नासा के साइंटिस्ट रक्षित जोशी ने कहा, मंगल की सतह पर पानी का पता लगाएगा इंसाइट लैंडर
नासा का मंगल मिशन मार्स इंसाइट लैंडर लाल ग्रह पर पानी का पता लगाएगा। हाल ही में नासा इंसाइट लैंडर ने पहली बार मंगल की भीतरी संरचना की महत्वपूर्ण जानकारी हासिल की है। नासा इंसाइट मिशन से जुड़े भारतीय अंतरिक्ष विज्ञानी डा. रक्षित जोशी ने यह जानकारी दी।
By Skand ShuklaEdited By: Updated: Wed, 03 Nov 2021 07:49 AM (IST)
जागरण संवाददाता, नैनीताल : नासा का मंगल मिशन मार्स इंसाइट लैंडर लाल ग्रह पर पानी का पता लगाएगा। हाल ही में नासा इंसाइट लैंडर ने पहली बार मंगल की भीतरी संरचना की महत्वपूर्ण जानकारी हासिल की है। नासा इंसाइट मिशन से जुड़े भारतीय अंतरिक्ष विज्ञानी डा. रक्षित जोशी ने यह जानकारी दी। वह दीवाली मनाने के लिए नैनीताल पहुंचे हैं। त्योहार मनाने के लिए वह अल्मोड़ा जनपद के पैतृक गांव जाएंगे।
डा.रक्षित ने कहा कि मंगल पर पूर्व में पानी होने के कई सबूत मिले हैं। वह पानी आखिर कहां गायब हो गया, इसका पता लगाने में इंसाइट मिशन अहम भूमिका निभा सकता है। मंगल के भीतर क्रस्ट में पानी हो सकता है। लाल ग्रह की अंदरूनी संरचना का मंगल ग्रह में आने वाले भूकंपों से पता चला है, जिन्हें मार्स क्वेक कहा जाता है। पिछले माह चार बड़े भूकंप मंगल पर आए हैं। इन भूकंपों का अध्ययन किया जा रहा है। मंगल के ज्वालामुखियों का पता लगाना भी खगोल विज्ञानियों के लिए बड़ी चुनौती है। उन्होंने कहा संभवत: पृथ्वी की तरह मंगल पर भी ज्वालामुखी आते रहे होंगे। जिनके निशान मंगल की सतह पर मिलते हैं।
पहली बार पता चला, मंगल सिंगल प्लेट प्लैनेट
पहली बार पता चला है कि मंगल सिंगल प्लेट प्लैनेट है। किसी भी ग्रहों की भीतरी संरचना की यह पहली खोज है। इंसाइट लैंडर ने इसका पता लगाया है। इसकी तुलना में पृथ्वी पर कई प्लेटें हैं, जिनके कारण पृथ्वी पर अक्सर भूकंप आते रहते हैं। पृथ्वी की तरह मंगल पर भी भूकंप आते रहते हैं। इन्हीं भूकंपों के जरिये मंगल की अंदरूनी जानकारी मिल पाई है। मंगल की आंतरिक संरचना को तीन हिस्सों में बांटा गया है। जिसमें उसके अंदर क्रस्ट है। जिनकी गहराई 20 से 40 किमी के बीच है। इसके अलावा इनके भीतर मेंटल व कोर है। इन्हें भी अलग-अलग भागों में विभाजित किया जा रहा है।
अंतरिक्ष विज्ञान में आत्मनिर्भर बनेगा भारत
डा. रक्षित जोशी के मुताबिक भारत तेजी से अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में आगे बढ़ रहा है। 10 से 15 सालों में देश स्पेस साइंस में साधन संपन्न हो जाएगा और मंगल की सतह पर मिशन भेजने लगेगा। देश में मैन पावर के साथ प्रतिभा अन्य देशों की तुलना में कहीं अधिक होने के कारण अंतरिक्ष के क्षेत्र में बहुत जल्द महत्वपूर्ण कामयाबी हासिल कर लेगा। पिछले एक दशक के अंतराल में एस्ट्रोसैट, मार्स आर्बिटर व चंद्रयान मिशन के साथ अंतरिक्ष में भेजे जा रहे सेटेलाइट इसके उदाहरण हैं। जिसके चलते युवा इस क्षेत्र में बेहतर कॅरियर बना सकते हैं। डा.रक्षित का मानना है कि देश में एस्ट्रो टूरिज्म की भी संभावनाएं हैं। जिसमें उत्तराखंड अहम स्थान रखता है। इसके जरिये बच्चों की रुचि अंतरिक्ष के प्रति जागृत की जा सकती है।
आपके शहर की हर बड़ी खबर, अब आपके फोन पर। डाउनलोड करें लोकल न्यूज़ का सबसे भरोसेमंद साथी- जागरण लोकल ऐप।