Ozone Layer में बना 10 लाख किमी का होल, यूरोप के उत्तरी क्षेत्र में आने वाले देशों को खतरा
सूर्य से आने वाली हानिकारक अल्ट्रावायलेट यानी पराबैंगनी किरणों को सोखने वाली ओजोन गैस की मात्रा ओजोन लेयर Ozone Layer में कम हो रही है।
By Skand ShuklaEdited By: Updated: Wed, 15 Apr 2020 08:24 AM (IST)
नैनीताल, रमेश चंद्रा : सूर्य से आने वाली हानिकारक अल्ट्रावायलेट यानी पराबैंगनी किरणों को सोखने वाली ओजोन गैस की मात्रा ओजोन लेयर Ozone Layer में कम हो रही है। यह पर्यावरणीय घटना साल भर बर्फ से अच्छािदत रहने वाले आर्कटिक महासागर के ऊपर हो रही है। इस घटना ने वैज्ञानिकों को भी चिंता में डाल दिया है। आर्यभटट् प्रेक्षण विज्ञान शोध संस्थान (एरीज) के वैज्ञानिकों के अनुसार, शीत ऋतु में इस बार अत्यधिक ठंड पड़ने व हैलोजन गैसों के उत्सर्जन के कारण ओजोन लेयर में विशाल होल बन गया है। इस होल का दायरा तकरीबन 10 लाख किमी बताया जा रहा है।
इस कारण ओजोन लेयर में हुआ छेदएरीज के वायुमंडलीय प्रभाग के अध्यक्ष डॉ. मनीष नाजा के अनुसार, ओजोन में यह होल मध्य मार्च में बना है। इसके पीछे मुख्यत: दो कारण हैं। पहला, इस बार भयंकर ठंड पड़ी, जिससे तापमान माइनस 80 डिग्री सेल्सियस से नीचे पहुंच गया था, जिससे ओजोन को नुकसान पहुंचाने वाली खतरनाक हैलोजन गैस उच्च आसमान के बादलों में फंसकर रह गईं। बादलों का यह क्षेत्र आसमान में करीब 20 किमी की उंचाई पर होता है, जहां गैस कैद होकर रह जाती है। मगर जब तापमान बढ़ता है तो बादलों का बिखराव शुरू हो जाता है, जिससे गैसें बाहर निकलने लगती हैं। इन गैसों के उत्सर्जन से ओजोन लेयर में छेद होने लगता है।
अगले कुछ सप्ताह में भरपाई होने के आसार
ओजोन लेयर में हुए छिद्र की भरपाई अगले कुछ सप्ताह में होने की संभावना वैज्ञानिक जता रहे हैं। वैज्ञानिक का मानना है कि जैसे-जैसे तापमान बढ़ेगा, ओजोन की मात्रा में सुधार आना शुरू हो जाएगा, मगर इस बात की संभावना कम ही है कि इसकी पूरी भरपाई हो पाएगी।
हैलोजन गैसों पर 1987 से लगा है बैनवर्ष 1987 में हैैलोजन गैसों के उत्सर्जन पर बैन लगा दिया गया था। इसके लिए मांट्रियाल प्रोटोकॉल दुनियाभर में लागू किया गया था। इसके बावजूद कई देश इसका उत्सर्जन कर रहे हैं, जिस कारण ओजोन लेयर में होल बनना जारी है। एरीज के वैज्ञानिक ओजोन पर निरंतर नजरे रखे हुए हैं। सैटेलाइट से प्राप्त आंकड़ों का वैज्ञानिक अध्ययन में जुटे रहते हैं।
स्वास्थ्य के लिए खतरनाक हैं पराबैगनी किरणें पृथ्वी के वातावरण की ऊपरी सतह पर ओजोन परत में छेद हो जाने के कारण सूर्य की पराबैगनी किरणें धरती पर पहुंचने लगती हैं। ये किरणें स्वास्थ्य के लिए खतरनाक होती हैं। सबसे बढ़ा खतरा स्किन कैंसर का होता है। इसके अलावा आंखों में मोतियाबिंद का खतरा भी बढ़ जाता है। जीव जंतुओं के लिए भी खतरनाक है। इस बार हुए होल से यूरोप के उत्तरी क्षेत्र में आने वाले देशों के लोगों को खतरा बढ़ गया है।
फ्रेंच भौतिक शास्त्री चार्ल्स फेबरी और हेनरी बुशन ने की थी खोज ओजोन परत की खोज सन 1913 में फ्रेंच भौतिक शास्त्री चार्ल्स फेबरी और हेनरी बुशन ने की थी। इन वैज्ञानिकों ने जब सूर्य से आने वाले प्रकाश का स्पेक्ट्रम देखा तो उन्होंने पाया कि उसमें कुछ काले रंग के क्षेत्र थे तथा 310 nm से कम वेवलेंग्थ का कोई भी रेडिएशन सूर्य से पृथ्वी तक नहीं आ रहा था। स्पेक्ट्रम का यह हिस्सा अल्ट्रावॉयलेट हिस्सा कहलाता है, वैज्ञानिकों ने इससे यह निष्कर्ष निकाला कि कोई ना कोई तत्व आवश्य पराबैगनी किरणों को सोख रहा है, जिससे कि स्पेक्ट्रम में काला क्षेत्र बन रहा है तथा अल्ट्रावायलेट हिस्से में कोई भी विकिरण दिखाई नहीं दे रहे हैं। सूर्य से आने वाले प्रकाश के स्पेक्ट्रम का जो हिस्सा नहीं दिखाई दे रहा था वह ओजोन नाम के तत्व से पूरी तरह मैच कर गया, जिससे वैज्ञानिक जान गए हैं कि पृथ्वी के वायुमंडल में ओजोन ही वह तत्व है जो कि अल्ट्रावायलेट किरणों को अवशोषित कर रहा है। ओजोन परत का निर्माण सूर्य से आने वाली अल्ट्रावायलेट किरणों की वजह से होता है।
आपके शहर की हर बड़ी खबर, अब आपके फोन पर। डाउनलोड करें लोकल न्यूज़ का सबसे भरोसेमंद साथी- जागरण लोकल ऐप।