लगाया जाता है। जिसके बाद लोहे के कड़के को जमीन में पत्तों से ढ़क दिया जाता है। कड़के वाले मार्ग से गुजर जाने पर जब बाघ फंस जाता है, तो काफी प्रयासों के बाद भी उससे बाहर नहीं निकल पाता है। इस पर दर्द होने पर बाघ गुराते है। जिसकी आवाज सुनकर शिकारी तस्कर घटना स्थल पर पहुंचते है। जहां उसे गोली व हाथियारों से नहीं बल्कि डंडों से पीटकर उसकी हत्या कर देते है। बताया जाता है कि डंडों का प्रयोग शिकारी इसलिए करते है क्योंकि उसमें बाघ की खाल में कोई निशान न होने के कारण उसकी कीमत अच्छी मिलती है।
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