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मानव-वन्यजीव संघर्ष रोकने के जैविक तरीकों पर होगा रिसर्च nainital news

मानव-वन्यजीव संघर्ष को रोकने के लिए वन अनुसंधान अब उन पारंपरिक व जैविक तरीकों पर रिसर्च करेगा जिनके इस्तेमाल से वन्यजीवों को कोई नुकसान नहीं पहुंचता।

By Skand ShuklaEdited By: Updated: Tue, 31 Dec 2019 09:37 PM (IST)
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मानव-वन्यजीव संघर्ष रोकने के जैविक तरीकों पर होगा रिसर्च nainital news
गोविंद बिष्ट, हल्द्वानी। मानव-वन्यजीव संघर्ष को रोकने के लिए वन अनुसंधान अब उन पारंपरिक व जैविक तरीकों पर रिसर्च करेगा, जिनके इस्तेमाल से वन्यजीवों को कोई नुकसान नहीं पहुंचता। वन अनुसंधान के इस प्रस्ताव को प्रमुख वन संरक्षक से मंजूरी मिल चुकी है। हरिद्वार और लालकुआं को ट्रायल के लिए चुना गया है। यहां हाथी प्रभावित क्षेत्र में जैविक तरीकों को अपनाकर तुलनात्मक अध्ययन किया जाएगा।

उत्तराखंड में करीब 71 प्रतिशत इलाका वन भूमि है। मैदानी भागों में जंगल किनारे बड़ी आबादी रहती है। जिनका मुख्य पेशा खेती है। भोजन की तलाश में अक्सर हाथियों का झुंड आबादी में दस्तक देता है। जिस वजह से वन्यजीवों से लेकर इंसान तक के लिए खतरा पैदा हो जाता है। अब तक वन विभाग हाथी दीवार, खाई खुदवाकर व फेंसिंग पर करंट छोडऩे के साथ पटाखे फोडऩे की तरकीब अपनाता था। हालांकि फेंसिंग करंट पर अब प्रतिबंध लग चुका है। ऐसे में वन अनुसंधान ने प्रस्ताव तैयार कर उन तरीकों पर बड़े पैमाने पर रिसर्च करने की अनुमति मांगी, जो बतौर उपाय प्रभावी साबित हो सकते हैं। वन संरक्षक अनुसंधान संजीव चतुर्वेदी ने बताया कि मुख्यालय ने प्रस्ताव को सहमति दी है। जल्द हरिद्वार व लालकुआं में ट्रायल शुरू होगा।

कंटीले बांस, लेमन ग्रास व मिर्च पर फोकस

वन विभाग के मुताबिक कंटीले बांस को पार करने में हाथी संकोच करता है। इसके अलावा उत्तर-पूर्वी राज्यों में पाई जाने वाली खास किस्म की मिर्च भी उसे नापसंद है। इसके अलावा आसानी से उगने वाली लेमन ग्रास की खुशबू भी गजराज को पसंद नहीं। एक्सपर्ट के अनुसार कुछ जगहों पर लकड़ी के बड़े खंभों पर मधुमक्खियों का छत्ता बसाया जाता है। इनकी आवाज और डंक को पहचान कर भी हाथी क्षेत्र से आवाजाही कम कर देते हैं।

पुराने रिसर्च का भी अध्ययन

इन जैविक तरीकों को ट्रायल में शुरू करने से पहले वन अनुसंधान के अफसरों ने मानव-वन्यजीव संघर्ष से जुड़ी कई रिपोर्ट का अध्ययन भी किया। जिन दो जगहों पर रिसर्च शुरू होगा, वहां पुराने व रिसर्च के दौरान सामने आने वाले आंकड़ों का मिलान कर अंतिम निष्कर्ष निकाला जाएगा। वन संरक्षक अनुसंधान संजीव चतुर्वेदी ने बताया कि हरिद्वार व लालकुआं को चिह्नित कर जल्द ट्रायल शुरू होगा। रिसर्च से पता चलेगा कि संघर्ष किस हद तक कम हो सकता है। कई जगहों पर यह तरीके कारगर साबित हुए हैं।

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