20 साल से नि:शुल्क शिक्षा दे रहे हैं प्रेम चंद चौहान, जानिए और भी बहुत कुछ
प्रेम चंद चौहान के त्याग और समर्पण की जानकारी कुछ ही लोगों को होगी। स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति लेकर वह पिछले 20 साल से निश्शुल्क शिक्षा की अलख जगा रहे हैं।
By Skand ShuklaEdited By: Updated: Fri, 04 Jan 2019 06:40 PM (IST)
रुद्रपुर, कंचन वर्मा : उम्र 76 का आंकड़ा पार कर चुकी है, पर उनका जोश और जुनून देखते ही बनता है। धन और पद की लालसा उन्हें कभी नहीं रही तो आज भी वह वटवृक्ष की तरह तटस्थ हैं। उनका मकसद है, शिक्षा को चांद सा दमकाना ताकि प्रेम रूपी शिक्षा का अमृत विद्यार्थियों पर बरसता रहे। हम बात कर रहे हैं ऐसी काया की जो संकल्पित है अज्ञानता का अंधकार मिटाने को। कम ही लोग होंगे जिन्हें प्रेम चंद चौहान के इस त्याग और समर्पण का ज्ञान होगा। स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति लेकर वह पिछले 20 साल से निश्शुल्क शिक्षा की अलख जगा रहे हैं।
प्रेम चंद चौहान मूल रूप से उत्तर प्रदेश के बागपत जिले में पाली गांव के रहने वाले हैं। सुदूर गांवों तक शिक्षा की लौ पहुंचाना उनके जीवन का संकल्प था, इसीलिए 33 साल सेवा देने के बाद गुड़गांव के डीएवी स्कूल से वर्ष 1998 में उन्होंने स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ले ली। पहले शिक्षकों को शिक्षित करने वाली संस्था डीपीइपी में प्रोजेक्ट अफसर के पद पर कार्य किया। शिक्षकों को शिक्षा के प्रति झकझोरा और उन्हें जिम्मेदारी का पाठ पढ़ाया। इस बीच उनकी मुलाकात महामंडलेश्वर स्वामी धरमदेव से उनके आश्रम में हुई। शिक्षा के प्रति प्रेम चंद्र के लगन को देखते हुए ही स्वामी धरमदेव ने उन्हें उत्तराखंड के रुद्रपुर (यूएसनगर जिले) में चलाए जा रहे स्कूल में पढ़ाने के लिए कहा।
प्रेमचंद राजी हुए पर इस शर्त पर कि वह शिक्षण कार्य के एवज में कोई पैसा नहीं लेंगे। 2003 में उन्होंने यहां भूरारानी स्थित भंजुराम इंटर कालेज में शिक्षा का ज्ञान बांटना शुरू किया। उस वक्त नर्सरी से दसवीं तक तीन सौ बच्चे थे। समर्पण ही कहेंगे कि आज यह स्कूल वटवृक्ष बन चुका है। यहां 15 सौ से अधिक बच्चे अध्ययनरत हैं। प्रेम चंद स्कूल के प्रधानाचार्य की जिम्मेदारी भी निभा रहे हैं। उनकी मेहनत का परिणाम है कि आज स्कूल का रिजल्ट सौ फीसद रहता है। इस स्कूल ने कई टॉपर भी प्रदेश को दिए हैं। वजह, स्कूल के साथ ही वह दो घंटे गरीब व कमजोर वर्ग के बच्चों को ट्यूशन के लिए भी समय देते हैं। चौहान का मानना है कि भगवान ने जो हुनर दिया है, उसका सदुपयोग करें और देश के भविष्य को शिक्षा के उजाले की ओर ले जाएं।
शिक्षा के लिए परिवार से दूरी
प्रेम चंद चौहान की शादी 1965 में हुई थी। दो पुत्र जयवीर ङ्क्षसह और परमवीर ङ्क्षसह हैं। पेशे से सीए जयवीर चाइना की जैनपैक कंपनी में सीनियर प्रेसीडेंट तो परमवीर एफसीसी कंपनी, गुडगांव में डीजीएम हैं। दोनों ही परिवार के साथ हैं। कई बार उन्होंने पिता को अपने पास बुलाने की कोशिश की लेकिन प्रेम चंद नहीं गए। जबकि उनकी पत्नी कला देवी परमवीर के साथ गुडगांव में रह रही हैं।
हसरत अभी भी पूरी नहीं... प्रेमचंद कहते हैं कि जिस लक्ष्य को लेकर वह यहां आए थे, वह अभी पूरा नहीं हुआ। उनका उद्देश्य बच्चों को शिक्षा देने के साथ ही इसी कैंपस में उन्हें रोजगारपरक कोर्स कराकर आत्मनिर्भर बनाने का है। विद्यालय की 13 एकड़ भूमि पर वह छात्रों के लिए क्रिकेट एकेडमी खोलना चाहते हैं।
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