नेपाल की अकड़ पड़ने लगी ढीली, हिमालय से शुरू हुआ माइग्रेशन तो मांग रहा रास्ता
गर्बाधार-लिपुलेख मार्ग के विरोध में नेपाल ने भले ही कालापानी क्षेत्र में बॉर्डर आउट पोस्ट (बीओपी) खोल दी लेकिन अब उसकी अकड़ ढीली पडऩे लगी है।
By Skand ShuklaEdited By: Updated: Fri, 15 May 2020 08:53 AM (IST)
धारचूला (पिथौरागढ़) जेएनएन : गर्बाधार-लिपुलेख मार्ग के विरोध में नेपाल ने भले ही कालापानी क्षेत्र में बॉर्डर आउट पोस्ट (बीओपी) खोल दी, लेकिन अब उसकी अकड़ ढीली पडऩे लगी है। उच्च हिमालयी क्षेत्र से ग्रामीणों के माइग्रेशन के लिए गुरुवार को भारत के पिथौरागढ़ जिला प्रशासन से रास्ते की अपील कर दी। हाल की गतिविधियों को देखते हुए इसपर अभी कोई निर्णय नहीं हुआ है।
उच्च हिमालय में भारत के सात गांवों की तरह नेपाल के भी दो गांव छांगरु और टिंकर के ग्रामीण साल में दो बार माइग्रेशन करते हैं। नेपाल में दार्चुला से छांगरु तक का मार्ग बेहद कठिन है। चार सौ मीटर से अधिक मार्ग भूस्खलन में ध्वस्त भी हो गया है। इस बीच माइग्रेशन में हो रही देरी से छांगरु और टिंकर के ग्रामीणों ने प्रदर्शन शुरू कर दिया है। इसपर नेपाल के दार्चुला प्रशासन ने भारतीय क्षेत्र के पिथौरागढ़ के अधिकारियों से काली नदी पर बने सीता पुल से आवाजाही की अनुमति मांगी है।
अभी लॉकडाउन के कारण भारत- नेपाल को जोडऩे वाला यह पुल बंद है। ऐसे में माइग्रेशन में देरी पर ग्रामीणों की चिंताएं बढ़ती जा रही हैं। टिंकर गांव निवासी नगेंद्र सिंह तिंकरी बताते हैं कि नेपाल में मौरा भेल और कौवा के बीच चार सौ मीटर मार्ग भूस्खलन से बंद है। दोनों गांवों के लगभग पांच सौ परिवारों को अपने नौ सौ पालतू जानवरों के साथ माइग्रेट करना है।
एके शुक्ला, एसडीएम धारचूला ने बताया कि छांगरु और टिंकर के ग्रामीणों के माइग्रेशन के लिए दार्चुला के सीडीओ यदुनाथ पौडेल ने सात दिन के लिए मार्ग के प्रयोग की अनुमति मांगी है। अग्रिम कार्यवाही के लिए अनुरोध पत्र जिलाधिकारी को भेज दिया गया है।इन मार्गों पर भी विचार की अपील
नेपाल के दार्चुला प्रशासन ने धारचूला पुल से भारत में प्रवेश करने के साथ ही मालपा और छंकनरे में अस्थाई पुल निर्माण की अनुमति मांगी है। घाटीबगड़ और दोपाखे के बीच वैकल्पिक मार्ग का भी सुझाव दिया है।
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