जल संरक्षण और परंपरा के श्रोत कुएं पर दबंगों ने किया कब्जा NAINITAL NEWS
कुआं जल संरक्षण का एक बढिय़ा माध्यम था। घर की ढ्योरी पार करने से पहले बहूं कुएं को सास की सेवा कराने का वादा करती है।
By Skand ShuklaEdited By: Updated: Fri, 05 Jul 2019 01:04 PM (IST)
काशीपुर, जेएनएन : कुआं जल संरक्षण का एक बेहतर जरिया था। घर की ढ्योरी पार करने से पहले बहूं कुएं पर जाकर सास की सेवा करने का संकल्प लेती हैं। लेकिन संरक्षण और परंपरा के इस सशक्त माध्यम पर वर्तमान में ज्यादातर कुओं पर दबंगों ने एक-एक कर अवैध कब्जाकर लिया है। कई कुओं पर तो भवन खड़े हो गए हैं तो कहीं पार्किंग बना दी गई है। जो कुएं बचे भी हैं, उनका भी बुरा हाल है। कुओं को बचाने के लिए प्रशासन ने कभी प्रयास नहीं किया। ऐसी स्थिति में पूजा करने के लिए लोगों को कुएं भी नहीं मिल रहे हैं। साथ ही भूजल स्तर भी नीचे खिसकता जा रहा है। यही नहीं, कुओं पर पानी निकालने के लगे रेहड़ लोगों को मेहनत से आगे बढऩे की प्रेरणा देता है।
यह है लोक परंपरा
कुआं खुदाई कराना पुण्य का काम माना जाता था। बच्चे का जन्म होने पर, नवरात्र और शादी के बाद कुओं पर पूजा होती है। जब बहू घर आती है, उससे इससे पहले सास कुएं पर बैठ जाती हैं। बहू जब सास की सेवा करने का वादा करती करती है, तब सास घर जाने को राजी होती हैं। मानसून आने से पहले दलित बस्तियों में कुओं की पूजा की जाती है कि पानी साफ हो जाए। इसके लिए मीठा चावल कुओं में चढ़ाया जाता है। कुएं का पानी शुद्ध व ताजा होता है। साल में एक बार गर्मी के दिनों में कुओं की सफाई की जाती थी। जिससे बारिश का साफ पानी एकत्र हो जाए। इससे न केवल कुओं के पानी से फसलों की सिंचाई भी होती थी, बल्कि जल संचय भी होता था।
सौ कुओं में बचे सिर्फ 22
जब नगर निगम का क्षेत्रफल आठ वर्ग किलोमीटर में थो तो करीब सौ कुएं थे। जिनमें वर्तमान में करीब 22 कुएं भी बचे हैं, मगर इनमें दो-तीन कुओं को छोड़कर किसी कुएं का पानी पीने लायक नहीं है। कुएं उपेक्षित पड़े हैं। बचे कुओं में भी कुछ कुओं को दबंग पाटनेे की फिराक में हैं। महाराणा प्रताप चौक के पास एक बड़ा कुआं था, जिसे करीब 18 साल पहले पाट दिया गया और वर्तमान में इस पर दुकानदारों की बाइकें खड़ी रहती हैं। इसके आसपास कपड़ा व्यावसायी फड़ लगाते हैं। मोहल्ला काजीबाग, खालसा,पदमा देवी कालोनी, मछली बाजार, लाहोरियान में कुओं को पाट दिया गया है।
जिम्मेदारों ने भी नहीं रखा काेई ध्यान महाभारत काल के गिरीताल मंदिर है के पास एक बड़ा कुआं है, जिसे पाटकर प्रतीक के तौर पर मात्र चार इंच की चौड़ाई में सीमित कर दिया गया है। वर्तमान में नगर निगम का क्षेत्रफल बढ़कर 40 वर्ग किलोमीटर हो गया है। ऐसे मे कुओं की संख्या काफी होंगी। हालांकि निगम में शामिल गांवों के कुओं की गणना नहीं की जा सकी है। हैरानी यह है कि नगर निगम के क्षेत्र के कुएं निगम की संपत्ति है, मगर इसे बचाने का काम अफसरों ने नहीं किया और इसी का नतीजा रहा कि दबंगों ने पाटकर भवन खड़ा कर दिया है। बचे कुओं की सफाई भी नहीं कराई जाती है। इससे गंदगी से कुएं पटे हैं। जल संरक्षण न होने से भूजल स्तर नीचे खिसकता जा रहा है। इसके बावजूद प्रशासन की नींद नहीं खुल रही है।
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