गोबर का ये टाइल्स घर को एसी जैसा रखता है ठंडा, इस अनोखे प्रयोग से चमकी उत्तराखंड के नीरज की जिंदगी
काशीपुर के आवास विकास में रहने वाले नीरज ने बेसहारा गायों के लिए कुछ करने की ठानी। आज यही बेसहारा गायों के गोबर से इनकी किस्मत बदल गई है।
By Skand ShuklaEdited By: Updated: Tue, 23 Jun 2020 08:57 PM (IST)
काशीपुर, अभय पाण्डेय : उत्तराखंड के काशीपुर के आवास विकास में रहने वाले नीरज ने बेसहारा गायों के लिए कुछ करने की ठानी। आज इन्ही गायों के गोबर से इनकी किस्मत बदल गई है। गोबर से कलाकृतियां बनाने के लिए मशहूर नीरज ने हाल में कुछ ऐसे प्रयोग किए हैं जिसकी मांग दक्षिण भारत से लेकर विदशों तक हो रही है। नीरज ने गोबर के जरिए ऐसा टाइल्स तैयार किया है जो दिखने में खूबसूरत तो है ही यह कमरे के लिए एसी की तरह भी काम करता है। गर्मी के दिनों में आम तौर पर 40 डिग्री के तापमान में गोबर का टाइल्स लगने से कमरे का तापमान मे 6 से 8 डिग्री सेल्सियस तक कम हो जाता है। गुरुग्राम सहित बड़े शहरों में अब इसका प्रयोग किया जा रहा है। नीरज गोबर से बनने वाले उत्पादों के प्रति माह लाखों की आय कर रहे हैं और इसके जरिए गो पालकों व अपने उत्पादों को बनाने के लिए प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से सैकड़ों लोगों को राेजगार उपलब्ध करा रहे हैं।
कैसे तैयार करते हैं नीरज अपने उत्पाद
नीरज अपने के साथ कारखाने में तकरीबन 20 युवाओं को जोड़कर काम कर रहे हैं। रोजाना दिन की शुरुआत गोशाला और काशीपुर के कुंडेश्वरी व अन्य क्षेत्र से गोबर उठाने से होती है। इसमें केवल भारतीय नस्ल की गायों के गोबर का इस्तेमाल किया जाता है। गोबर कारखाना आने के बाद इसके सुखाने का काम किया जाता है। तकरीबन दो दिन तक इनको सुखाने के बाद एक मशीन के जरिए इनका चूरा बनाया जाता है। जब गोबर चूर्ण के रूप में तैयार हो जाता है तो इसमें खास किस्म की जड़ी बूटी के साथ इसका पेस्ट तैयार किया जाता है यह पेस्ट को अलग अलग सांचे में रखकर इनका ब्रिक्स तैयार किया जाता है। आॅर्डर के हिसाब से टाइल्स का निर्माण किया जाता है इसके अलावा इस गोबर के पेस्ट से खास किस्म की मूर्तिया, कलाकृतियां व चप्पल, मोबाइल कवर, चाभी रिंग आदि जैसे सैकड़ों अन्य उत्पाद तैयार किए जाते हैं।
बेसहारा गायों से लोगों को मिला रोजगार जिन गायों को कल तक लोग सड़कों पर छोड़ देते थे आज उन्हीं गायों की उपयोगिता समझ में आ रही है। कुंडेश्वरी क्षेत्र में नीरज की पहल पर ऐसी दर्जनों गाय हैं जिनको आज आसरा मिल गया। कई ऐसी महिलाएं हैं जो इन गायों के लिए सहारा बन गई हैं। गोबर के बदले इनकी आमदनी भी हो रही है। नीरज काशीपुर की गोशालाओं से भी गोबर उठाते हैं बदले में इनके लिए चारा और आहार की व्यवस्था कराते हैं।
राष्ट्रीय कामधेनू आयोग ने भी प्रोजेक्ट को सराहा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के पहल पर शुरू किया गया राष्ट्रीय कामधेनु आयोग ने नीरज के प्रयास को सराहा है। देसी गाय और बैलों की नस्ल को बचाने के लिए यह प्रोजेक्ट शुरू किया गया है। वैदिक प्लास्टर को केंद्र सरकार, औखला, उप्र स्थित लैब से मंजूरी भी मिल चुकी है। भारत में विभिन्न इलाकों में नीरज के बनाए टाइल्स की मांग तेजी से बढ़ रही है।
मिट्टी के घर जैसा फील कराते हैं इस टाइल्स से बने घर नीरज बताते हैं कि पहले मिट्टी के बने कच्चे घरों में ऊष्मा को रोकने की क्षमता थी। ये कच्चे मकान सर्दी और गर्मी से बचाव करते थे, लेकिन बदलते समय के साथ ये कच्चे मकान अब व्यवहारिक नहीं हैं। लेकिन इस टाइल्स से बने मकान के बहुत फायदे हैं। इस टाइल्स से बने फर्श पर गर्मियों में नंगे पैर टहलने से ठंडक मिलती है। हमारे शरीर के अनुसार तापमान मिलता है। बिजली की बचत होती है, शहरों में गांव जैसी कच्ची मिट्टी के पुराने घर इस गाय के प्लास्टर से बनना संम्भव है। एक वर्ग फुट एरिया में इसकी लागत 15 से 20 रुपए आती है।
ईको फ्रेंडली घर होंगे साबित हरियाणा से पंचगव्य की शिक्षा लेने वाले नीरज बताते हैं कि देसी गाय के गोबर में सबसे ज्यादा प्रोटीन होती है। यही कारण है कि पहले घर की लिपाई गाय के गोबर से की जाती थी। आज यही काम टाइल्स करेंगे। ये टाइल्स घर की हवा को शुद्ध रखने का काम करता है, इसलिए वैदिक टाइल्स में देसी गाय का गोबर लिया गया है। इससे सस्ते और इको फ्रेंडली मकान बनते हैं। इस तरफ प्लास्टर से बने मकानों में नमी हमेशा के लिए समाप्त हो जाएगी। इसमें घर प्रदूषण से मुक्त होते हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि इन घरों में इलेक्ट्रानिक उपकरणों का रेडियशन सबसे कम होता है।
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