पहाड़ के पारंपरिक ज्ञान से ही दूर होगी जलवायु परिवर्तन की समस्या, जानिए कैसे
अब सरकार के साथ वैज्ञानिक भी मान चुके हैं कि हिमालयी राज्यों के निवासियों के पारंपरिक ज्ञान में वैज्ञानिक रहस्य छिपे हैं। वैज्ञानिकों ने भी इस बात की पुष्टि की है।
By Skand ShuklaEdited By: Updated: Sun, 24 Feb 2019 10:00 PM (IST)
नैनीताल, किशोर जोशी : अब सरकार के साथ वैज्ञानिक भी मान चुके हैं कि हिमालयी राज्यों के निवासियों के पारंपरिक ज्ञान में वैज्ञानिक रहस्य छिपे हैं। वैज्ञानिक बिरादरी का साफ मानना है कि हिमालयी समाज के ज्ञान से जलवायु परिवर्तन की वैश्विक समस्या का समाधान मुमकिन है। अब भारत सरकार के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग ने इन हिमालयी राज्यों के पारंपरिक ज्ञान पर आधारित खेती-बाड़ी, भूमि संरक्षण, जल संरक्षण समेत अन्य ज्ञान के अध्ययन के लिए पूरे देश में 131 शोध परियोजनाएं लांच की हैं। इन परियोजनाओं के संचालन के लिए बनी टास्क फोर्स का जिम्मा प्रतिष्ठित व नामी वैज्ञानिकों को सौंपा गया है। यह टास्क फोर्स 12 हिमालयी राज्यों का अध्ययन कर 2021 तक रिपोर्ट भारत सरकार को सौंपेगी, जिसके बाद अगले दो दशक तक हिमालयी क्षेत्र के विज्ञान आधारित विकास का खाका खींचा जाएगा। साथ ही योजनाओं का क्रियान्वयन होगा।
माउंटेन ओरिएंटेड बनेगा विकास का मॉडल जवाहर लाल नेहरू विवि के प्रति कुलपति प्रो. सतीश गड़कोटी कुमाऊं विवि की विशेषज्ञ समिति की बैठक में शामिल होने नैनीताल आए थे। भारत सरकार ने टास्क फोर्स का जिम्मा चंपावत जिले के बिसज्यूला पट्टी के गड़कोट के मूल निवासी प्रो. गड़कोटी को ही सौंपा है। मल्लीताल में दैनिक जागरण से विशेष भेंट में प्रो. गड़कोटी ने कहा कि हिमालयी क्षेत्र के विकास के लिए माउंटेन ओरिएंटेड मॉडल तैयार करना होगा। पर्वतीय क्षेत्र में एक क्षेत्र में एक मॉडल कारगर नहीं हो सकता। इसलिए क्षेत्र विशेष के लिए अलग-अलग विकास के मॉडल बनाने होंगे। उन्होंने कहा कि विकास के आयातित मॉडल से पहाड़ से पलायन को नहीं रोका जा सकता।
विज्ञान और विकास एक दूसरे के पूरकसरकार ने ऐसी ही एक परियोजना के संचालन का जिम्मा जीबी पंत हिमालयन पर्यावरण विकास संस्थान अल्मोड़ा के निदेशक प्रो. आरएस रावल को सौंपा है। नैनीताल पहुंचे पिथौरागढ़ निवासी डॉ. रावल के अनुसार अब भारत सरकार भी मान चुकी है कि विज्ञान एवं विकास एक-दूसरे के पूरक हैं। हिमालयी क्षेत्र का विज्ञान आधारित विकास जरूरी है। उन्होंने कहा कि जलवायु परिवर्तन का हिमालयी क्षेत्र में व्यापक प्रभाव पड़ रहा है। इसका गहन अध्ययन किया जा रहा है। इसके लिए नेशनल मिशन फॉर हिमालया प्रोजेक्ट शुरू किया गया है। इसके तहत पेड़ पौधों में आए बदलाव का अध्ययन होगा तो पारंपरिक जैविक फसलों को बढ़ावा दिया जाएगा। इसमें जीबी पंत विवि के वैज्ञानिकों की भी मदद ली जाएगी।
कहां से लाएंगे परंपरागत बीज भले ही भारत सरकार ने परंपरागत फसलों को बढ़ावा देने के लिए प्रोजेक्ट मंजूर किए हैं, मगर सवाल यह उठ रहा है कि हिमालयी राज्यों में परंपरागत बीज आएंगे कहां से। कुमाऊं के ही पर्वतीय क्षेत्रों में नब्बे के दशक में जीबी पंत विवि की ओर से कृषि विज्ञान केंद्रों की स्थापना की गई थी। इन केंद्रों के माध्यम से पहाड़ में परंपरागत बीजों के बजाय हाइब्रिड बीज बांटे गए और परंपरागत बीज छोडऩे के लिए काश्तकारों को प्रेरित किया गया। अब पंतनगर के वैज्ञानिक जैविक खेती की अपील कर रहे हैं।
इन राज्यों पर रहेगा फोकस उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, असम, त्रिपुरा, मणिपुर, मेघालय, अरुणाचल प्रदेश, सिक्किम, जम्मू-कश्मीर, नागालैंड, मिजोरम, पश्चिम बंगाल की पहाड़ी।
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