Move to Jagran APP

अंतर धार्मिक जोड़े की सुरक्षा से संबंधित आदेश से UCC पर आधारित हिस्सा हटा, HC ने सरकार के रिकॉल प्रार्थना पत्र को किया स्वीकार

नैनीताल हाईकोर्ट ने 18 जुलाई को एक मामले संबंधित आदेश में उत्तराखंड सरकार के वकील की ओर से UCC (समान नागरिक संहिता उत्तराखंड-2024) के आधार पर पेश दलील को आदेश के पैराग्राफ संख्या तीन और चार में नोट किया था। इसके बाद धामी सरकार की ओर से कोर्ट के आदेश को वापस लेने अथवा आदेश के पैराग्राफ संख्या तीन-चार को हटाकर संशोधित करने के लिए रिकॉल प्रार्थना-पत्र दाखिल किया था।

By Jagran News Edited By: Nitesh Srivastava Updated: Wed, 31 Jul 2024 04:31 PM (IST)
Hero Image
तस्वीर का इस्तेमाल प्रतीकात्मक प्रस्तुतिकऱण के लिए किया गया है। जागरण
जागरण संवाददाता, नैनीताल। हाई कोर्ट ने लिव इन रिलेशनशिप में रह रहे देहरादून के अंतर धार्मिक जोड़े की सुरक्षा से संबंधित मामले में पारित आदेश में सरकार की ओर से यूसीसी से संबंधित हिस्सा हटाने से संबंधित प्रार्थना पत्र को स्वीकार कर लिया है।

देहरादून निवासी 31 वर्षीय मुस्लिम युवक व 26 वर्षीय हिन्दू महिला की ओर से याचिका दायर कर सुरक्षा दिलाने की प्रार्थना की थी। याचिकाकर्ताओं का कहना था कि उनके रिश्ते की वजह से उन्हें स्वजनों से खतरा है।

कोर्ट ने 18 जुलाई को याचिका का निस्तारण करते हुए पुलिस अधिकारियों को याचिकाकर्ताओं को छह सप्ताह की अवधि के लिए सुरक्षा प्रदान करने और उसके बाद याचिकाकर्ताओं को खतरे का पुनर्मूल्यांकन करने और आवश्यक समझे जाने वाले उपाय करने का निर्देश दिया गया।

साथ ही सरकारी अधिवक्ता की दलील के आधार पर जोड़ा था कि यदि प्रेमी युगल समान नागरिक संहिता कानून के अनुसार 48 घंटे के भीतर रजिस्ट्रार के समक्ष पंजीकरण कराया जाता है तो सुरक्षा प्रदान की जाए।

कोर्ट ने 18 जुलाई के आदेश में राज्य सरकार के अधिवक्ता की ओर से समान नागरिक संहिता, उत्तराखंड-2024 के आधार पर प्रस्तुत दलील को आदेश के पैराग्राफ संख्या तीन व चार में नोट किया था।

इसके बाद राज्य सरकार की ओर से कोर्ट के आदेश को वापस लेने अथवा आदेश के पैराग्राफ संख्या तीन और चार को हटाकर संशोधित करने के लिए रिकॉल प्रार्थना पत्र दाखिल किया गया।

वरिष्ठ न्यायाधीश न्यायमूर्ति मनोज कुमार तिवारी व न्यायमूर्ति पंकज पुरोहित की खंडपीठ में सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ताओं के अधिवक्ता ने कहा कि सरकार के रिकॉल प्रार्थना पर उन्हें कोई आपत्ति नहीं है, हालांकि, आदेश वापस लेने की मांग पर आपत्ति है, जिसमें याचिकाकर्ताओं को छह सप्ताह की अवधि के लिए संरक्षण प्रदान किया गया था।

सरकार के अधिवक्ता की ओर से कहा गया कि रिकॉल आवेदन के रूप में प्रस्तुत किया गया है, आवेदन के प्रार्थना खंड में आदेश में संशोधन की भी मांग की गई है।

आवेदन को संशोधन आवेदन के रूप में माना जाना चाहिए। राज्य सरकार के अधिवक्ता की ओर से प्रार्थना पत्र में उल्लेख किया गया है कि महामहिम राष्ट्रपति ने समान नागरिक संहिता, उत्तराखंड, 2024 को स्वीकृति दे दी है, लेकिन अधिनियम अभी तक लागू नहीं हुआ है, क्योंकि समान नागरिक संहिता, उत्तराखंड, 2024 की धारा 1(2) के अंतर्गत कोई अधिसूचना राज्य सरकार की ओर से जारी नहीं की गई है।

खंडपीठ ने सरकारी अधिवक्ता के प्रस्तुतीकरण पर आधारित तथ्यों व परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए 18 जुलाई के आदेश में अंतिम पैराग्राफ-तीन, चार और पांच को हटाने का आदेश पारित किया।

आपके शहर की हर बड़ी खबर, अब आपके फोन पर। डाउनलोड करें लोकल न्यूज़ का सबसे भरोसेमंद साथी- जागरण लोकल ऐप।