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एनसीईआटी किताब प्रकाशन में नहीं करती सरकारी ग्रांट का उपयोग

एनसीईआरटी सरकारी ग्रांट का उपयोग किताब प्रकाशन में नहीं बल्कि किसी अन्य काम में करती है। एनसीईआरटी ने हार्इकोर्ट में ये जवाब दाखिल किया है।

By Raksha PanthariEdited By: Updated: Thu, 28 Jun 2018 05:06 PM (IST)
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एनसीईआटी किताब प्रकाशन में नहीं करती सरकारी ग्रांट का उपयोग
नैनीताल, [जेएनएन]: हाई कोर्ट ने आइसीएससी विद्यालयों को छोड़कर राजकीय, अर्धसरकारी व मान्यता प्राप्त विद्यालयों में एनसीईआरटी की किताबें अनिवार्य करने के सरकार के शासनादेश के खिलाफ पब्लिक स्कूलों की दायर याचिका को सुना। साथ ही सुनवाई की अंतिम तिथि 16 जुलाई नियत कर दी। उस दिन कोर्ट मामले में फैसला भी सुना सकती है। राज्य सरकार ने पहली से 12 वीं तक की कक्षाओं में एनसीईआरटी की किताबें लागू करने का शासनादेश जारी किया है।

नॉलेज वर्ल्ड देहरादून, पब्लिक स्कूल एसोसिएशन व अन्य ने याचिका दायर कर राज्य सरकार के पिछले साल 23 अगस्त के शासनादेश को चुनौती देती याचिकाएं दायर की थी। शासनादेश में  राजकीय, सहायता प्राप्त, मान्यता प्राप्त अशासकीय विद्यालय व अंग्रेजी माध्यम संचालित विद्यालयों में एनसीईआरटी की किताबें कोर्स में शामिल करना अनिवार्य किया गया था और निजी प्रकाशकों की किताबों के कोर्स में शामिल करने पर प्रतिबंध लगा दिया। 

सरकार का मानना था कि निजी विद्यालयों में निजी प्रकाशकों की किताबों को महंगे दाम में बेचकर अभिभावकों की जेब काटी जाती है। सरकार ने कहा था कि शिक्षा का व्यावसायीकरण रोकने के लिए के मकसद से यह निर्णय लिया गया है। चेतावनी दी थी कि यदि निजी प्रकाशकों की किताबें लागू करने पर संबंधित विद्यालय के खिलाफ कार्रवाई होगी। सरकार ने यह भी कहा था कि यदि किसी विषय में एनसीईआरटी की किताब उपलब्ध नहीं है तो उसे एनसीईआरटी की दरें में उपलब्ध कराया जाए। न्यायाधीश न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया की एकलपीठ में मंगलवार को मामले की सुनवाई हुई। 

प्राइवेट स्कूल एसोसिएशन एंड चिल्ड्रन वेलफेयर एसोसिएशन ने एनसीईआरटी पर आरोप लगाया था कि उसे किताबों के प्रकाशन के लिए सरकार से ग्रांट मिलती है, लिहाजा उसी रेट में किताबें नहीं दे सकते। एनसीईआरटी ने जवाब दाखिल कर कहा कि जो ग्रांट सरकार देती है, उसका उपयोग किताब प्रकाशन में नहीं बल्कि अन्य काम में किया जाता है। 

पिछली सुनवाई में एकलपीठ के सरकार को अंतरिम राहत प्रदान करते हुए शासनादेश को बरकरार रखा। कोर्ट के समक्ष यह भी कहा गया था कि यदि कोई स्कूल नई किताब लागू करना चाहता है तो उसे उसका मूल्य व किताबों की सूची बनाकर सरकार को देनी होगी।

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