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India-Nepal border dispute : नेपाल ने नए नक्शे में लिपुलेख और कालापानी को अपना बताया

पिथौरागढ़ के गर्बाधार-लिपुलेख मार्ग को अतिक्रमण बता विरोध जता रहे नेपाल ने सोमवार को नया नक्शा जारी कर दिया।

By Skand ShuklaEdited By: Updated: Tue, 19 May 2020 10:13 PM (IST)
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India-Nepal border dispute : नेपाल ने नए नक्शे में लिपुलेख और कालापानी को अपना बताया
हल्द्वानी, अभिषेक राज : पिथौरागढ़ के गर्बाधार-लिपुलेख मार्ग को अतिक्रमण बता विरोध जता रहे नेपाल ने सोमवार को नया नक्शा जारी कर दिया। इसमें पिथौरागढ़ के लिपुलेख और कालापानी को अपना क्षेत्र बताते हुए नेपाल ने नई अंतरराष्ट्रीय सीमारेखा तय करने का दावा किया है। नेपाल ने सिर्फ उत्तराखंड से लगती 805 किमी सीमा में ही बदलाव किया है। लद्दाख, हिमाचल, उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल और सिक्किम के साथ ही चीन से लगती सीमा को पूर्ववत ही रखा है।

मंत्रीपरिषद ने सर्वसम्मति से नए नक्शे पर मुहर लगाई

नेपाल मंत्रीपरिषद में रविवार को ही नए राजनीतिक नक्शे को प्रस्तुत किया गया। पूरे दिन चले मंथन और विदेश मामलों के जानकारों से मंत्रणा के बाद सोमवार को मंत्रीपरिषद ने सर्वसम्मति से नए नक्शे पर मुहर लगा दी। इसमें लिपुलेख के साथ ही कालापानी को अंतरराष्ट्रीय सीमा तय कर सामरिक महत्व के दोनों ही क्षेत्रों को अपना बताया। नक्शे के नोट में दोनों ही क्षेत्रों को अपना बताते हुए उसने इनपर भारत के अतिक्रमण का बकायदा जिक्र भी किया है। इसके साथ ही नेपाल ने पिथौरागढ़ के कुटी, नाबी व गुंजी पर भी अपना दावा किया है। नेपाल मंत्रीपरिषद ने सोमवार को बैठक में नए नक्शे पर मुहर लगाते हुए कहा कि इसे पाठ्यक्रम में भी शामिल किया जाएगा।

2019 से शुरू हुई तनातनी

दो नवंबर 2019 को भारत ने नक्शा जारी किया। इसमें लिंपियाधुरा, लिपुलेख व कालापानी भी शामिल रहे। इस पर नेपाल ने ऐतराज जताया और इसे वास्तविक नक्शे के विपरीत बताया। हालांकि दोनों देशों के बीच बातचीत के बाद विवाद शांत हो गया, लेकिन मई के पहले सप्ताह में चीन सीमा तक बनी गर्बाधार-लिपुलेख सड़क के बाद नेपाल ने इसे नए सिरे से तूल देना शुरू कर दिया।

यह है कालापानी विवाद

कालापानी करीब 35 वर्ग किलोमीटर का इलाका है और पिथौरागढ़ जिले का हिस्सा है। उधर, नेपाल सरकार का दावा है कि यह इलाका उसके दारचुला जिले में आता है। 1962 में भारत-चीन के बीच युद्ध के बाद से इस इलाके पर भारत के आइटीबीपी के जवानों का कब्जा है।

बातचीत से सुलझाने की हो चुकी है पहल

दोनों देशों के बीच मामले को सुलझाने के लिए राजनयिक तरीके से पहल हुई। 1996 में कालापानी इलाके के संयुक्त विकास के लिए महाकाली संधि के तुरंत बाद नेपाल की कम्यूनिस्ट पार्टी (सीपीएन-यूएमएल) ने कालापानी पर दावा करना शुरू कर दिया।

सामरिक रूप से महत्वपूर्ण है कालापानी

भारत-चीन-नेपाल के त्रिकोणीय सीमा पर स्थित कालापानी इलाका सामरिक रूप से महत्वपूर्ण है। नेपाल सरकार का दावा है कि वर्ष 1816 में उसके और तत्कालीन ईस्ट इंडिया कंपनी के बीच हुई सुगौली संधि के मुताबिक कालापानी उसका इलाका है। हालांकि इस संधि के आॢटकल 5 में कहा गया है कि नेपाल काली (अब महाकाली) नदी के पश्चिम में पडऩे वाले इलाके में अपना दावा नहीं करेगा। 1860 में पहली बार इस इलाके में जमीन का सर्वे हुआ था। 1929 में कालापानी को भारत का हिस्सा घोषित किया गया और नेपाल ने भी इसकी पुष्टि की थी।

सुगौली संधि से पहले का है नक्शा

भारत-नेपाल संबंधों के जानकार यशोदा श्रीवास्तव बताते हैं कि नेपाल ने सोमवार को जो नया नक्शा जारी किया वह 1816 में हुई सुगौली संधि से पहले का है। वहीं नेपाल के पूर्व विदेश मंत्री उपेंद्र यादव का कहना है कि भारत से किसी मतभेद का हल सिर्फ बातचीत से ही संभव है। दोनों देशों के बीच सीमा विवाद नया नहीं है। सरकार को दस्तावेज और नक्शे के साथ भारत से उच्चस्तरीय वार्ता करनी चाहिए। एकपक्षीय पहल से कुछ नहीं होने वाला।

द्विपक्षीय वार्ता से सुलझाएंगे मसले

नैनीताल के भाजपा सांसद अजय भट्ट ने कहा कि भारत ने कभी भी किसी के क्षेत्र में दखल नहीं दिया। हमारी नीति विस्तारवादी नहीं रही। नेपाल हमारा मित्र राष्ट्र है। हाल के दिनों में जो कुछ गलतफहमियां सामने आई हैं उन्हें द्विपक्षीय वार्ता से सुलझाने की कोशिश हो रही है। हमने जब भी निर्माण किया अपनी जमीन पर किया।

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