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ड्रेगन तक भारत की पहुंच रास नहीं आ रही नेपाल को, मीडि‍या में मुखर हुआ वि‍रोध

चीन सीमा तक बनी गर्बाधार-लिपुलेख सड़क से भारत भले ही सामरिक रूप से मजबूत हुआ लेकिन यह उपलब्धि नेपाली मीडिया और राजनीतिज्ञों को रास नहीं आ रही।

By Skand ShuklaEdited By: Updated: Sun, 10 May 2020 08:22 AM (IST)
ड्रेगन तक भारत की पहुंच रास नहीं आ रही नेपाल को, मीडि‍या में मुखर हुआ वि‍रोध
हल्द्वानी, अभिषेक राज : चीन सीमा तक बनी गर्बाधार-लिपुलेख सड़क से भारत भले ही सामरिक रूप से मजबूत हुआ, लेकिन यह उपलब्धि नेपाली मीडिया और राजनीतिज्ञों को रास नहीं आ रही। खासकर चीन समर्थक दलों को। शुक्रवार को दिल्ली में जब रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह वीडियो कांफ्रेंसिंग से सड़क का उद्घाटन कर रहे थे तब चीन के साथ ही नेपाल की भी नजर इसपर लगी रही। नेपाली मीडिया ने इसे अलग ही रंग देने की कोशिश की।

प्रमुख समाचारपत्रों और इलेक्ट्रॉनिक चैनलों ने-नेपाली भूमि अतिक्रमण गर्दे भारतले मानसरोवरको बाटो खोल्यो' (नेपाली भूमि का अतिक्रमण कर भारत ने मानसरोवर का रास्ता खोल दिया) शीर्षक से खबर का प्रकाशन शुरू कर दिया। पूरी प्रतिक्रिया परियोजना के विरोध में रही। एक डिवेट में बात उठी कि पूरा विश्व कोरोना की चपेट में है। नेपाल भी इससे निपटने की कोशिश कर रहा है। ऐसे मौके का फायदा उठाकर भारत ने चीन सीमा तक सड़क तैयार कर आवागमन के लिए खोल दी।

सुगौली संधि के विपरीत बताया

गर्बाधार-लिपुलेख सड़क मार्ग को सुगौली संधि के विपरीत बताया गया। दावा किया गया कि सड़क नेपाली जमीन पर बनाई गई है। सुगौली संधि के अनुसार काली (महाकाली) नदी के पूरब का पूरा भूभाग नेपाल का है। उनके अनुसार गुंजी, गर्बाधार, कुटिया नेपाल का हिस्सा हुआ। इस पर निर्माण किया जाना अतिक्रमण है।

कालापानी और सुस्ता विवाद का भी जिक्र

नेपाल में गर्बाधार-लिपुलेख सड़क के बहाने कालापानी और सुस्ता विवाद का भी जिक्र शुरू हो गया। सोशल मीडिया पर नेपाली प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली को इन मुद्दों पर ट्रोल भी किया गया। हालांकि इस पर नेपाल सरकार ने अधिकृत रूप से कोई प्रतिक्रिया नहीं दी।

तो नाराजगी का असल कारण यह है

भारत-नेपाल मैत्री संघ के अध्यक्ष अनिल गुप्ता बताते हैं कि नेपाल की नाराजगी का अहम कारण उसके पर्यटन उद्योग को लगने वाली बड़ी चपत की आशंका है। असल में अभी तक कैलास मानसरोवर की यात्रा नेपाल के रास्ते आसान और सस्ती थी। इससे बड़ी मात्रा में देसी और विदेशी श्रद्धालु नेपाल का रुख करते हैं। इससे उसे बड़ी आमदनी होती है। अब गर्बाधार-लिपुलेख मार्ग से मानसरोवर की यात्रा बेहद सस्ती और जल्द हो सकेगी। ऐसे में नेपाल को डर सता रहा है कि उसका पर्यटन उद्योग चौपट हो जाएगा।

काठमांडू से 13 दिन में पूरी होती है यात्रा

भारत से कैलास जाने के लिए वैसे तो दो अन्य मार्ग भी हैं। इनमें काठमांडू से जाने वाला सड़क मार्ग अब तक सरल और सस्ता माना जाता है। काठमांडू (नेपाल) से चलकर केरुंग और सागा (चीन) के रास्ते मानसरोवर झील और कैलास पर्वत की अधिकतर यात्रा बस या जीप से पूरी होती है। पहले दिन काठमांडू में विश्राम। दूसरे दिन पशुपतिनाथ के दर्शन के बाद यात्रा की महत्वपूर्ण जानकारी दी जाती है। तीसरे दिन जत्था बस से शयाब्रुबेसी के लिए रवाना। चौथे दिन नेपाल-चीन सीमा स्थित रसवागढ़ी के लिए रवानगी। यहां से केरुंग पहुंच रात्रि विश्राम। पांचवां दिन केरुंग से सागा/डोंगबा। छठें दिन डोंगबा/सागा से मानसरोवर झील का सफर पूरा होता है। सातवें दिन मानसरोवर झील से जत्था दारचेन शहर के लिए रवाना होता है। मानसरोवर झील की परिक्रमा कराते हुए बस यात्रियों को राक्षस ताल झील के समीप लाती है। आठवें दिन दारचेन से यम द्वार, कैलाश परिक्रमा का पहला दिन शुरू होता है। नौवें दिन धीरापुख से जुथुलपुख परिक्रमा, परिक्रमा का दूसरा दिन सुबह जल्दी उठ के स्वर्णिम कैलास (गोल्डन कैलास) के दर्शन होते हैं। 10वें दिन जुथुलपुख से दारचेन, परिक्रमा का तीसरा दिन पूरा होता है। 11वें दिन जत्था केरुंग के लिए रवाना होता है। 12वें दिन चीनी सीमा को पार कर जत्था काठमांडू पहुंचता है। 13वें दिन काठमांडू से जत्था भारत के लिए प्रस्थान करता है। वहीं, गर्बाधार-लिपुलेख सड़क मार्ग से यात्रा मात्र सात दिनों में ही पूरी हो जाएगी। दूरी भी नेपाल से कम और पैदल चलने से भी मुक्ति।

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