STH Haldwani : प्रतिदिन औसतन 15 सौ मरीज, MRI मशीन 15 साल पुरानी, बर्न यूनिट में एक भी सर्जन नहीं
Sushila Tiwari Hospital Haldwani सुशीला तिवारी अस्पताल पर मरीजों का बाेझ तो बढ़ता जा रहा है लेकिन सुविधाओं में इजाफा नहीं हो रहा है। एसटीएच की ओपीडी में पहले औसतन 1200 1200 मरीज पहुंचते थे। अब यह संख्या 1800 को पार कर गई है।
By ganesh joshiEdited By: Skand ShuklaUpdated: Mon, 28 Nov 2022 08:08 AM (IST)
जागरण संवाददाता, हल्द्वानी : कुमाऊं के सबसे बड़े सुशीला तिवारी अस्पताल (Sushila Tiwari Hospital Haldwani) पर मरीजों का बाेझ तो बढ़ता जा रहा है, लेकिन व्यवस्थाएं बदतर होती जा रही हैं। जिस अस्पताल से पूरे मंडल के मरीजों और तीमारदारों की आस है, वहीं सबसे अधिक मुसीबत झेलनी पड़ जा रही है। एसटीएच की ओपीडी में पहले औसतन 1200 1200 मरीज पहुंचते थे। अब यह संख्या 1800 को पार कर गई है।
यही हाल भर्ती होने वाले मरीजों का है। आलम यह है कि 15 वर्ष से हांफ रही एमआरआइ (MRI) की बूढ़ी हो चुकी मशीन अक्सर दगा देने लगी है। नई मशीन कब लगेगी कुछ नहीं पता। तमाम अन्य महत्वपूर्ण विभाग भी सरकारी कुनीति की भेंट चढ़े हैं। कुछ विभागों में तो एक भी स्पेशलिस्ट नहीं बचे हैं।
हांप रही है एमआरआइ मशीन
एसटीएच में 15 वर्ष पुरानी एमआरआइ मशीन (MRI) अब हांफने लगी है। पिछले कई वर्षों से छह महीने से पहले ही खराब हो जाती है, जिसे ठीक करने में दो से चार दिन तक लग जाते हैं। एकमात्र मशीन होने के चलते सबसे अधिक नुकसान गरीब मरीजों को उठाना पड़ता है।पिछले पांच साल से नई मशीन लगाने की प्रक्रिया चल रही है, लेकिन अभी तक कुछ भी नहीं हुआ।बढ़ते मरीजों की संख्या और केवल एक रेडियालाजिस्ट
दुर्भाग्य देखिए कि पहले तीन महीने तक रेडियो डायग्नोसिस विभाग बिना रेडियोलाजिस्ट का रहा। जागरण ने इस मुद्दे को प्रभावी तरीके से उठाया। अब केवल एक रेडियाेलाजिस्ट की तैनाती है। जबकि अस्पताल में कुमाऊं के अतिरिक्त पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मरीजाें दबाव है। ऐसे में व्यवस्था का अंदाजा लगाया जा सकता है।
मेडिसिन विभाग व गाइनी में दबाव ज्यादा, डाक्टर कम
मेडिसिन विभाग विभाग में 30 डाक्टरों में 12 डाक्टर कार्यरत हैं। स्त्री एवं प्रसूति रोग विभाग में 23 डाक्टरों में केवल 10 डाक्टर कार्यरत हैं। इसका खामियाजा जहां मरीजों को झेलना पड़ता है, वहीं चंद डाक्टरों पर भी अत्यधिक दबाव रहता है। इस कमी के चलते एमबीबीएस से लेकर एमडी-एमस की पढ़ाई भी प्रभावित होती है। इस पर शासन में बैठै जिम्मेदार अधिकारियों का ध्यान नहीं है।
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राज्य का पहला राजकीय मेडिकल कालेज और इसके अधीन संचालित डा. सुशीला तिवारी अस्पताल में पिछले 10 वर्ष से केवल एक प्लास्टिक सर्जन कार्यरत थे। उनका न समय पर प्रमोशन हुआ और न स्थायी हुए। उन्होंने नौकरी छोड़ दी है। पांच करोड़ से अधिक लागत से बर्न यूनिट बनाया था। जिसमें कई खामियां भी थी। जेसे-तैसे संचालित हो रहा था। अब एकमात्र डाक्टर के छोड़ने से यह यूनिट राम भरोसे हो गया है। जबकि इस यूनिट में प्रतिमाह से 30 से अधिक मरीज केवल जले हुए पहुंचते हैं।यूरो व न्यूरो में भी नहीं पर्याप्त सुविधाएं
अस्पताल में यूरोलाजिस्ट व न्यूरोलाजिस्ट कार्यरत हैं, लेकिन इन सुपरस्पेशलिस्ट विभाग में मानक के अनुसार सुविधाएं नहीं हैं। जबकि बार-बार डिमांड भेजी जाती है। फिर भी इस मामले को गंभीरता से नहीं लिया जाता है।चिकित्सा शिक्षा निदेशक से लेकर सचिव, विभागीय मंत्री से लेकर सीएम तक निरीक्षण कर चुके हैं।सुविधाओं का मुद्दा उठता है, लेकिन समाधान नहीं होता है।गौरतलब
- 15 वर्ष पुरानी एमआरआइ मशीन अक्सर दे देती है धोखा
- 40 मरीजों की प्रतिदिन हो जाती है एमआरआइ जांच
- 45 से अधिक मरीजों की हो जाता है अल्ट्रासाउंड
- 01 प्लास्टिक सर्जन ने भी दे दिया इस्तीफा
- 01 रेडियोलाजिस्ट ही रेडियो डायग्नोसिस विभाग में कार्यरत
- 1500 से 1800 मरीज प्रतिदिन पहुंचते हैं ओपीडी में
- 500 से अधिक मरीज एक बार में रहते हैं भर्ती
- 30 से अधिक मरीज बर्न के प्रतिमाह पहुंचते हैं अस्पताल
- 400 डाक्टरों के सापेक्ष 180 ही कार्यरत
- 320 स्टाफ नर्स के सापेक्ष 250 ही कार्यरत