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Prakash Parv 2022 : धर्म प्रचार यात्रा के लिए 1514 में उत्तराखंड में विभिन्न स्थानों पर पहुंचे थे गुरु नानक

Prakash Parv 2022 नानकमत्ता में गुरुनानक देव ने पीपल के सूखे वृक्ष के नीचे आसन लगाया उनके प्रभाव से सूखा वृक्ष हरा हो गया। आज जिसे पीपल साहिब के नाम से जाना जाता है। नानकमत्ता साहिब में दूध का कुआं भी गुरुदेव की आध्यात्मिक शक्ति से जुड़ा बताया जाता है।

By Jagran NewsEdited By: Skand ShuklaUpdated: Tue, 08 Nov 2022 11:30 AM (IST)
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Prakash Parv 2022 : गुरुदेव की यात्रा के बाद मिला था नानकमत्ता और रीठा साहिब नाम
गणेश पांडे, हल्द्वानी : Prakash Parv 2022 : सिख समाज आज गुरु नानक देव जी का 553वां प्रकाशपर्व मनाने जा रहा है। गुरुद्वारों में विशेष आयोजन होंगे। समाज को एकजुटता, भाईचारा व समानता का संदेश देने वाले गुरु नानक देव का कुमाऊं से गहरा जुड़ाव रहा है। सिखों के पहले गुरु नानक देव ने कुमाऊं के कई स्थानों पर पैदल यात्रा कर किरत करो, नाम जपो, वंड छको का उपदेश दिया। हिंदी में इसका मतलब है नाम जपें, मेहनत करें और बांटकर खाएं। गुरुद्वारों में होने वाले लंगर में यह परंपरा सहज रूप से दिखती है।

सामाजिक संदेश देने के लिए गुरु नानक देव ने देशभर में धर्म प्रचार यात्रा की। जिसे नाम दिया उदासी। राष्ट्रीय सिख संगत के जिला महामंत्री दलजीत सिंह चड्ढा बताते हैं कि गुरु नानक देव ने 1514 में करतारपुर से अपनी तीसरी उदासी शुरू की। उस समय कलानौर, कांगड़ा, कुल्लू, देहरादून होते हुए नानक देव अल्मोड़ा पहुंचे थे। फिर रानीखेत, नैनीताल होते हुए नानकमत्ता गए।

गुरुद्वारा नानकमत्ता साहिब का प्राचीन नाम गोरखमत्ता था। गुरु नानक देव के यहां आने के बाद से इसे नानकमत्ता साहिब नाम से जाना जाने लगा। चड्ढा बताते हैं गुरु नानक देव जी का मत था कि ईश्वर की साधना शरीर पर राख मलकर या भांग-धतूर का सेवन करने से नहीं हो सकती। परिवार की सेवा सबसे सच्ची ईश्वरीय सेवा है। इसलिए घर-गृहस्थी व परिवार के बीच रहकर सच्चे मन ने ईश्वर की अर्चना करो।

कुमाऊं से जुड़ाव के कई प्रसंग

गुरु नानक देव की नजर में सच्चा योगी वह है जो एक दृष्टि से सभी प्राणियों को समान जानता है। दलजीत सिंह चड्ढा बताते हैं कि नानकमत्ता में कुछ योगियों के पूछने पर नानक देव ने खुद को मन, वचन व कर्म से सत्य का शिष्य बताया था।

कहा जाता है कि नानकमत्ता में गुरु नानक देव ने पीपल के सूखे वृक्ष के नीचे आसन लगाया, उनके प्रभाव से सूखा वृक्ष हरा हो गया। आज जिसे पीपल साहिब के नाम से जाना जाता है। नानकमत्ता साहिब में दूध का कुआं भी गुरुदेव की आध्यात्मिक शक्ति से जुड़ा बताया जाता है।

जब मीठे स्वाद में बदल गया कड़वा रीठा

गुरु नानक देव चंपावत के रीठासाहिब गुरुद्वारा में पहुंचे थे। वह अपने दो शिष्यों के साथ रीठा साहिब आए। कहा जाता है तब उनके शिष्य मरदाना ने भूख लगने की बात कही। नानक देव ने रीठा के फल तोड़कर खाने की सलाह दी। गुरु नानक देव की दिव्य दृष्टि से कड़वा रीठा मीठा हो गया। तब से इस स्थान का नाम रीठा साहिब पड़ गया। यहां प्रसाद में रीठा फल बांटने की परंपरा है।

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