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पहाड़ का राजा फल काफल, कैंसर, स्‍ट्रोक समेत कई बीमारियों में है फायदेमंद

पर्वतीय क्षेत्रों के जंगलों का खट्टा-मीठा रसीला फल काफल बाजार में उतर आया है। गर्मी के मौसम मेें ये फल थकान दूर करने के साथ ही तमाम औषधीय गुणों से भरपूर है।

By Skand ShuklaEdited By: Updated: Fri, 10 May 2019 04:06 PM (IST)
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पहाड़ का राजा फल काफल, कैंसर, स्‍ट्रोक समेत कई बीमारियों में है फायदेमंद
अल्मोड़ा, जेएनएन : पर्वतीय क्षेत्रों के जंगलों का खट्टा-मीठा रसीला फल काफल बाजार में उतर आया है। गर्मी के मौसम मेें ये फल थकान दूर करने के साथ ही तमाम औषधीय गुणों से भरपूर है। इसके सेवन से स्‍ट्रोक और कैंसर जैसी बीमारियों का खतरा कम हो जाता है। एंटी-ऑक्सीडेंट तत्व हाेने के कारण इसे खाने से पेट संबंधित रोगों से भी निजात मिलती है। यह फल स्‍थानीय लोगों को तीन माह के लिए रोजगार का साधन भी बनता है।  
काफल तीन महीने तक स्थानीय बेरोजगारों के लिए स्वरोजगार का भी साधन बनता है। इसके पेड़ ठंडी जलवायु में पाए जाते हैं। इसका लुभावना गुठली युक्त फल गुच्छों में लगता है। प्रारंभिक अवस्था में इसका रंग हरा होता है और अप्रैल माह के आखिर में यह फल पककर तैयार हो जाता है, तब इसका रंग बेहद लाल हो जाता है। इन दिनों काफल 400 रुपये प्रति किलो के हिसाब से बिक रहा है। लमगड़ा, भैसियाछाना, धौलादेवी व ताकुला क्षेत्र के विभिन्न गांवों के ग्रामीण इन दिनों शहर में काफल बेचने पहुंच रहे हैं। काफल विक्रेता राजीव कुमार, चंदन सिंह, अनूप सिंह तथा राजेंद्र कुमार ने बताया कि वह प्रतिदिन 500 रूपये से 1000 रूपये के बीच कमा लेते हैं। इसी से उनके परिवार की इन दिनों आजीविका चल रही है। उनका कहना है कि स्वरोजगारपरक इस पेड़ के संरक्षण व संवर्द्धन के लिए सरकार व वन महकमे को विशेष प्रयास किए जाने की आवश्यकता है। 

इन बीमारियों के लिए रामबाण है काफल 

  • फल में मौजूद एंटी-ऑक्सीडेंट तत्व पेट से संबंधित रोगों को खत्म करते हैं। इसके फल से निकलने वाला रस शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ा देता है। इसके निरंतर सेवन से कैंसर एवं स्ट्रोक जैसी बीमारियों का खतरा कम हो जाता है
  • कब्ज हो या एसिडिटी आप काफल के फल को चूसें। इससे पेट संबंधी विकार आसानी से खत्म होते चले जाएंगे। इसका फल अत्यधिक रस-युक्त और पाचक होता है।
  • फल के ऊपर मोम के प्रकार के पदार्थ की परत होती है जो कि पारगम्य एवं भूरे व काले धब्बों से युक्त होती है। यह मोम मोर्टिल मोम कहलाता है तथा फल को गर्म पानी में उबालकर आसानी से अलग किया जा सकता है। यह मोम अल्सर की बीमारी में प्रभावी होता है।
  • मानसिक बीमारियों समेत कई प्रकार के रोगों के इलाज के लिए भी काफल काम आता है।
  • इसके तने की छाल का सार, अदरक तथा दालचीनी का मिश्रण अस्थमा, डायरिया, बुखार, टाइफाइड, पेचिश तथा फेफड़े ग्रस्त बीमारियों के लिए अत्यधिक उपयोगी है।
  • इसके पेड़ की छाल का पाउडर जुकाम, आँख की बीमारी तथा सरदर्द में सूँधनी के रूप में प्रयोग में लाया जाता है।
  • इसके पेड़ की छाल तथा अन्य औषधीय पौधों के मिश्रण से निर्मित काफलड़ी चूर्ण को अदरक के जूस तथा शहद के साथ मिलाकर उपयोग करने से गले की बीमारी, खाँसी तथा अस्थमा जैसे रोगों से मुक्ति मिल जाती है।
  • दाँत दर्द के लिए छाल तथा कान दर्द के लिए छाल का तेल अत्यधिक उपयोगी है।
  • काफल के फूल का तेल कान दर्द, डायरिया तथा लकवे की बीमारी में उपयोग में लाया जाता है। इस फल का उपयोग औषधी तथा पेट दर्द निवारक के रूप में होता ।
वैज्ञानिक नाम है माइरिका एसकुलेंटा 
प्रोफेसर पीसी पांडे, वरिष्ठ वनस्पति विज्ञानी ने बताया कि काफल का वैज्ञानिक नाम माइरिका एसकुलेंटा है। पेट संबंधी बिमारियों में इसके पेड़ की छाल का चूर्ण काफी लाभकारी होता है। खट्टा-मीठा मिश्रित स्वाद युक्त यह फल तीखी गर्मी से भी मानव को राहत प्रदान करता है। गर्मियों में यह फल मानव के साथ ही पक्षियों का भी आहार बनता है। 

एंटी-ऑक्सीडेंट गुणों के कारण फायदेमंद 
काफल एंटी-ऑक्सीडेंट गुणों के कारण शरीर के लिए बेहद फायदेमंद है। इसे कहीं उगाया नहीं जाता, बल्कि अपने आप उगता है और हमें मीठे फल का तोहफा देता है। कहते हैं कि काफल को अपने ऊपर बेहद नाज भी है और वह खुद को देवताओं के खाने योग्य समझता है। कुमाऊंनी भाषा के एक लोक गीत में तो काफल अपना दर्द बयान करते हुए कहते हैं, 'खाणा लायक इंद्र का, हम छियां भूलोक आई पणां। इसका अर्थ है कि हम स्वर्ग लोक में इंद्र देवता के खाने योग्य थे और अब भू लोक में आ गए।'

काफ ल से जुड़ी ये कहानी है बेहद मार्मिक 
काफल से जुड़ी एक कहानी भी। कहा जाता है कि उत्तराखंड के एक गांव में एक गरीब महिला रहती थी, जिसकी एक छोटी सी बेटी थी, दोनों एक दूसरे का सहारा थे। आमदनी के लिए उस महिला के पास थोड़ी-सी जमीन के अलावा कुछ नहीं था, जिससे बमुश्किल उनका गुजारा चलता था। गर्मियों में जैसे ही काफल पक जाते, महिला बेहद खुश हो जाती थी। उसे घर चलाने के लिए एक आय का जरिया मिल जाता था। इसलिए वह जंगल से काफल तोड़कर उन्हें बाजार में बेचती, जिससे परिवार की मुश्किलें कुछ कम होतीं। एक बार महिला जंगल से एक टोकरी भरकर काफल तोड़ कर लाई। उस वक्त सुबह का समय था और उसे जानवरों के लिए चारा लेने जाना था। इसलिए उसने इसके बाद शाम को काफल बाजार में बेचने का मन बनाया और अपनी मासूम बेटी को बुलाकर कहा, 'मैं जंगल से चारा काट कर आ रही हूं। तब तक तू इन काफलों की पहरेदारी करना। मैं जंगल से आकर तुझे भी काफल खाने को दूंगी, पर तब तक इन्हें मत खाना।' मां की बात मानकर मासूम बच्ची उन काफलों की पहरेदारी करती रही। इस दौरान कई बार उन रसीले काफलों को देख कर उसके मन में लालच आया, पर मां की बात मानकर वह खुद पर काबू कर बैठे रही। इसके बाद दोपहर में जब उसकी मां घर आई तो उसने देखा कि काफल की टोकरी का एक तिहाई भाग कम था। मां ने देखा कि पास में ही उसकी बेटी सो रही है। सुबह से ही काम पर लगी मां को ये देखकर बेहद गुस्सा आ गया। उसे लगा कि मना करने के बावजूद उसकी बेटी ने काफल खा लिए हैं। इससे गुस्से में उसने घास का गट्ठर एक ओर फेंका और सोती हुई बेटी की पीठ पर मुट्ठी से जोरदार प्रहार किया। नींद में होने के कारण छोटी बच्ची अचेत अवस्था में थी और मां का प्रहार उस पर इतना तेज लगा कि वह बेसुध हो गई। बेटी की हालत बिगड़ते देख मां ने उसे खूब हिलाया, लेकिन तब तक उसकी मौत हो चुकी थी। मां अपनी औलाद की इस तरह मौत पर वहीं बैठकर रोती रही। उधर, शाम होते-होते काफल की टोकरी फिर से पूरी भर गई। जब महिला की नजर टोकरी पर पड़ी तो उसे समझ में आया कि दिन की चटक धूप और गर्मी के कारण काफल मुरझा जाते हैं और शाम को ठंडी हवा लगते ही वह फिर ताजे हो गए। अब मां को अपनी गलती पर बेहद पछतावा हुआ और वह भी उसी पल सदमे से गुजर गई। कहा जाता है कि उस दिन के बाद से एक चिड़िया चैत के महीने में 'काफल पाको मैं नि चाख्यो' कहती है, जिसका अर्थ है कि काफल पक गए, मैंने नहीं चखे.. फिर एक दूसरी चिड़िया गाते हुए उड़ती है 'पूरे हैं बेटी, पूरे हैं'..

ये कहानी जितनी मार्मिक है, उतनी ही उत्तरखंड में काफल की अहमियत को भी बयान करती है। आज भी गर्मी के मौसम में कई परिवार इसे जंगल से तोड़कर बेचने के बाद अपनी रोजी-रोटी की व्यवस्था करते हैं।

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