मानवीय दखल और वनाग्नि से विलुप्त हो रही खूबसूरत पक्षियों की प्रजातियां
हिमालयी वादियों की आबोहवा स्थानीय व मेहमान परिंदों के लिए माकूल है। इसके बावजूद मध्य व उच्च हिमालयी क्षेत्र की कुछ दुर्लभ पक्षी प्रजातियों के वजूद पर संकट बढ़ता जा रहा है।
By Skand ShuklaEdited By: Updated: Mon, 22 Oct 2018 07:01 PM (IST)
रानीखेत (जेएनएन) : बेशक हिमालयी वादियों की आबोहवा स्थानीय व मेहमान परिंदों के लिए माकूल है। इसके बावजूद मध्य व उच्च हिमालयी क्षेत्र की कुछ दुर्लभ पक्षी प्रजातियों के वजूद पर संकट बढ़ता जा रहा है। 'हिमालयन माउंटेन क्वेल' की विलुप्ति, फिर अस्तित्व को जूझ रहे वेस्टर्न ट्रेगोपैन व राज्य पक्षी मोनाल परिवार के चीर फेजेंट के बाद अब 'स्नो कॉक' यानी हिमाल भी संरक्षित श्रेणी में शामिल हो गया है। विशेषज्ञ इसके लिए वनाग्नि, प्रदूषण व उच्च हिमालय में बढ़ते मानवीय दखल को बड़ा कारण मान रहे हैं।
दरअसल, पश्चिमी हिमालया में 2400 से 2500 मीटर की ऊंचाई पर पाया जाने वाला 'वेस्टर्न ट्रेगोपैन' पक्षी गुम ही हो गया है। पांच से नौ हजार की ऊंचाई पर लंबी पूछ वाले खूबसूरत 'चीर फेजेंट' जहां दुर्लभ हो चला है, तो अब 12 से 19 हजार मीटर उच्च हिमालय पर मिलने वाले 'स्नो कॉक' के अस्तित्व पर भी खतरा मंडराता दिख रहा है।
दरअसल, पश्चिमी हिमालया में 2400 से 2500 मीटर की ऊंचाई पर पाया जाने वाला 'वेस्टर्न ट्रेगोपैन' पक्षी गुम ही हो गया है। पांच से नौ हजार की ऊंचाई पर लंबी पूछ वाले खूबसूरत 'चीर फेजेंट' जहां दुर्लभ हो चला है, तो अब 12 से 19 हजार मीटर उच्च हिमालय पर मिलने वाले 'स्नो कॉक' के अस्तित्व पर भी खतरा मंडराता दिख रहा है।
ये हैं परिंदों के दुश्मन कारण
- वनों की आग बुग्यालों तक पहुंचना
- जलवायु परिवर्तन व तापवृद्धि
- मानवीय दखल मसलन अवैध शिकार
- कीड़ा जड़ी के दोहन को मय मवेशियों के उच्च पहाड़ में डेरा
- कीटनाशकों व रसायनों का प्रयोग
- ये पंछी हैं मानव मित्र
- 'सन बर्ड' परागण में सहायक
- 'फ्लाई कैचर' फसलों के दुश्मन कीटों का शिकारी
- 'लाफिंग ट्रश' जो मानव का तनाव मुक्त करता है
- गिद्ध प्रकृति के सफाई कर्मी
- गौरैया बचाती है धान व गेहूं की फसल
रानीखेत में 200 से ज्यादा पंछियों का बसेरा
अल्मोड़ा महोत्सव पर सोमवार को दूसरे दिन भी बर्ड वॉचिंग कैंप लगा। नगर के साथ ही नेशनल जिम कॉर्बेट पार्क रामनगर से पहुंचे पक्षी विशेषज्ञ, वॉचर व नेचर फोटोग्राफर्स ने भालू डैम के साथ ही झूला देवी मंदिर से सटे सघन वन क्षेत्र, पिलखोली, पन्याली व उपराड़ी व सिलंगी के बीच की पहाड़ी में परिंदों की तमाम प्रजातियों को कैमरे में कैद किया। मंगलवार को बेस्ट फोटोग्राफी का परिणाम घोषित किया जाएगा। सदस्य स्टेट वाइल्ड लाइफ एडवाइजरी बोर्ड अनूप साह ने कहा, रानीखेत के वन क्षेत्रों में 200 से ज्यादा पक्षी प्रजातियां हैं। दल में सीटीआर के पक्षी विशेषज्ञ राजेश भट्टï, मोहन पांडे, अनिल चौधरी, नेचर फोटोग्राफी में स्वर्णपदक विजेता धीरेंद्र बिष्टï, बर्ड वॉचर कमल गोस्वामी, हिमांशु उपाध्याय, सीएस जैन, दीपक वर्मा, प्रीति गोस्वामी, सुबोध साह, बलवंत मनराल आदि शामिल रहे।
अल्मोड़ा महोत्सव पर सोमवार को दूसरे दिन भी बर्ड वॉचिंग कैंप लगा। नगर के साथ ही नेशनल जिम कॉर्बेट पार्क रामनगर से पहुंचे पक्षी विशेषज्ञ, वॉचर व नेचर फोटोग्राफर्स ने भालू डैम के साथ ही झूला देवी मंदिर से सटे सघन वन क्षेत्र, पिलखोली, पन्याली व उपराड़ी व सिलंगी के बीच की पहाड़ी में परिंदों की तमाम प्रजातियों को कैमरे में कैद किया। मंगलवार को बेस्ट फोटोग्राफी का परिणाम घोषित किया जाएगा। सदस्य स्टेट वाइल्ड लाइफ एडवाइजरी बोर्ड अनूप साह ने कहा, रानीखेत के वन क्षेत्रों में 200 से ज्यादा पक्षी प्रजातियां हैं। दल में सीटीआर के पक्षी विशेषज्ञ राजेश भट्टï, मोहन पांडे, अनिल चौधरी, नेचर फोटोग्राफी में स्वर्णपदक विजेता धीरेंद्र बिष्टï, बर्ड वॉचर कमल गोस्वामी, हिमांशु उपाध्याय, सीएस जैन, दीपक वर्मा, प्रीति गोस्वामी, सुबोध साह, बलवंत मनराल आदि शामिल रहे।
रोकना होगा मानवीय दखल को
अनूप साह, सदस्य स्टेट वाइल्ड लाइफ एडवाइजरी बोर्ड ने बताया कि उच्च हिमालयी क्षेत्रों में भी बढ़ते मानवीय दखल को रोकना होगा। तभी पक्षियों के प्राकृतिक वास बचेंगे। निचले भूभाग में पेड़ों का अंधाधुंध दोहन पक्षियों की विलुप्ति का कारण बन रहे। माउंटेन क्वेल 1860 में स्नो व्यू से लगे सेंडलू (नैनीताल) में देखी गई थी। स्नो कॉक भी संरक्षित श्रेणी में आ गई है। वैसे रानीखेत की वादियां बर्ड वॉचिंग का बेहतर स्पॉट बन सकता है। मैं अपने स्तर से यहां की पक्षी प्रजातियों का रिकॉर्ड तैयार कर रहा हूं।
आपके शहर की हर बड़ी खबर, अब आपके फोन पर। डाउनलोड करें लोकल न्यूज़ का सबसे भरोसेमंद साथी- जागरण लोकल ऐप।अनूप साह, सदस्य स्टेट वाइल्ड लाइफ एडवाइजरी बोर्ड ने बताया कि उच्च हिमालयी क्षेत्रों में भी बढ़ते मानवीय दखल को रोकना होगा। तभी पक्षियों के प्राकृतिक वास बचेंगे। निचले भूभाग में पेड़ों का अंधाधुंध दोहन पक्षियों की विलुप्ति का कारण बन रहे। माउंटेन क्वेल 1860 में स्नो व्यू से लगे सेंडलू (नैनीताल) में देखी गई थी। स्नो कॉक भी संरक्षित श्रेणी में आ गई है। वैसे रानीखेत की वादियां बर्ड वॉचिंग का बेहतर स्पॉट बन सकता है। मैं अपने स्तर से यहां की पक्षी प्रजातियों का रिकॉर्ड तैयार कर रहा हूं।