10 हेक्टेयर से ज्यादा क्षेत्र में फैले जंगल को ही माना जाएगा वन, नए जीओ पर उठा सवाल
अल्मोड़ा देश को सर्वाधिक पर्यावरणीय सेवा देने वाले उत्तराखंड में जंगलात की नई परिभाषा से बुद्धिजीवियों में नई बहस छीड़ गई है।
By Edited By: Updated: Thu, 28 Nov 2019 06:05 PM (IST)
अल्मोड़ा, जेएनएन : देश को सर्वाधिक पर्यावरणीय सेवा देने वाले उत्तराखंड में जंगलात की नई परिभाषा व मापदंडों के नियम निर्धारण पर नई बहस छिड़ गई है। चूंकि नई परिभाषा के अनुसार 10 हेक्टेयर या उससे अधिक के सघन क्षेत्र को ही वन क्षेत्र माना जाएगा। लिहाजा विषम भौगोलिक हालात वाले पर्वतीय क्षेत्रों में बड़ी भूमिका निभाने वाली छोटे क्षेत्रफल वाली वन पंचायतों का वजूद खत्म होने का संशय बढ़ गया है। ऐसे में विशेषज्ञों एवं पूर्व वनाधिकारियों ने शासन व विभाग प्रमुख से पूछा है कि 10 हेक्टेयर के मापदंड का वैज्ञानिक आधार क्या है। बहरहाल, हिमालयी राज्य में कम क्षेत्रफल व घनत्व वाले क्षेत्रों को जंगलात न माने जाने की दशा में वन संरक्षण अधिनियम के कमजोर पड़ने का अंदेशा भी जताया है।
दरअसल, सचिव वन एवं पर्यावरण अरविंद सिंह ह्यांकी की ओर से जंगलात की नई परिभाषा दी गई है, जिसे राज्यपाल ने भी बाकायदा मंजूरी दी है। इसके तहत उत्तराखंड में राजस्व रिकॉर्ड में अधिसूचित या उल्लिखित वन क्षेत्र जो 10 हेक्टेयर या उससे अधिक का सघन क्षेत्र तथा गोलाकार डेंसियोमीटर से मापने पर जिसका वितान घनत्व 60 प्रतिशत से अधिक हो, उसे ही 'वन' माना जाएगा। विशेषज्ञों ने सवाल उठाया है कि क्या नई परिभाषा व मापदंड के आधार पर 10 हेक्टेयर व 60 फीसद से कम घनत्व वाले जंगलात 'वन' नहीं माने जाएंगे। अगर ऐसा है तो उत्तराखंड के जंगलात नष्ट होते देर न लगेगी।
डॉ. मेहता ने पूछा 60 फीसद घनत्व का वैज्ञानिक आधार
सदस्य राज्य वन अनुसंधान सलाहकार परिषद व जिओ फॉरेस्टर एवं सेवानिवृत्त डीएफओ डॉ. जीवन सिंह मेहता ने इसको लेकर तमाम सवाल उठाए हैं। उन्होंने पूछा है कि 10 हेक्टेयर का मानक किस आधार पर तय किया गया है। इसका वैज्ञानिक आधार क्या है। उत्तराखंड में 12089 वन पंचायतों में से अधिकांश 10 हेक्टेयर से कम क्षेत्रफल वाली हैं। क्या ये वन पंचायतें परिभाषा से बाहर यानी 'वन' की श्रेणी में नहीं मानी जाएंगी। डॉ. मेहता ने आगे सवाल किया है कि 60 प्रतिशत घनत्व का क्या आधार है। पर्वतीय राज्य में बहुत सारे वन इससे कम घनत्व वाले हैं, तो वह वन क्षेत्र नहीं कहलाए जाएंगे। वहीं पूर्व मुख्य वन संरक्षक कुमाऊं प्रेम कुमार ने भी माना कि नई परिभाषा व जीओ के मुताबिक 10 हेक्टेयर से कम क्षेत्रफल वाले जंगलात 'वन' नहीं माने जाएंगे।
इस तरह से कभी वन को नहीं परिभाषित किया गया
वन की नई परिभाषा व मापदंड समझ से परे व भविष्य के लिए खतरनाक प्रतीत हो रहा। 10 हेक्टेयर का आंकड़ा किस अध्ययन से लाया गया। यदि इससे कम क्षेत्रफल वाले जंगलात को वन नहीं माना गया तो निश्चित रूप से वन पंचायतों का अस्तित्व खत्म हो जाएगा। तब हमारा फॉरेस्ट कंजर्वेशन ऐक्ट भी कमजोर पड़ जाएगा। अब तक के इतिहास में इस तरह से वनों को कभी परिभाषित नहीं किया गया है। अगर नई परिभाषा पर अमल हुआ तो इससे नदियों से जुड़े जलस्रोत वाले जंगलात नष्ट होते जाएंगे।
ये है नई परिभाषा व मापदंड उत्तराखंड में राजस्व रिकॉर्ड में अधिसूचित या उल्लिखित 10 हेक्टेयर या उससे अधिक के सघन क्षेत्र के साथ 75 फीसद से अधिक देसी वृक्ष प्रजातियां हों या गोलाकार डेंसियोमीटर से मापने पर जिसका वितान घनत्व 60 प्रतिशत से अधिक हो, 'वन' माना जाएगा।यह भी पढ़ें : उत्तराखंड के शहरों में जल्द शुरू होने वाली है हेलीकॉप्टर सेवा, सर्वे का काम पूरा, जल्द बनेंगे हेलीपोर्ट
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