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पूर्व मुख्यमंत्रियों को सुविधाओं का बकाया माफ करने संबंधी अध्यादेश को चुनौती देती याचिका बंद

पूर्व मुख्यमंत्रियों पर आवास समेत अन्य सुविधाओं का बकाया माफ करने संबंधी अध्यादेश के खिलाफ दायर जनहित याचिका को हाई कोर्ट ने बंद कर दिया है।

By Skand ShuklaEdited By: Updated: Tue, 18 Feb 2020 08:50 AM (IST)
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पूर्व मुख्यमंत्रियों को सुविधाओं का बकाया माफ करने संबंधी अध्यादेश को चुनौती देती याचिका बंद
नैनीताल, जेएनएन : पूर्व मुख्यमंत्रियों पर आवास समेत अन्य सुविधाओं का बकाया माफ करने संबंधी अध्यादेश के खिलाफ दायर जनहित याचिका को हाई कोर्ट ने बंद कर दिया है। कोर्ट में अध्यादेश के अधिनियम बनने के खिलाफ नई पीआइएल विचाराधीन है। जिस पर सुनवाई 25 फरवरी को होगा।

रुलक संस्था ने हाई कोर्ट में जनहित याचिका दायर कर राज्य सरकार के इस अध्यादेश को चुनौती दी। इस अध्यादेश में सुविधाओं का बकाया बहुत हद तक माफ किया गया था। राज्य सरकार इस अध्यादेश को विधानसभा में पारित कर अधिनियम बना चुकी है। जिसे रुलक ने फिर से पीआइएल दायर की है। मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति रमेश रंगनाथन व न्यायमूर्ति रमेश चंद्र खुल्बे की खंडपीठ ने मामले को सुनने के बाद पुरानी पीआइएल को बंद कर दिया। यहां उल्लेखनीय है कि नई पीआइएल में कोर्ट ने महाराष्ट्र के राज्यपाल पूर्व सीएम भगत सिंह कोश्यारी, केंद्रीय मंत्री व पूर्व सीएम डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक, पूर्व सीएम बीसी खंडूड़ी, पूर्व सीएम विजय बहुगुणा को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है।

अध्यादेश में इन सुविधाओं का जिक्र

राज्य के पूर्व मुख्यमंत्रियों को आवंटित सरकारी आवास के किराये का भुगतान बाजार दर के बजाय सरकारी दर से करना होगा। हाईकोर्ट ने पूर्व मुख्यमंत्रियों को बाजार दर से सरकारी आवास का किराया भुगतान करने के आदेश दिए थे। सरकारी आवास के किराये का निर्धारण सरकार करेगी। वहीं आवास के बिजली, जल मूल्य व सीवर शुल्क आदि का भुगतान आवंटन की तिथि से पूर्व मुख्यमंत्री करेंगे। वाहन, चालक, विशेष कार्याधिकारी या जनसंपर्क अधिकारी, टेलीफोन समेत कई सुविधाएं मुफ्त रहेंगी। खास बात ये है कि ये सभी सुविधाएं राज्य गठन के बाद से 31 मार्च, 2019 तक ही मिलेंगी। यानी वर्तमान में कोई भी पूर्व मुख्यमंत्री आवास समेत किसी भी सरकारी सुविधा का उपयोग नहीं कर सकेगा। अब तक के सभी पूर्व मुख्यमंत्रियों को सुविधा देने के लिए उक्त अध्यादेश को राज्य गठन की तिथि नौ नवंबर, 2000 से लागू किया गया है। यह अध्यादेश उन्हीं पूर्व मुख्यमंत्रियों पर लागू होगा, जिन्हें राज्य सरकार ने सरकारी आवास आवंटित किए हैं।

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