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Sanskarshala Haldwani : डिजिटल संसार में अच्छे-बुरे की परख समझनी होगी, करना होगा रचनात्मकता का विकास

Sanskarshala Haldwani कोविड का मतलब सब कुछ खत्म होना नहीं था बल्कि इसने हमें समझाया कि जिंदगी को जीने के और तरीके क्या हो सकते हैं। यहीं से इंटरनेट मीडिया का दखल उन बच्चों तक भी हो गया जिन्हें अभी पाठ्य पुस्तकों के ककहरे से शुरुआत करनी थी।

By ganesh pandeyEdited By: Skand ShuklaUpdated: Thu, 10 Nov 2022 10:54 AM (IST)
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Sanskarshala Haldwani : कापी-पेस्ट के चलन से मानसिक क्षमता का विकास हो रहा अवरूद्ध
हल्द्वानी : हर चीज के सकारात्मक व नकारात्मक दो पहलू होते हैं। सुख-दुख, लाभ-हानि। यह व्यक्ति पर निर्भर करता है कि वह चीजों को कैसे लेता है। कोविड काल के दौरान हमारी पीढ़ी ने एक अलग तरह की दुनिया का आभास किया। एक अलग अनुभव। डर के बीच नई संभावनाएं भी नजर आई। स्कूल-कालेज, बाजार हर गतिविधि पर मानो विराम ही लग गया। यहीं से पैदा हुआ एक अवसर भी। क्योंकि जिंदगी की रफ्तार फिर भी नहीं थमी। हां यह जरूर है कि एक अल्प विराम जरूर लगा। यह विराम था बदलाव का, जिसने आगे बढ़ते रहने की संभावनाओं को राह दिखाई। हर हाल में हमें भविष्य की ओर उम्मीद भरी नजरों से देखना था।

कोविड का मतलब सब कुछ खत्म होना नहीं था, बल्कि इसने हमें समझाया कि जिंदगी को जीने के और तरीके क्या हो सकते हैं। यहीं से इंटरनेट मीडिया का दखल उन बच्चों तक भी हो गया जिन्हें अभी पाठ्य पुस्तकों के ककहरे से शुरुआत करनी थी। यह जरूरत कब लत के रूप में बदल गई हमारे बच्चों व युवाओं को पता ही नहीं चला। अब जब हम दो साल के अंतराल के बाद पहली सी स्थिति में लौट गए हैं तो यह इंटरनेट मीडिया यानी मोबाइल हमारी दिनचर्या का हिस्सा हो चुका है।

अधिकांश बच्चों ने इस दरमियान अपने को सिर्फ पाठ्यक्रम तक सीमित नहीं रखा बल्कि वे इस मायावी जाल में गहरे उतरते गए। यानी खुद के लिए अच्छे और बुरे की परख के बजाय वे डिजिटल संसार की माया में दूर तक निकल गए। हमने खुद को इंटनरेट पर इतना निर्भर कर लिया है कि छोटी जरूरत की तलाश भी इंटरनेट पर होती है।

कापी-पेस्ट का चलन बढ़ गया। कुछ नया रचने की हमारी क्षमताएं क्षीण हो रही हैं। इस चलाचली में यह भी नहीं देखा जाता कि इंटरनेट पर प्रसारित सामग्री कितनी सत्यता लिए है। बच्चों को ध्यान रखना होगा इंटरनेट पर निर्भरता जितनी कम होगी उतना मानसिक क्षमता का विकास होगा। आधिकारिक वेबसाइट से उपयोगी जानकारी लेकर उसकी सत्यता की परख करना भी जरूरी है।

जरूरत को न बनने दें लत

इंटरनेट मीडिया आज हमारी जरूरत बन गया है, लेकिन अत्यधिक निर्भरता ने हमें इसका लती बना दिया। आनलाइन स्कूल, डांसिंग व एक्टिविटी क्लास से लेकर सेमिनार तक यहीं पर अटैंड करना जरूरत बन गया था। तब यह दिनचर्या का हिस्सा था, लेकिन धीरे-धीरे लत के रूप में दिखाई देने लगा है।

इंटरनेट मीडिया यानी फेसबुक, वाट्सएप, वीचैट, यूट्यूब, ट्विटर व इंस्टाग्राम आदि ऐसे कामन प्लेटफार्म हैं जहां बच्चे एक बार प्रवेश करते हैं तो यहां अश्लील व भ्रामक सामग्री का भी भंडार उन्हें मिलता है। यहीं एक और दिशा थी जहां बच्चों को समग्र अध्ययन सामग्री, विशेषज्ञों के परामर्श, सीधे शिक्षकों से संवाद का माध्यम उपलब्ध था। जो बच्चे इस रास्ते पर आगे बढ़े उनके लिए इंटरनेट मीडिया एक सशक्त जरिया आज भी बना हुआ है। शिक्षकों के अलावा आज अभिभावकों की भी ये जिम्मेदारी है कि वे बच्चों को इंटरनेट मीडिया के सकारात्मक पक्ष से जोड़कर आगे बढ़ाएं।

जरूरी है निगरानी

इंटरनेट मीडिया का जंजाल इतना विस्तृत है कि यहां हर तरह का कंटेंट मौजूद है। इसलिए हर अभिभावक के लिए जरूरी हो गया कि वे अपने पाल्यों पर निगाह रखें। स्क्रीन टाइमिंग तय करें। बच्चों के मोबाइल यूज का नोटिफिकेशन सेट करें। बेहतर है कि खुद मिसाल कायम करें। बच्चों की गतिविधि, व्यवहार पर नजर रखें। उनके व्यवहार में आमूलचूल नकारात्मक परिवर्तन नजर आए तो मनोविज्ञानी से सलाह लें।

-ऋचा शुक्ला, शिक्षिका, श्री गुरुतेग बहादुर सीनियर सेकेंडरी स्कूल हल्द्वानी

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