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महाकाली नदी के किनारे हंसेश्वर मठ में ढाई सौ वर्षों से जल रही है अखंड धूनी

भारत नेपाल सीमा पर महाकाली नदी किनारे स्थित हंसेश्वर मठ में विगत ढाई सौ वर्षों से अखंड धूनी जल रही है। इस धूनी का भभूत देश के कोने-कोने तक पहुंचता है।

By Skand ShuklaEdited By: Updated: Tue, 15 Jan 2019 07:39 PM (IST)
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महाकाली नदी के किनारे हंसेश्वर मठ में ढाई सौ वर्षों से जल रही है अखंड धूनी
पिथौरागढ़, जेएनएन : भारत नेपाल सीमा पर महाकाली नदी किनारे स्थित हंसेश्वर मठ में विगत ढाई सौ वर्षों से अखंड धूनी जल रही है। इस धूनी का भभूत देश के कोने-कोने तक पहुंचता है। क्षेत्र के 72 ग्राम पंचायतों के प्रसिद्ध इस मठ में मकर संक्रांति पर आज मेला लगेगा।

नेपाल सीमा पर स्थित हंसेश्वर मठ का इतिहास सोलहवीं सदी का है। काली नदी के सूरज कुंड में महाकाल गिरि ने तपस्या की थी। इस मौके पर शिव के हंसेश्वर रूप की पूजा की गई। स्थल का नाम हंसेश्वर पड़ गया। इसके बाद यहां पर हरि गिरि, नागा शंकर गिरि और प्रेम गिरि ने पूजा की। यहां के चमत्कार देखते हुए तत्कालीन अस्कोट के राजा पुष्कर पाल ने मठ की स्थापना के लिए मौखिक रू प से भूमि दान दी। यहां कहावत प्रचलित है कि शंकर गिरि के शिष्य हंस गिरि के समय रातों रात दीवार का निर्माण किया जिसे आज भी लोग भूतों की दीवार कहते हैं। इस  प्रकरण के बाद वर्ष 1890 में अस्कोट के तत्कालीन रजवार गजेंद्र बहादुर पाल ने भूमि का दशनानी सन्यासियों के नाम वैध पट्टा कर दिया। यह मठ अस्कोट के रजवार के बाद क्षेत्र का दूसरा सबसे अधिक भूमि का मालिक बन गया। तब से दशनामी अखाड़ा ही इस भूमि की मालगुजारी देते आ रहे हैं।

ऐसे पड़ा हंसेश्वर नाम

मठ का नाम हंसेश्वर पडऩे को लेकर मानस खंड में उल्लेख है। त्रेता युग में जब शिव के पुत्र कार्तिकेय नाराज होकर कैलास से चले गए थे और हंसेश्वर पहुंचे। शिव को जब इसका पता चला तो शिव और पार्वती मठ के सामने खड़े नेपाल के शिखर चोटी पर पहुंचे। जहां से दोनों ने हंस और हंसिनी का रू प धारण किया और कार्तिकेय को मनाने आए। बताया जाता है कि तब यहां पर एक शिव लिंग प्रादुर्भाव हुआ और इसका नाम हंसेश्वर पड़ गया। शिव और पार्वती ने सूरज कुंड में स्नान किया । मकर संक्रांति और महा शिवरात्रि पर सूरज कुंड में स्नान की परंपरा है। मठ की स्थापना से यहां पर जलाई गई अखंड धूनी अब तक अनवरत जल रही है।

भभूत लेकर जाते हैं भक्‍त

मठ के महंत परमानंद गिरी महाराज बताते हैं कि मठ में आने वाले भक्त यहां से भभूत लेकर जाते हैं। मठ में देश भर से लोग आते हैं। यहां माघ माह में महास्नान होता था। बीच में परंपरा बंद हो गई थी।  2008 से यह परंपरा फिर से प्रारंभ हो चुकी है। इधर पंचेश्वर बांध के चलते इस मठ का भविष्य संकट में है। उन्होंने बताया कि यदि बांध बना तो तो जहां पर सरकार जमीन उपलब्ध कराएगी उस स्थान पर मठ शिवलिंग के मूल स्वरूप को यथावत रखते हुए मठ को नए स्वरूप में विकसित किया जाएगा।

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