Navratri 2022: पूर्णागिरी धाम में पूरी होती है हर मनोकामना, सौंदर्य व अध्यात्म के मिलन के साथ ऐसे बना यह मंदिर
Navratri 2022 टनकपुर से 17 किमी दूरी अन्नपूर्णा चोटी पर माता सती की नाभि गिरी थी जिसके बाद इस स्थल एक शक्तिपीठ का निर्माण हुआ जिसे पूर्णागिरि शक्तिपीठ के रूप में पहचान मिली। नवरात्रि में यहां भारी संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं।
By Rajesh VermaEdited By: Updated: Fri, 23 Sep 2022 10:55 PM (IST)
जागरण संवाददाता, हल्द्वानी। Navratri 2022: उत्तराखंड को देवों की भूमि कहा गया है। यहां हर जगह पर तीर्थस्थल हैं। इन्हीं तीर्थों में एक है पूर्णागिरी धाम (Purnagiri Dham) । हरियाली संग बहती शीतल हवा और कलकल बहती शारदा नदी के साथ यहां प्राकृतिक सुंदरता और अध्यात्म का मिलन होता है। चंपावत जिले के टनकपुर से लगभग 17 किमी दूर अन्नपूर्णा पहाड़ी पर और समुद्र तल से 3000 मीटर की ऊंचाई पर बसा है मां का यह धाम। इसे मां भगवती के 108 शक्तिपीठों में से एक माना गया है। मान्यता है कि यहां देवी सती की नाभि गिरी थी। नवरात्रि में यहां भारी संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं।
इस तरह हो रही तैयारी
पूर्णागिरी धाम (Purnagiri Dham) में शारदीय व चैत्र नवरात्रि दोनों ही अवसरों पर मेला लगता है। इस बार भी इस आयोजन को भव्य बनाने के लिए तैयारियां पूरी कर ली गई है। प्रशासन भी इस दौरान यहां उमड़ने वाली श्रद्धालुओं की भीड़ को व्यवस्थित करने के लिए जुटा हुआ है। प्रशासन और मंदिर समिति दोनों ने ही श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए व्यवस्थाओं को चाक चौबंद करने का दावा किया है। मुख्य मंदिर से कालिका मंदिर तक यात्रा मार्ग फूल मालाओं व चुनरी से सजाए जा रहे हैं। मुख्य मंदिर को भी आकर्षक रूप दिया जा रहा है।ये है मान्यता
पुराणों के अनुसार, जब दक्ष प्रजापति ने एक यज्ञ का आयाेजन किया था। इसमें उसने सभी देवी-देवताओं को आमंत्रित किया, सिवाय भगवान शिव और माता सती के। इसकी जानकारी होने पर माता सती स्वयं अकेले ही यज्ञ में पहुंच गई, जहां दक्ष ने भगवान शिव काे खूब अपमान किया। इससे अपमानित होकर माता सती ने स्वयं को यज्ञ की अग्नि में भस्म कर लिया। जिसके बाद आक्रोशित भगवान शिव उनके पार्थिव शरीर को आकाश मार्ग से ले जा रहे थे। तभी भगवान विष्णु ने महादेव के क्रोध को शान्त करने के लिए अपने सुदर्शन चक्र से माता सती के शरीर को 108 भागों में विभक्त कर दिया, जो अलग-अलग जगहाें पर गिरे। जहां-जहां माता सती के शरीर के भाग गिरे, वहां शक्तिपीठ की स्थापना हुई। इसी दौरान टनकपुर से 17 किमी दूरी अन्नपूर्णा चोटी पर माता सती की नाभि गिरी थी, जिसके बाद इस स्थल एक शक्तिपीठ का निर्माण हुआ, जिसे पूर्णागिरि शक्तिपीठ के रूप में पहचान मिली।
ऐसा हुआ मंदिर का निर्माण
संवत 1632 की बात है। गुजरात के श्रीचंद तिवारी यमनों के अत्याचार के बाद चम्पावत पहुंच गए और यहां के चंदवंश के राजा ज्ञान चंद की शरण ली। इस दौरान एक रात श्रीचंद तिवारी को सपने में मां पूर्णागिरि ने दर्शन दिया और नाभि स्थल गिरने के स्थान पर मंदिर बनाने का आदेश दिया। तब श्रीचंद तिवारी ने 1632 में यहां मंदिर की स्थापना की। तभी से यहां पूजा-अर्चना शुरू हुई। यहां आने वाले हर भक्त की हर मनोकामना पूर्ण होती है।
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