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निजी अस्पताल संचालकों की हड़ताल : इमरजेंसी में स्ट्रेचर पर मरीजों का उपचार

निजी अस्पताल संचालकों की हड़ताल से सरकारी अस्पतालों पर मरीजों का दबाव लगातार बढ़ रहा है। जिंदगी और मौत की स्थिति में भरोसे से उठ चुकी सरकारी सुविधा ही लोगों की उम्मीद बन रही है।

By Skand ShuklaEdited By: Updated: Fri, 22 Feb 2019 10:31 AM (IST)
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निजी अस्पताल संचालकों की हड़ताल : इमरजेंसी में स्ट्रेचर पर मरीजों का उपचार
ल्द्वानी, जेएनएन : निजी अस्पताल संचालकों की हड़ताल से सरकारी अस्पतालों पर मरीजों का दबाव लगातार बढ़ रहा है। जिंदगी और मौत की स्थिति में भरोसे से उठ चुकी सरकारी सुविधा ही लोगों की उम्मीद बन रही है। स्थिति जानने के लिए दैनिक जागरण की टीम ने गुरुवार रात 11 बजे एसटीएच का जायजा लिया। प्रस्तुत है लाइव रिपोर्ट।

इमरजेंसी में स्ट्रेचर पर मरीजों का उपचार

इमरजेंसी में लगे तीनों बैड पर मरीज लेटे हैं। तीनों उम्रदराज हैं। स्ट्रेचर पर लेते दर्द से कराह रहे व्यक्ति को डॉक्टरों की टीम उपचार देने में जुटी है। पास महिला खड़ी हैं। पूछने पर बोली स्ट्रेचर पर उनके पति अशोक (52) हैं। अब्दुला बिल्डिंग के पास रहने वाले अशोक सिर पर अचानक असहनीय दर्द होने से गिर पड़े थे। प्राइवेट वाहन से अस्पताल पहुंचे। बाहर से स्ट्रेचर पर एक और मरीज पहुंच जाता है। कमरे में जगह न होने से उन्हें कुछ देर बाहर ही रोका जा रहा है।

150 किमी दूर से पहुंचे नहीं मिला एनआइसीयू

अल्मोड़ा जिले के दन्या से आए रेखा व गिरीश जोशी चार दिन की बच्ची को लेकर पहुंचे हैं। बच्ची दूध नहीं पी रही। गुरुवार सुबह 60 किमी चलकर अल्मोड़ा बेस आए। दो घंटे सुधार नहीं हुआ तो डाक्टर ने रेफर कर दिया। टैक्सी बुक कर देर रात हल्द्वानी पहुंचे। अस्पताल प्रशासन एनआइसीयू खाली न होने की बात कहने रहे। छात्रसंघ के कुछ पदाधिकारी सीएमओ व एमएस को फोन घनघनाने में लगे रहे।

बीस मिनट में दो लोगों की मौत

हम दूसरे फ्लोर की ओर बढ़ रहे हैं। रोती-बिलखती महिला को सराहा देकर कुछ लोग दूसरी मंजिल से नीचे की तरफ ला रहे हैं। पूछने पर साथ के लोग बताते हैं बद्रीपुरा से आए हैं पांच दिन से भर्ती हंसा दत्त की अभी-अभी मौत हो गई। ब्रेस हेमरेज होने के कुछ सालों से वह बीमार थे। प्राइवेट अस्पतालों से इलाज चल रहा था। निजी अस्पताल बंद होने से एसटीएच लेकर आए थे। ऐनेस्थीसिया वार्ड से घुमकर हम लौटे तो 28 साल का नौजवान बिलखता हुआ बेंच पर धड़ाम से बैठ गया। साथी सहारा दे रहे हैं। साथ के युवक ने बताया रोने वाले के पिता बबन (55) को एक घंटे पहले हार्ट अटैक पड़ा। उन्होंने दम तोड़ दिया।

जिंदगी के लिए मौत से लड़ रही लावन्या

कुत्ते के हमने के बाद एसटीएच लाई गई रानीखेत की लावन्या (5) एनेस्थीसिया आईसीयू में भर्ती है। वह बेसुध पड़ी हैं। सांस तक नहीं ले पा रही। डाक्टर बताते हैं जख्म गहरे हैं। खून अधिक बह गया है। रेबीज का बैक्टीरिया तेजी से शरीर में फैल रहा है। डॉक्टर हौंसला दे रहे हैं। आईसीयू के बाहर परिजन कभी बेंच पर बैठते हैं तो कभी इधर-उधर टहलने लग जाते हैं। पिता राजेंद्र भारती एक बार व्यवस्था को कोसते हैं, दूसरे पल भगवान का नाम लेने लग जाते हैं। पांच-सात लोगों के साथ आईसीयू वार्ड के बाहर खड़े पिता कहते हैं रानीखेत में दो प्राइवेट अस्पताल हैं। वो खुले होते तो बेटी को तुरंत इलाज मिल जाता। साथ में खड़े बिटिया के ताऊ ने बताया सरकारी अस्तपाल से एंबुलेंस तक नहीं मिली, टैक्सी से हल्द्वानी आना पड़ा।

मरीजों की बढ़ती संख्या से अस्पताल के कंधों पर बढ़ा बोझ 

निजी चिकित्सकों की हड़ताल अब सरकारी अस्पतालों पर भारी पडऩे लगी है। दिनों दिन बढ़ती मरीजों की संख्या को संभालना मुश्किल हो गया है। रात हो या दिन, हर पहर मरीजों को मुश्किलें झेलनी पड़ रही हैं। हल्द्वानी स्थित एसटीएच और बेस अस्पताल कुमाऊं के दो सबसे बड़े अस्पताल हैं, ऐसे में दूसरे जिलों के मरीज भी रेफर होकर यहीं आ रहे हैं। इससे इन दो अस्पतालों पर लोड काफी बढ़ गया है। मगर यहां कई विशेषज्ञ डॉक्टरों की कमी और अन्य सुविधाओं का अभाव मरीजों की तकलीफों को और बढ़ा रहा है। इसके चलते यहां से भी मरीजों को यूपी के अस्पतालों में रेफर किया जाने लगा है। गुरुवार को ओपीडी से लेकर इमरजेंसी तक तीमारदार घंटों अपने मरीजों को लेकर भटकते रहे। एक्स-रे रूम में भी भारी भीड़ लगी रही।

1550 के पार पहुंची ओपीडी

अस्पताल में प्रतिदिन करीब 300 की ओपीडी बढ़ रही है, जिसे देखकर चिकित्सकों के हौसले पस्त दिखाई दिए। फिर भी अस्पताल मरीजों को भर्ती करने की कोशिश में लगे रहे। गुरुवार को एसटीएच की ओपीडी में 1550 मरीज पहुंचे।

गंभीर बीमारी का इलाज नहीं

चिकित्सकों की कमी हड़ताल से उपजी समस्या और बढ़ा रही है। एसटीएच में सुपर स्पेशलिस्ट की सुविधा नहीं है। यहां न्यूरो, कार्डियोलाजिस्ट, गेस्ट्रोलाजिस्ट के साथ पीडीआरवी के सर्जन भी नहीं है।

डॉक्टरी सलाह के बिना मिल रही दवाएं

जिले के अंदर 800 के करीब मेडिकल स्टोर है। अस्पतालों के पास वाले मेडिकल स्टोर स्वामी इस हड़ताल का फायदा उठा रहे हैं। अस्पताल में भीड़ देखकर कई मरीज मेडिकल स्टोर से ही बीमारी बताकर दवा ले रहे हैं।

सुनिए मरीजों और तीमारदाराें का दर्द

पिथौरागढ़ से आए थे। भाई की स्थिति गंभीर थी और पैर की हड्डी भी टूटी थी तो ऐसे में उनको एसटीएच लेकर आए थे, मगर यहां से राममूर्ति अस्पताल के लिए रेफर कर दिया गया है।

- राहुल, पिथौरागढ़

अब्बू को गले में प्रॉब्लम है। पहले सांई हॉस्पिटल लेकर गए थे, मगर हड़ताल की वजह से एसटीएच आए हैं। अपने नंबर का इंतजार कर रहे हैं।

- अकील, इंदिरानगर 

मां की आंखों में समस्या हो रही है। रुद्रपुर से एसटीएच रेफर कर दिया गया है। यहां आकर अब तक भर्ती नहीं किया है। कोई देखने भी नहीं आया। इंतजार कर रहे हैं।

-अजय कुमार, रुद्रपुर

मां के पेट में दर्द है। उन्हें भर्ती कराना चाहता हूं, लेकिन बिस्तर नहीं मिल पा रहा है। हालत काफी गंभीर है। बार-बार बेहोश हो जा रही हैं।

- खेमकरन, रामपुर

यह रहा अस्पताल का ब्योरा

ओपीडी                          1550

आईपीडी                         544

एडमिट                            80

डिस्चार्ज                          90

एमआरआइ                      30

सीटी स्कैन                       35

एक्सरे                              240

गाइनी डिलीवरी                18

इमरजेंसी में आए मरीज      86

मरीजों का काेई रिकार्ड नहीं रहता

डॉ. अरुण जोशी, वरिष्ठ जिला चिकित्साधीक्षक ने बताया कि रेफर मरीजों का हमारे पास कोई रिकार्ड नहीं रहता। जरूरत के हिसाब से रेफर करते हैं। मरीजों की संख्या प्राइवेट चिकित्सकों के कारण कुछ बढ़ी है, लेकिन सभी को देखने और उपचार करने के प्रयास चल रहे हैं।

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