पंत विवि के वैज्ञानिकों का नया शोध, जीवाणुरोधक बनेंगे प्लास्टिक के उपकरण
मेडिकल व फूड प्रोडक्ट सेक्टर सहित आम दिनचर्या में प्रयोग होने वाले प्लास्टिक के उपकरण अब जीवाणुरोधक बनेंगे। यह संभव होगा एंटी माइक्रोबियल (जीवाणुरोधी) प्लास्टिक से।
By Skand ShuklaEdited By: Updated: Wed, 27 Feb 2019 07:27 PM (IST)
उधमसिंहनगर, सुरेंद्र कुमार वर्मा : मेडिकल व फूड प्रोडक्ट सेक्टर सहित आम दिनचर्या में प्रयोग होने वाले प्लास्टिक के उपकरण अब जीवाणुरोधक बनेंगे। यह संभव होगा 'एंटी माइक्रोबियल (जीवाणुरोधी) प्लास्टिक' से। हवा व पानी के संपर्क में आने पर भी इस प्लास्टिक से तैयार उपकरण या सामग्री संक्रमित नहीं होगी। न ही उपकरणों को बार-बार स्टरलाइज (जीवाणु रहित करना) करना पड़ेगा। पंत विवि के वैज्ञानिकों ने 10 साल के शोध व प्रयोग के बाद जीवाणुरोधक प्लास्टिक तैयार कर इसका पेटेंट भी हासिल कर लिया है।
गोविंद बल्लभ पंत कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के रसायन विज्ञान विभाग प्रमुख डॉ. एमजीएच जैदी व माइक्रो बायोलॉजी विभाग प्रमुख डॉ. रीता गोयल ने एंटी माइक्रोबियल प्लास्टिक तैयार करने में सफलता पाई है। डॉ. जैदी कहते हैं कि आमजन को यह जानकर हैरानी होगी कि बोतल बंद पानी भी सुरक्षित नहीं है। क्योंकि बोतल में पानी भरने के बाद उसे ओजोन से स्टरलाइज कर सील बंद कर दिया जाता है। बोतल खोलते ही स्टरलाइज का असर भी समाप्त हो जाता है और सूक्ष्म जीव पानी को संक्रमित कर देते हैं। इसी तरह सर्जिकल उपकरण एवं फूड प्रोसेसिंग में प्रयुक्त होने वाले प्लास्टिक उपकरणों को संक्रमित होने के चलते बार-बार स्टरलाइज करना पड़ता है। यहीं से विचार आया कि क्यों न ऐसे प्लास्टिक का निर्माण किया जाए, जो जीवाणुरोधक हो। भारत सरकार के डिपार्टमेंट ऑफ बायो टेक्नोलॉजी (डीबीटी) के नैनो टेक्नोलॉजी टास्क फोर्स से 17 सितंबर 2008 में स्वीकृत 36.7 लाख रुपये की परियोजना के तहत हमने इस पर काम शुरू किया। दस वर्षों के अथक प्रयास में हमने एक ऐसे प्लास्टिक को बनाने में सफलता हासिल की, जो जीवाणुरोधक है। इस प्लास्टिक से तैयार प्रोडक्ट (जैसे मोबाइल कवर) को यदि पानी में डाला जाए तो उसमें मौजूद जीवाणुरोधक तत्व का असर 72 घंटे तक रहता है।
पंत विवि ने इस तकनीक का पेटेंट करवा लिया है, अब यह तकनीक उद्योगों को दी जाएगी। इसके लिए उद्यमी पंत विवि से सीधे संपर्क भी कर सकते हैं। दोनों वैज्ञानिक, पंत विवि व डीबीटी को पेटेंट रायल्टी का लाभ मिलेगा।
ऐसे बना जीवाणुरोधक प्लास्टिक
डॉ. जैदी के मुताबिक सबसे पहले हमने ऐसे प्लास्टिक पदार्थ चुने, जो मानवीय प्रयोग में हानिकारक (अविषाक्त प्लास्टिक पदार्थ) न हों। साथ ही जिनका जैव विघटन (बायोडिग्र्रेशन) संभव हो। इन प्लास्टिक पदार्थों में जीवाणु नाशक नैनो कणों को मिलाया। फिर तरल कार्बन डाई ऑक्साइड (हरित रसायन तकनीक) द्वारा जीवाणुरोधक नैनो कणों को अविषाक्त प्लास्टिक पदार्थों में संयोजित कर दिया। इससे जो नैनो सबमिश्रण प्राप्त हुए, उसका उपयोग एंटी माइक्रोबियल (जीवाणुरोधक) प्लास्टिक बनाने में किया गया।
हमने नए शोध में किसी भी कार्बनिक विलायक का प्रयोग नहीं किया
डॉ. एमजीएच जैदी, रसायन विज्ञान विभाग प्रमुख, पंत विवि ने बताया कि वर्तमान में जीवाणुरोधक प्लास्टिक का निर्माण विषैले कार्बनिक विलायकों की उपस्थिति में किया जाता है। इनके उपयोग से प्लास्टिक उपकरणों में कार्बनिक विलायकों की विषाक्तता विद्यमान रहती है, जो स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। हमने नए शोध में किसी भी कार्बनिक विलायक का प्रयोग नहीं किया है। जिससे प्लास्टिक इंडस्ट्री को सरल प्रक्रिया के साथ-साथ मानव जीवन के लिए बेहतर उत्पाद तैयार करने में मदद मिलेगी। इससे वातावरण भी प्रदूषित नहीं होगा।यह भी पढ़ें : पूर्व सीएम व सांसद कोश्यारी ने कहा- गरीब हूं, नहीं चुका सकता किराया
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