यहां तैयार की गई धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व के रुद्राक्ष के पौधे की नर्सरी, जानिए खासियतें
हल्द्वानी के रामपुर रोड स्थित वानिकी प्रशिक्षण संस्थान (एफटीआइ) में वन अनुसंधान केंद्र ने धार्मिक महत्व के रुद्राक्ष का पौधा क्लोनल विधि से तैयार कर लिया है।
By Skand ShuklaEdited By: Updated: Wed, 01 May 2019 05:55 PM (IST)
हल्द्वानी, जेएनएन : रामपुर रोड स्थित वानिकी प्रशिक्षण संस्थान (एफटीआइ) में वन अनुसंधान केंद्र ने धार्मिक महत्व के रुद्राक्ष का पौधा क्लोनल विधि से तैयार कर लिया है। लंबी प्रक्रिया और शोध के बाद महकमे ने यह सफलता पाई है। वहीं, बढ़ती डिमांड की वजह से नर्सरी में इनके और पौधे तैयार किए जा रहे हैं। बाद में इन्हें आम लोगों को भी उपलब्ध करवाया जाएगा।
आदि काल से रुद्राक्ष धारण करना शुभ माना जाता है। बात अगर औषधीय गुणों की करें तो इसकी बनी माला गले में डालने से रक्तचाप काफी हद तक नियंत्रण में रहता है। वहीं एक, दो, तीन व पांच मुखी रुद्राक्ष का अलग-अलग महत्व बताया गया है। वन अनुसंधान केंद्र हल्द्वानी के प्रभारी मदन बिष्ट ने बताया कि पांच साल पहले नर्सरी में 60 पौधे रोपित किए गए थे। अब क्लोन विधि से नए पौधे तैयार किए जा रहे हैं। क्लोन के माध्यम से बनाए गए पौधे मातृवृक्ष की तरह लगते हैं। लंबी प्रक्रिया व शोध के बाद अनुसंधान केंद्र को रुद्राक्ष का क्लोन बनाने में कामयाबी मिली।
आदि काल से रुद्राक्ष धारण करना शुभ माना जाता है। बात अगर औषधीय गुणों की करें तो इसकी बनी माला गले में डालने से रक्तचाप काफी हद तक नियंत्रण में रहता है। वहीं एक, दो, तीन व पांच मुखी रुद्राक्ष का अलग-अलग महत्व बताया गया है। वन अनुसंधान केंद्र हल्द्वानी के प्रभारी मदन बिष्ट ने बताया कि पांच साल पहले नर्सरी में 60 पौधे रोपित किए गए थे। अब क्लोन विधि से नए पौधे तैयार किए जा रहे हैं। क्लोन के माध्यम से बनाए गए पौधे मातृवृक्ष की तरह लगते हैं। लंबी प्रक्रिया व शोध के बाद अनुसंधान केंद्र को रुद्राक्ष का क्लोन बनाने में कामयाबी मिली।
ऐसे तैयार किए गए रुद्राक्ष
क्लोनल यानी एयर लेयरिंग विधि में तीन-चार साल के पौधे की शाखाओं में पेपपिन से रिंग काटा जाता है। फिर उसके ऊपर मौस लगाई जाती है। बाद में 250 माइक्रोन की पॉलीथिन से ढकने के साथ दोनों तरफ रस्सी बांध दी जाती है। करीब 45 दिन में जड़ें निकल जाती हैं। जिसे काटकर नए बैग में लगाया जाता है। 15-20 दिन बाद यह पौधे रोपने लायक हो जाते हैं।
क्लोनल यानी एयर लेयरिंग विधि में तीन-चार साल के पौधे की शाखाओं में पेपपिन से रिंग काटा जाता है। फिर उसके ऊपर मौस लगाई जाती है। बाद में 250 माइक्रोन की पॉलीथिन से ढकने के साथ दोनों तरफ रस्सी बांध दी जाती है। करीब 45 दिन में जड़ें निकल जाती हैं। जिसे काटकर नए बैग में लगाया जाता है। 15-20 दिन बाद यह पौधे रोपने लायक हो जाते हैं।
50 से लेकर 200 फीट तक होते हैं रुद्राक्षे के वृक्ष
रुद्राक्ष के वृक्ष भारत समेत विश्व के अनेक देशों में पाए जाते हैं। यह भारत के पहाड़ी क्षेत्रों तथा मैदानी इलाकों में भरपूर मात्रा में मौजूद होते हैं। रुद्राक्ष का पेड़ किसी अन्य वृक्ष की भांति ही होता है, इसके वृक्ष 50 से लेकर 200 फीट तक पाए जाते हैं तथा इसके पत्ते आकार में लंबे होते हैं। रुद्राक्ष के फूलों का रंग सफेद होता है तथा इस पर लगने वाला फल गोल आकार का होता है जिसके अंदर से गुठली रूप में रुद्राक्ष होता है। पकने के बाद गिर जाती है फली
रुद्राक्ष का फल पकने के बाद खुद ही गिर जाते है। जब उसका आवरण हटता है तो एक उसमें से अमूल्य रुद्राक्ष निकलता है। रुद्राक्ष में धारियां सी बनी होती है जो इनके मुखों का निर्धारण करती हैं। रुद्राक्ष को अनेक प्रकार की महीन सफाई प्रक्रिया द्वारा उपयोग में लाने के लिए तैयार किया जाता है।
रुद्राक्ष के वृक्ष भारत समेत विश्व के अनेक देशों में पाए जाते हैं। यह भारत के पहाड़ी क्षेत्रों तथा मैदानी इलाकों में भरपूर मात्रा में मौजूद होते हैं। रुद्राक्ष का पेड़ किसी अन्य वृक्ष की भांति ही होता है, इसके वृक्ष 50 से लेकर 200 फीट तक पाए जाते हैं तथा इसके पत्ते आकार में लंबे होते हैं। रुद्राक्ष के फूलों का रंग सफेद होता है तथा इस पर लगने वाला फल गोल आकार का होता है जिसके अंदर से गुठली रूप में रुद्राक्ष होता है। पकने के बाद गिर जाती है फली
रुद्राक्ष का फल पकने के बाद खुद ही गिर जाते है। जब उसका आवरण हटता है तो एक उसमें से अमूल्य रुद्राक्ष निकलता है। रुद्राक्ष में धारियां सी बनी होती है जो इनके मुखों का निर्धारण करती हैं। रुद्राक्ष को अनेक प्रकार की महीन सफाई प्रक्रिया द्वारा उपयोग में लाने के लिए तैयार किया जाता है।
भारत में यहां मिलता है रुद्राक्ष
रुद्राक्ष भारत, के हिमालय के प्रदेशों में पाए जाते हैं। इसके अतिरिक्त असम, मध्य प्रदेश, उत्त्राखंड, अरुणांचल प्रदेश, बंगाल, हरिद्वार, गढ़वाल और देहरादून के जंगलों में पर्याप्त मात्र में यह रुद्राक्ष पाए जाते हैं। इसके अलावा दक्षिण भारत में नीलगिरि और मैसूर में तथा कर्नाटक में भी रुद्राक्ष के वृक्ष देखे जा सकते हैं। रामेश्वरम में भी रुद्राक्ष पाया जाता है। गंगोत्री और यमुनोत्री के क्षेत्र में भी रुद्राक्ष मिलते हैं।विदेशों से किया जाता है आयात
नेपाल, इंडोनेशिया, मलेशिया आदि प्रमुख रूप से रुद्राक्ष के बहुत बड़े उत्पादक रहे हैं और भारत सबसे बडा़ ख़रीदार रहा है। नेपाल में पाए जाने वाले रुद्राक्ष आकार में काफी बडे़ होते हैं, लेकिन इंडोनेशिया और मलेशिया में पाए जाने वाले रुद्राक्ष आकार में छोटे होते हैं। भारत में रुद्राक्ष भारी मात्रा में नेपाल और इंडोनेशिया से मंगाए जाते हैं और रुद्राक्ष का कारोबार अरबों में होता है। सिक्के के आकार का रुद्राक्ष, जो ‘इलयोकैरपस जेनीट्रस’ प्रजाति का होता है, बेहद दुर्लभ होता जो नेपाल से प्राप्त होता है। भद्राक्ष बेचते हैं रुद्राक्ष बताकर
रुद्राक्ष के समान ही एक अन्य फल होता है जिसे भद्राक्ष कहा जाता है और यह रुद्राक्ष के जैसा हो दिखाई देता है इसलिए कुछ लोग रुद्राक्ष के स्थान पर इसे भी नकली रुद्राक्ष के रूप में बेचते हैं। भद्राक्ष दिखता तो रुद्राक्ष की भांति ही है किंतु इसमें रुद्राक्ष जैसे गुण नहीं होते। 80 फीसदी रुद्राक्ष होते हैं फर्जी
माना जाता है कि भारत में बिकने वाले 80 फीसदी रुद्राक्ष फर्जी होते हैं और उन्हें तराश कर बनाया जाता है। इसलिए रुद्राक्ष को खरीदने से पहले इसके गुणवत्ता को देखना बेहद आवश्यक है। औषधीय और आध्यात्मिक गुणों के कारण सदियों से ऋषि-मुनि इसे धारण करते आए हैं। क्या है रुद्राक्ष की पौराणिक कथा
रुद्राक्ष मनुष्य के लिए भगवान शिव द्वारा प्रदान किया हुआ एक अनुपम उपहार है। पौराणिक कथानुसार, जब भगवान शिव ने त्रिपुर नामक असुर के वध के लिए महाघोर रूपी अघोर अस्त्र का चिंतन किया, तब उनके नेत्रों से आंसुओं की कुछ बूंदे धरती पर गिरीं, जिनसे रुद्राक्ष के वृक्ष की उत्पत्ति हुई। इसी वजह से रुद्राक्ष भगवान शिव का प्रतिनिधि माना जाता है।प्राकृतिक क्षिद्र होना चाहिए
धारण करने लिए रुद्राक्ष हमेशा सुंदर, सुडौल, चिकना, कांटेदार और प्राकृतिक छिद्र से युक्त होना चाहिए। जो रुद्राक्ष कहीं से टूटा-फूटा और कृत्रिम छिद्र से युक्त हो, ऐसा रुद्राक्ष धारण करने योग्य नहीं माना गया है। एक मुखी से चौदह मुखी तक होता है रुद्राक्ष
वैसे तो रुद्राक्ष मुख्यतः एक मुखी से लेकर चौदह मुखी तक पाया जाता है, लेकिन कहीं-कहीं बाइस मुखी रुद्राक्ष भी पाए जाते हैं, जिनको धारण करने का अलग-अलग फल प्राप्त होता है। आकार के अनुसार देखा जाए, तो धारण करने हेतु चने के आकार का रुद्राक्ष अधम, बेर के आकार का माध्यम तथा आंवला के आकार का उत्तम माना गया है। रुद्राक्ष धारण करने के लिए सोमवार का दिन शुभ माना गया है।यह है आध्यात्मिक महत्व
रात में सोते समय रुद्राक्ष उतार कर सोना चाहिए। रुद्राक्ष धारण करने से सकारात्मक ऊर्जा की प्राप्ति होती है और शिव की कृपा प्राप्त होती है। भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए रुद्राक्ष का पूजन और दान बहुत श्रेयस्कर माना गया है। रुद्राक्ष के दर्शन से पुण्य लाभ, स्पर्श से उसका सौ गुना पुण्य लाभ और धारण करने से करोड़ गुना पुण्य लाभ होता है और इसकी माला का मंत्र जप करने से करोड़ गुना पुण्य प्राप्त होता है। एक मुखी रुद्राक्ष सर्वश्रेष्ठ
रुद्राक्ष को हमेशा ह्रदय के पास धारण करना चाहिए, इससे हृदय रोग, हृदय का कम्पन और ब्लड प्रेशर आदि रोगों में आराम मिलता है। सभी रुद्राक्षों में एक मुखी रुद्राक्ष सर्वश्रेष्ठ माना गया है। महाभागवत पुराण के अनुसार, जिस मनुष्य के घर में एक मुखी रुद्राक्ष होता है, उसके घर में लक्ष्मी सदैव स्थिर होकर निवास करती हैं। यह भी पढ़ें : चारधाम के यात्रियों को शीतलता देगा फिनलैंड की चीड़ की लकडि़यों से बन रहा वुडन हाउस
यह भी पढ़ें : मित्र घास में है पहाड़ को बचाने की शक्ति, जानिए इसकी खासियतें, क्यों किया जा रहा संरक्षित
आपके शहर की हर बड़ी खबर, अब आपके फोन पर। डाउनलोड करें लोकल न्यूज़ का सबसे भरोसेमंद साथी- जागरण लोकल ऐप।रुद्राक्ष भारत, के हिमालय के प्रदेशों में पाए जाते हैं। इसके अतिरिक्त असम, मध्य प्रदेश, उत्त्राखंड, अरुणांचल प्रदेश, बंगाल, हरिद्वार, गढ़वाल और देहरादून के जंगलों में पर्याप्त मात्र में यह रुद्राक्ष पाए जाते हैं। इसके अलावा दक्षिण भारत में नीलगिरि और मैसूर में तथा कर्नाटक में भी रुद्राक्ष के वृक्ष देखे जा सकते हैं। रामेश्वरम में भी रुद्राक्ष पाया जाता है। गंगोत्री और यमुनोत्री के क्षेत्र में भी रुद्राक्ष मिलते हैं।विदेशों से किया जाता है आयात
नेपाल, इंडोनेशिया, मलेशिया आदि प्रमुख रूप से रुद्राक्ष के बहुत बड़े उत्पादक रहे हैं और भारत सबसे बडा़ ख़रीदार रहा है। नेपाल में पाए जाने वाले रुद्राक्ष आकार में काफी बडे़ होते हैं, लेकिन इंडोनेशिया और मलेशिया में पाए जाने वाले रुद्राक्ष आकार में छोटे होते हैं। भारत में रुद्राक्ष भारी मात्रा में नेपाल और इंडोनेशिया से मंगाए जाते हैं और रुद्राक्ष का कारोबार अरबों में होता है। सिक्के के आकार का रुद्राक्ष, जो ‘इलयोकैरपस जेनीट्रस’ प्रजाति का होता है, बेहद दुर्लभ होता जो नेपाल से प्राप्त होता है। भद्राक्ष बेचते हैं रुद्राक्ष बताकर
रुद्राक्ष के समान ही एक अन्य फल होता है जिसे भद्राक्ष कहा जाता है और यह रुद्राक्ष के जैसा हो दिखाई देता है इसलिए कुछ लोग रुद्राक्ष के स्थान पर इसे भी नकली रुद्राक्ष के रूप में बेचते हैं। भद्राक्ष दिखता तो रुद्राक्ष की भांति ही है किंतु इसमें रुद्राक्ष जैसे गुण नहीं होते। 80 फीसदी रुद्राक्ष होते हैं फर्जी
माना जाता है कि भारत में बिकने वाले 80 फीसदी रुद्राक्ष फर्जी होते हैं और उन्हें तराश कर बनाया जाता है। इसलिए रुद्राक्ष को खरीदने से पहले इसके गुणवत्ता को देखना बेहद आवश्यक है। औषधीय और आध्यात्मिक गुणों के कारण सदियों से ऋषि-मुनि इसे धारण करते आए हैं। क्या है रुद्राक्ष की पौराणिक कथा
रुद्राक्ष मनुष्य के लिए भगवान शिव द्वारा प्रदान किया हुआ एक अनुपम उपहार है। पौराणिक कथानुसार, जब भगवान शिव ने त्रिपुर नामक असुर के वध के लिए महाघोर रूपी अघोर अस्त्र का चिंतन किया, तब उनके नेत्रों से आंसुओं की कुछ बूंदे धरती पर गिरीं, जिनसे रुद्राक्ष के वृक्ष की उत्पत्ति हुई। इसी वजह से रुद्राक्ष भगवान शिव का प्रतिनिधि माना जाता है।प्राकृतिक क्षिद्र होना चाहिए
धारण करने लिए रुद्राक्ष हमेशा सुंदर, सुडौल, चिकना, कांटेदार और प्राकृतिक छिद्र से युक्त होना चाहिए। जो रुद्राक्ष कहीं से टूटा-फूटा और कृत्रिम छिद्र से युक्त हो, ऐसा रुद्राक्ष धारण करने योग्य नहीं माना गया है। एक मुखी से चौदह मुखी तक होता है रुद्राक्ष
वैसे तो रुद्राक्ष मुख्यतः एक मुखी से लेकर चौदह मुखी तक पाया जाता है, लेकिन कहीं-कहीं बाइस मुखी रुद्राक्ष भी पाए जाते हैं, जिनको धारण करने का अलग-अलग फल प्राप्त होता है। आकार के अनुसार देखा जाए, तो धारण करने हेतु चने के आकार का रुद्राक्ष अधम, बेर के आकार का माध्यम तथा आंवला के आकार का उत्तम माना गया है। रुद्राक्ष धारण करने के लिए सोमवार का दिन शुभ माना गया है।यह है आध्यात्मिक महत्व
रात में सोते समय रुद्राक्ष उतार कर सोना चाहिए। रुद्राक्ष धारण करने से सकारात्मक ऊर्जा की प्राप्ति होती है और शिव की कृपा प्राप्त होती है। भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए रुद्राक्ष का पूजन और दान बहुत श्रेयस्कर माना गया है। रुद्राक्ष के दर्शन से पुण्य लाभ, स्पर्श से उसका सौ गुना पुण्य लाभ और धारण करने से करोड़ गुना पुण्य लाभ होता है और इसकी माला का मंत्र जप करने से करोड़ गुना पुण्य प्राप्त होता है। एक मुखी रुद्राक्ष सर्वश्रेष्ठ
रुद्राक्ष को हमेशा ह्रदय के पास धारण करना चाहिए, इससे हृदय रोग, हृदय का कम्पन और ब्लड प्रेशर आदि रोगों में आराम मिलता है। सभी रुद्राक्षों में एक मुखी रुद्राक्ष सर्वश्रेष्ठ माना गया है। महाभागवत पुराण के अनुसार, जिस मनुष्य के घर में एक मुखी रुद्राक्ष होता है, उसके घर में लक्ष्मी सदैव स्थिर होकर निवास करती हैं। यह भी पढ़ें : चारधाम के यात्रियों को शीतलता देगा फिनलैंड की चीड़ की लकडि़यों से बन रहा वुडन हाउस
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