समाज के ताने भी नहीं डिगा पाए इन बेटियों का हौसला, तोड़ा सामंती समाज का वर्चस्व
यह कहानी एक मिसाल है जो हमें और आपको जीवन के संघर्षों का सामना कर आत्म सम्मान से जीने के लिए प्रेरित करती है। तो चलिए मिलाते हैं उन बहादुर बेटियों से।
By Skand ShuklaEdited By: Updated: Sun, 14 Oct 2018 07:41 PM (IST)
राजेश तुराहा (नैनीताल) : एक परिवार में सिर्फ आठ बेटियां हों और माली हालत भी ठीक न हो तो ऐसे परिवार के दुखों की कल्पना करके ही रूह कांप जाती है। सामाजिक ताने ऊपर से जीना मुहाल कर देते हैं। ऐसे ही एक परिवार की कहानी हम आपको बताने जा रहे हैं। लेकिन यह कहानी एक मिसाल है जो हमें और आपको जीवन के संघर्षों का सामना कर आत्म सम्मान से जीने के लिए प्रेरित करती है। तो चलिए मिलाते हैं आपको उन बेटियों से जो हमें तमाम मुश्किलों से लड़कर सामाजिक जड़ताओं की परवाह किए बगैर जीना सिखाती हैं।
किस्सा है उत्तराखंड जिले के ऊधमसिंह नगर का। जहां एक गांव है धूरिया और वहां रहता है स्व कुंवर सिंह और उनकी पत्नी छुटिया देवी का परिवार। इस जनजाति परिवार में आठ बेटियां हैं। बिना भाई के सिर्फ आठ बहनें होने के कारण लोगों के ताने और उपेक्षा ने उनका जीना मुहाल कर दिया था।परिवार की माली हालत भी ठीक नहीं थी। पिता पर बेटियों के विवाह का दबाव था। खैर जैसे तैसे उन्होंने सबसे बड़ी बेटी की शादी कर दूसरी बेटी की शादी भी तय कर दी थी। लेकिन होनी को कुछ और ही मंजूर था। 13 मार्च 2009 को बीमारी के चलते कुंवर सिंह का निधन हो गया। अब परिवार को संभालने के लिए कोई पुरुष सदस्य नहीं था। ऐसे में जिम्मेदारी आई बेटियों पर। परिवार के सामने संकट था पिता को मुखाग्नि कौन देगा।
बेटियों ने उठाई पिता की अर्थी
बेटियों ने तय किया कि वे खुद ही पिता को मुखाग्नि देंगी। लेकिन समाज में इसको लेकर तरह-तरह की बातें होने लगीं। बेटा न होने का भी लोग ताना दे रहे थे। लेकिन समाज की बातों को दरकिनार कर सभी बेटियों ने अपने पिता की अर्थी खुद उठाई और अंतिम संस्कार किया गया।नाराज हुआ समाज, तोड़ी शादी
बेटियों द्वारा पिता को मुखाग्नि देने से बुक्सा जनजाति का समाज उनसे नाराज हो गया और जीते जी पिता द्वारा बेटी शांति का बन्नाखेड़ा साहनी निवासी राहुल से किया गया रिश्ता उसके परिजनों द्वारा तोड़ दिया गया,लेकिन यह बेटियां डगमगाई नहीं और समाज व जिंदगी से संघर्ष के लिए कदम आगे बढ़ाया।
हाथ में थामा हल और बदल दी किस्मत बेटियों के हौसले मजबूत थे। समाज को आइना दिखाते हुये वे पिता की विरासत में आई दस एकड़ जमीन पर खुद हल चला अन्नदाता की भूमिका में आ गई। आठ साल तक कड़ी मेहनत की। इन बेटियों ने न केवल पिता की बीमारी का कर्ज चुकाया बल्कि आज आत्म निर्भर होकर अपनी किस्मत बदल दी हैं।
अपना ट्रैक्टर है और बाइक चलाती हैंउन्होंने खेती के सहारे अपनी स्थिति को इतना मजबूत कर लिया है खुद ट्रैक्टर की मालिक हैं और सभी काम खुद करती हैं। पिता की जीते जी बड़ी बेटी गंगा की शादी हो गई थी उसके बाद से शांति ने परिवार की कमान खुद संंभाल रखी है।
बहनों के साथ पिता की विरासत संभाले है शांतिगंगा के ससुराल में रहने के कारण शांति ने अपनी छोटी बहन चंद्रा देवी (33) मंजू देवी (30 ) बबली (27) जो दिमागी तौर से कमजोर और बीमार है और उसका इलाज चल रहा है। देवकी (24) एमए कर प्रगतिशील जूनियर हाई स्कूल में बच्चों को शिक्षा देर रही है। गीता (20) हरिपुरा हरसान इंटर कॉलेज कक्षा 8वीं तक ही पढ़ पाई है। सबसे छोटी सरस्वती (18) राधेहरि स्नातकोत्तर महाविद्यालय काशीपुर से बीए कर रही है।दो जगह जमीन होने के कारण बहनों ने काम बांट रखा है।
बेटियों को किया जा चुका है सम्मानित
पिता जीते जी जो नहीं कर पाये उनके जाने के बाद बेटियों ने कर दिखाया। भाई न होने के कारण समाज द्वारा दुत्कारे जाने के बाद भी ऐसा कर दिखाया कि सरकार भी इन बेटियों का लोहा मानती है जिसके चलते वर्ष 2011 में इन बहनों को सम्मान पत्र भी दिया गया है। दबंग करना चाहते हैं जमीन पर कब्जा माता छुटिया देवी ने बताया कि उनके पति कुंवर सिंह की दो जगह रम्पुरा और धूरिया गांव में जमीन है। रम्पुरा गांव के ही कुछ लोग प्रीतम और उनके बेटे भोला और पड़ोसी सूरज आदि लोग जमीन पर कब्जा करने की कोशिश करते हैं और इन्हें परेशान किया जाता है, लेकिन उन्हें गर्व है कि उनकी बेटियों ने पिता की जमीन को न केवल सुरक्षित रखा है बल्कि आज कृषि के उपकरण ट्रैक्टर व खुद की बाइक आदि सब उनके पास है यह सब बेटियों की बदौलत हुआ है।यह भी पढ़ें: 74 वर्ष की ये 'मां' संवार रही 35 बच्चों का भविष्य, जानिएयह भी पढ़ें: अपनों की फिक्र ने इस महिला को बनाया आयरन लेडी, जानिए इसकी कहानी
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