भारत, दक्षिण अफ्रीका व रूस के वैज्ञानिक ब्लैक होल और सुपरनोवा के अध्ययन में जुटे nainital news
ब्रिक्स देशों में शामिल भारत दक्षिण अफ्रीका व रूस की साझा परियोजना ब्रह्मांड के विशालकाय ब्लैकहोल व सुपरनोवा समेत तारों के आपस में टकराने व उनके बनने पर शोध कर रहे हैं।
By Skand ShuklaEdited By: Updated: Thu, 14 Nov 2019 12:29 PM (IST)
नैनीताल, रमेश चंद्रा : ब्रह्मांड की गहराइयों के रहस्य अब ज्यादा दिन तक छिपे रहने वाले नही हैं। ब्रिक्स देशों में शामिल पांच में से तीन देश भारत, दक्षिण अफ्रीका व रूस की साझा परियोजना ब्रह्मांड के विशालकाय ब्लैकहोल व सुपरनोवा समेत तारों के आपस में टकराने व उनके बनने पर शोध कर रहे हैं। भारत में देवस्थल स्थित 3.6 मीटर, साउथ अफ्रीका की 10 मीटर साल्ट व रूस की ऑप्टिकल दूरबीनों की मदद से संयुक्त रूप से अंजाम तक पहुंचाने में जुटे हुए हैं। दक्षिण अफ्रीका के एस्ट्रोनॉमिकल आब्जर्वेटरी के प्रो. डेविल बाकले ने यह बात कही।
प्रो. बाकले इस परियोजना को लेकर इन दिनों भारत के दौरे पर नैनीताल पहुंचे हैं। परियोजना को प्रोबिंग फंडामेंटल करेक्टरस्टिक्स ऑफ एक्सट्रीम एस्ट्रोफिजीकल फेनोमेना नाम दिया है। प्रो. बाकले इस योजना के चीफ इन्वेस्टीगेटर हैं, जबकि भारत की ओर से आर्यभटट् प्रेक्षण विज्ञान शोध संस्थान (एरीज) के वैज्ञानिक डॉ शाशिभूषण पांडे व स्पेस रिसर्च इंस्टीट्यूट मॉस्को के प्रो. एलेक्जेंडर प्रिंसिपल इन्वेस्टीगेटर की भूमिका निभा रहे हैं। भारत में एरीज के साथ आयूका पूना व आईआईए बंगलुरू भी इस योजना में शामिल हैं। प्रो. बाकले ने कहा कि तारों के कई रहस्य आज भी राज बने हुए हैं, जो आकाशगंगाओं में विशेष स्थान रखते हैं। इनके बारे में जान पाना अकेले किसी एक देश के लिए आसान नही हैं।
देवस्थल की दूरबीन ने जुटाए आंकड़े
एरीज के वैज्ञानिक डॉ. शशिभूषण पांडे ने बताया कि प्रौद्योगिकी एवं विज्ञान विभाग के सहयोग से इस कार्य को अंजाम तक पहुंचाने के लिए उनकी टीम देवस्थल स्थित 3.6 मीटर ऑप्टिकल दूरबीन से सुदूर अंतरिक्ष की आकाशगंगाओं समेत अनेक तस्वीरें लेकर आंकड़े जुटा चुकी है। प्राप्त आंकड़ों से आगे के शोध कार्य शुरू किया जा सकेगा। अगले दो साल में इनके नतीजे सामने आ जाएंगे।
ब्रिक्स देशों में एक साथ स्थापित होंगे 72 दूरबीन
प्रो. डेविड बाकले ने कहा कि स्पेस साइंस व एस्ट्रोनॉमी के विकास में यूरोपीय व अमेरिकी देशों पर मिथक केंद्रित है। इस मिथक को तोड़ पाने में ब्रिक्स देश महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। इसीलिए पांचों देशों में एक साथ 72 आप्टिकल दूरबीनें स्थापित किए जाने की योजना बनाई जा रही है। यह सभी दूरबीनें एक मीटर व्यास की होंगी। इन दूरबीनों का निमार्ण कार्य बड़ी दूरबीनों के अपेक्षा आसान होगा और लागत भी कम आएगी। साथ ही इनके रखरखाव में अधिक दिक्कतें नही आएंगी। ब्रिक्स देशों में यह सुविधा उपलब्ध हो जाने के बाद अंतरिक्ष के बड़े भाग का अध्ययन हो सकेगा। इससे ब्रह्मïांड की थाह पाना आसान होगा। एस्टीरॉइड्स पर हर पल निगाह रखी जा सकेगी जो धरती के लिए बड़ा खतरा बने रहते हैं। साथ ही सौरमंडल का बारीकी से अध्ययन किया जा सकेगा।
भविष्य में सामाजिक व आर्थिकी का मजबूत आधार बनेगी एस्ट्रोनॉमी : डा. पांडे आर्यभट्ट प्रेक्षण विज्ञान शोध संस्थान (एरीज) के वैज्ञानिक डॉ. शशिभूषण पांडे ने कहा कि भविष्य में एस्ट्रोनॉमी सामाजिक व आर्थिक क्षेत्र में मजबूती का बड़ा आधार बनेगी। ब्रिक्स देशों ने इस दिशा में संभावनाएं तलाशनी शुरू कर दी हैं। संयुक्त राष्टï्र संघ के विश्व के विकास को लेकर निर्धारित तीस बिंदुओं में एक पक्ष यह भी है। डॉ पांडे ने कहा कि ब्रिक्स देशों में शामिल ब्राजील, रूस, भारत, चीन व साउथ अफ्रीका आदि की आर्थिक व सामाजिक स्थिति लगभग एक जैसी है। संयुक्त राष्ट्र संघ भी ब्रिक्स देशों से आर्थिक पक्ष मजबूत करने के लिए काफी अपेक्षाएं रखता है और हमने इस दिशा में संभावनाएं तलाशनी शुरू कर दी हैं। जिसका एस्ट्रो टूरिज्म एक हिस्सा हो सकता है। इसी तरह से अन्य संभावनाएं तलाशी जा रही हैं। प्रो. डेविड बाकले का कहना है कि एस्ट्रो टूरिज्म के क्षेत्र में दक्षिण अफ्रीका में कई स्थानों में वेदशालाएं स्थापित हो चुकी हैं। उन वेदशालाओं के जरिए होटलों का कारोबार फलफूल रहा है। जिससे आर्थिक मजबूती आई है।
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