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Operation Meghdoot के बलिदानी हल्‍द्वानी न‍िवासी चन्‍द्रशेखर हरबोला का 38 साल बाद पार्थिव शरीर सियाचीन में बरामद

ऑपेरशन मेघदूत (Operation Meghdoot) के दौरान 28 साल की उम्र में बलिदान देने वाले चन्द्रशेखर हरबोला (Chandrashekhar Harbola) का 38 साल बाद पार्थिव शरीर बर्फ के नीचे से बरामद हुआ है। उम्मीद है कि स्वतंत्रता दिवस की शाम तक उनका पार्थिव शरीर उनके हल्द्वानी स्थित आवास पर पहुंच जाएगा।

By Skand ShuklaEdited By: Updated: Sun, 14 Aug 2022 05:43 PM (IST)
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सियाचीन में 38 साल बाद बर्फ के नीचे दबा मिला आपरेशन मेघदूत के शहीद चंद्रशेखर हरबोला का पार्थिव शरीर
हल्द्वानी, जागरण संवाददाता : देश आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है। उत्तराखंड में पहाड़ से लेकर मैदान तक तिरंगा यात्रा निकाली जा रही है। गली मोहल्लों में भारत मां के जयकारे लग रहे हैं। ऐसे में 38 साल पहले सियाचीन में ऑपरेशन मेघदूत  (Operation Meghdoot) में बलिदान देने वाले 28  वर्षीय जवान चंद्रशेखर हरबोला (Chandrashekhar Harbola) 19 कुमाऊँ रेजीमेंट का पार्थिव शरीर स्वतंत्रता दिवस पर उनके घर हल्द्वानी पहुंचेगा।

दुख और गर्व में शहीद चन्‍द्रशेखर हरबोला का पर‍िवार

वर्ष 1984 में सियाचिन ग्लेशियर में भारतीय सेना के ‘ऑपरेशन मेघदूत’ (Operation Meghdoot) के दौरान लापता हुए शहीद चंद्रशेखर हरबोला (Martyr Chandrashekhar Harbola) , बैच संख्या 5164584 का 38 साल बाद पार्थिव शरीर बर्फ के नीचे बरामद हुआ है। इसकी सूचना जैसे ही उनकी पत्नी को मिली, वह फूट फूटकर रो पड़ीं। तमाम स्मृतियां जो धूंधली हो रही थीं फिर से ताजा हो गईं। शहीद का परिवार दुख और गर्व में डूबा हुआ है।

पत्नी को म‍िली थी 18 हजार रुपये ग्रेच्‍युटी

आपरेशन मेघदूत (Operation Meghdoot) के काफी वर्षों तक उन्हें तलाशने की कोशिश की गई थी। लेकिन जब लंबे समय बाद उनका कोई पता नहीं चला तो उन्हें शहीद घोषित कर दिया गया था। उस समय उनकी पत्नी को 18 हजार रुपये ग्रेज्युटी और 60 हजार रुपये बीमा के रूप में मिले थे। हालांकि तक परिवार के किसी सदस्य को नौकरी आदि सुविधाएं नहीं मिलीं थीं।

शहीद चंद्रशेखर हरबोला का ये है पर‍िवार 

शहीद चंद्रशेखर हरबोला (Martyr Chandrashekhar Harbola) आज जीवित होते तो 66 वर्ष के होते। उनके परिवार में उनकी 64 वर्षीय पत्नी शांता देवी, दो बेटियां कविता, बबीता और उनके बच्चे यानी नाती-पोते 28 वर्षीय युवा के रूप में अंतिम दर्शन करेंगे। पत्नी शांता देवी उनके शहीद होने से पहले से नौकरी में थी, जबकि उस समय बेटियां काफी छोटी थीं। उम्मीद है कि उनका पार्थिव शरीर 15 अगस्त की शाम तक तिरंगे में लिपटकर नई दिल्ली से होते हुए हल्द्वानी पहुंच जाएगा।

पुल बनाने की सूचना पर निकली थी ब्रावो कंपनी

दुनिया के सबसे दुर्गम युद्धस्थल सियाचिन ग्लेशियर पर कब्जे की सूचना पर ऑपरेशन मेघदूत के तहत श्रीनगर से भारतीय जवानों की कंपनी पैदल सियाचिन के लिए निकली थी। इस लड़ाई में प्रमुख भूमिका 19 कुमाऊं रेजीमेंट ने निभाई थी।

अग्रिम जवानों को मजबूती देने निकली थी कंपनी

स्व चंद्रशेखर हरबोला 19 कुमाऊं रेजीमेंट ब्रावो कंपनी में थे और लेंफ्टिनेंट पीएस पुंडीर के साथ 16 जवान हल्द्वानी के ही नायब सूबेदार मोहन सिंह की आगे की पोस्ट पर कब्जा कर चुकी टीम को मजबूती प्रदान करने जा रहे थे।

एवलांच में बफं में दब गई थी पूरी कंपनी

29 मई 1984 की सुबह चार बजे आए एवलांच यानी हिमस्खलन में पूरी कंपनी बर्फ के नीचे दब गई थी। इस लड़ाई में भारतीय सेना ने सियाचिन के ग्योंगला ग्लेशियर पर कब्जा किया था। अब तक 14 शहीदों के ही पार्थिव शरीर मिल पाए हैं। मूल रूप से हाथीखाल द्वाराहाट जिला अल्मोड़ा निवासी शहीद का परिवार वर्तमान में सरस्वती विहार, नई आईटीआई रोड, डहरिया में रहता है।

क्या था ऑपरेशन मेघदूत

जम्मू कश्मीर में सियाचिन ग्लेशियर पर कब्जे के लिए भारतीय सेना जो आॅपरेशन चलाया उसे महाकवि कालीदास की रचना के नाम पर कोड नेम ऑपरेशन मेघदूत दिया। यह ऑपरेशन 13 अप्रैल 1984 को शुरू किया गया। यह अनोखा सैन्य अभियान था क्योंकि दुनिया की सबसे ऊंचाई पर स्थित युद्धक्षेत्र में पहली बार हमला हुआ था। सेना की कार्रवाई के परिणामस्वरूप भारतीय सेना ने पूरे सियाचिन ग्लेशियर पर नियंत्रण प्राप्त कर लिया था। इस पूरे ऑपरेशन में 35 अधिकारी और 887 जेसीओ-ओआरएस ने अपनी जान गंवा दी थी।

परवेज मुशर्रफ ने स्वीकार की थी हार

अपने संस्मरणों में पूर्व पाकिस्तानी राष्ट्रपति जनरल परवेज मुशर्रफ ने कहा था कि पाकिस्तान ने क्षेत्र का लगभग 900 वर्ग मील (2,300 वर्ग किमी) खो दिया है। जबकि अंग्रेजी पत्रिका टाइम के अनुसार भारतीय अग्रिम सैन्य पंक्ति ने पाकिस्तान द्वारा दावा किए गए इलाके के करीब 1,000 वर्ग मील (2,600 वर्ग किमी) पर कब्जा कर लिया था।

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