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IIT Roorkee की 175वीं वर्षगांठ पर बेरीनाग की चाय को मिला प्रथम स्थान

बेरीनाग की पहचान चाय से ही है। अंग्रेजी शासनकाल में चौकोड़ी चाय के बागानों से आच्छादित थे। हजारों हेक्टेयर में फैले चाय बागान के चलते यहां पर चाय की फैक्ट्री थी। अंग्रेजों को बेरीनाग की चाय बहुत भाती थी। तब बेरीनाग में उत्पादित चाय सीधे इंग्लैंड जाती थी।

By Prashant MishraEdited By: Updated: Mon, 04 Apr 2022 11:49 PM (IST)
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बेरीनाग की चाय को प्रदेश के प्रतिष्ठित संस्थान ग्राफिक एरा विश्वविद्यालय के साथ मिलकर मिला है।

जागरण संवाददाता, पिथौरागढ़ : देश के अग्रणी तकनीकी संस्थान  आइआइटी रुड़की की 175वीं वर्षगांठ के उपलक्ष्य में उन्नत भारत अभियान के सामथ्र्य समारोह में बेरीनाग की चाय को प्रथम स्थान मिला है। बेरीनाग की चाय को प्रदेश के प्रतिष्ठित संस्थान ग्राफिक एरा विश्वविद्यालय के साथ मिलकर मिला है। इस उपलब्धि पर जिलेभर में खुशी व्याप्त है।

बेरीनाग चाय ने ग्राफिक एरा विश्वविद्यालय के साथ मिल कर इस कार्यक्रम में भाग लिया था। जहां पर बेरीनाग की चाय को उसकी विशेषता, गुणवत्ता के कारण प्रथम स्थान मिला है। इस उपलब्धि से पहाड़ों में चाय क्रांति के माध्यम से रोजगार सृजन करने के प्रयासों को बल मिलेगा। वहीं चाय उत्पादन पहाड़ के गांवों से पलायन रोकने में मददगार साबित होगा।

बेरीनाग चाय के मालिक विनोद कार्की ने बताया कि उनका प्रयास सार्थक हुआ है। अति न्यून स्तर से बिना संसाधनों के किया गया प्रयास इस मुकाम तक पहुंचेगा उन्हें भी आशा नहीं थी। बेरीनाग की पहचान चाय से ही है। अंग्रेजी शासनकाल में चौकोड़ी चाय के बागानों से आच्छादित थे। हजारों हेक्टेयर में फैले चाय बागान के चलते यहां पर चाय की फैक्ट्री थी। अंग्रेजों को बेरीनाग की चाय बहुत भाती थी। तब बेरीनाग में उत्पादित चाय सीधे इंग्लैंड जाती थी। आजादी के बाद देश की सरकारों ने इसे महत्व नहीं दिया। जहां पूर्व में चाय के बागान थे वहां पर अब कंक्रीट के मकान बन चुके हैं। अभी भी इसे बेरीनाग टी स्टेट से ही जाना जाता है।

युवक विनोद कार्की ने फिर पुनर्जीवित किया पुराना दौर 

विकास खंड बेरीनाग के पुंगराऊ घाटी के एक छोटे से गांव पांखू निवासी विनोद कार्की ने आज से सात साल पूर्व सीमित संसाधनों के बीच चाय की नर्सरी बनाई। नायल गांव में 1. 78 हेक्टेयर में चाय का बागान तैयार किया। चाय का बागान तैयार होते ही उन्होंने 30 लाख रुपये का ऋण लेकर चाय फैक्ट्री लगाई।

बेरीनाग टी के नाम से चाय का उत्पादन करना प्रारंभ किया। अतीत की भांति ही बेरीनाग की यह चाय लोगों की पसंद बन गई। पहले तो स्थानीय लोग ही इसे खरीदते रहे। बाद में जिला, मंडल, स्तर से होते हुए राज्य में भी बेरीनाग टी की पहचान हो गई। बीते महीनों से बेरीनाग चाय की मांग खाड़ी के देशों तक होने लगी। पहले वर्ष लगभग आठ लाख मूल्य की चाय की बिक्री हुई। दूसरे वर्ष यह बढ़ कर 16 लाख तक पहुंच गई और इस वर्ष तो बाहरी देशों तक चाय जाने लगी है।

बिच्छू घास की भी चाय होती है तैयार 

बेरीनाग टी फैक्ट्री में बिच्छू घास की भी चाय तैयार होती है। जिसके जलबे दूर दूर तक हैं। बिच्छू घास की चाय बनाने के आस-पास के गांवों के ग्रामीणों की आय में वृद्धि हुई है। प्राकृतिक रूप से पाई जाने वाली बिच्छू घास बेरीनाग टी तीस रुपये प्रति किलो के हिसाब से खरीदता है। इस कारण ग्रामीण जंगलों से बिच्छू घास एकत्रित कर यहां बेचते हैं। बिच्छू घास की चाय और बेरीनाग टी की कीमत 1500 से 2500 रु  पए प्रतिकिलो है। बेरीनाग टी फैक्ट्री में नौ कर्मी तैनात हैं जबकि छह अन्य सहकर्मी हैं। 

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