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Mohan Upreti Birth Anniversary : पंडित नेहरू ने मोहन उप्रेती को दे दिया था बेडू पाको ब्वाय नाम

Mohan Upreti Birth Anniversary बेडू पाको बारमासा ओ नरैण काफल पाको चैता.. गीत सुनने के बाद पंडित जवाहर लाल नेहरू ने मोहन उप्रेती को बेडू पाको ब्वाय नाम दे दिया था। उत्तराखंडी लोक कला को पहचान दिलाने में अहम भूमिका निभाने वाले मोहन उप्रेती का आज जन्मदिवस है।

By Skand ShuklaEdited By: Updated: Wed, 17 Feb 2021 07:45 AM (IST)
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Mohan Upreti Birth Anniversary : पंडित नेहरू ने मोहन उप्रेती को दे दिया था बेडू पाको ब्वाय नाम
हल्द्वानी, गणेश पांडे : Mohan Upreti Birth Anniversary : बेडू पाको बारमासा, ओ नरैण काफल पाको चैता.. गीत सुनने के बाद पंडित जवाहर लाल नेहरू ने मोहन उप्रेती को बेडू पाको ब्वाय नाम दे दिया था। उत्तराखंडी लोक कला को विश्व पटल पर पहचान दिलाने में अहम भूमिका निभाने वाले मोहन उप्रेती का बुधवार (आज) को जन्मदिवस है। कुशल रंगकर्मी उप्रेती की लोक को जीने की कला को देखते हुए ही पूर्व पीएम नेहरू ने दिल्ली में हुए आयोजन में उप्रेती को शानदार प्रस्तुति पर सम्मानित किया था। तब 1956 में नेहरू के कार्यकाल में सोवियत संघ के राष्ट्रपति खु्रशचेव व प्रधानमंत्री निकोलई बुल्गानिन के भारत आने पर यह सांस्कृतिक आयोजन हुआ था। सुप्रसिद्ध साहित्यकार विद्यासागर नौटियाल ने अपनी पुस्तक 'मोहन गाता जाएगा' में भी इसका उल्लेख किया है।

मोहन उप्रेती का जीवन लोक कला व गीत-संगीत को समर्पित रहा। उन्होंने संगीतकार सलिल चौधरी, उमर शेख व अभिनेता बलराज साहनी के साथ मिलकर कई कार्यक्रमों की प्रस्तुति दी। राजुला-मालूशाही, रसिक-रमौल, जीतू-बगडवाल, रामी-बौराणी, अजुबा-बफौल जैसी तेरह उत्तराखंडी लोक कथाओं व रामलीला का पहाड़ी बोलियों (गढ़वाली, कुमाऊंनी) में अनुवाद और मंच निर्देशन कर अल्जीरिया, सीरिया, जार्डन, रोम, थाईलैंड, उत्तर कोरिया समेत 22 देशों में प्रस्तुति दी। घासीराम कोतवाल, अली बाबा, उत्तर रामचरित, मशरिकी हूर व अमीर खुसरो आदि नाटकों का संगीत निर्देशन किया। 1951 में अल्मोड़ा में कला कलाकार संघ की स्थापना करने वाले उप्रेती ने डेढ़ हजार से अधिक कलाकारों को प्रशिक्षित किया और 1200 से अधिक कार्यक्रम प्रस्तुत किए। 17 फरवरी, 1928 को रानीधारा अल्मोड़ा में जन्मे मोहन उप्रेती का छह जून 1997 को निधन हो गया।

विद्यासागर नौटियाल के शब्दों में जब भी मेरे घर के बाहर बेडू पाको गीत गाया जाता रहेगा, लोग झूमते और गाते रहेंगे। उत्तराखंड के लाखों कंठों में उनते गीतों की स्वरधारा लगातार प्रवाहित होगी रहेगी। वह शताब्दियों तक जीवित रहेगा।

मोहन उप्रेती की प्रमुख उपलब्धियां

  • अल्मोड़ा में लोक कलाकार संघ की स्थापना।
  • भारतीय कला केंद्र दिल्ली में कार्यक्रम अधिकारी रहे।
  • दिल्ली में पर्वतीय कला केंद्र की स्थापना।
  • राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय दिल्ली में एसोसिएट प्रोफेसर रहे।
  • भारत सरकार के सांस्कृतिक विभाग की लोक नृत्य समिति के विशेषज्ञ सदस्य।
बेडू पाको गीत को धुन देने से हो गए अमर

गीतकार व रंगकर्मी बृजेंद्र लाल शाह एक शाम अल्मोड़ा में उदेसिंह की दुकान के सामने से गुजर रहे थे। तभी मोहन ने आवाज देकर बृजेंद्र को अपने पास बुलाया। मोहन ने लकड़ी की मेज बजाकर पूर्व प्रचलित कुमाऊंनी लोकगीत बेडू पाको बारामासा को नई धुन व द्रुत लय में गाया। इस गीत की दो ही लाइनें थी और कोई धुन भी तब नहीं बनी थी। मोहन को गाता देख ब्रजेंद्र ने इस गीत को पूरा लिखा। बाद में यह गीत उदेसिंह की दुकान से सात समंदर पार तक पहुंचा। ब्रजेंद्र शाह ने अपने संस्मरण अब केवल बिंबों में मोहन उप्रेती को याद करते हुए यह लिखा है।

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