जहां छिपता था कुख्यात सुल्ताना डाकू उस जगह का नाम पड़ गया सुल्तान नगरी
सुल्ताना डाकू के किस्से और कहानियों का अंत नहीं। 1920 के आसपास नजीमाबाद बिजनौर से लेकर कालाढूंगी व आसपास के इलाकों में उसका आतंक था। हथियार बंद गिरोह के साथ चलने वाला सुल्ताना बड़े जमीदारों के वहां धावा बोल खूब लूटपाट करता।
हल्द्वानी, जेएनएन : सुल्ताना डाकू के किस्से और कहानियों का अंत नहीं। 1920 के आसपास नजीमाबाद, बिजनौर से लेकर कालाढूंगी व आसपास के इलाकों में उसका आतंक था। हथियार बंद गिरोह के साथ चलने वाला सुल्ताना बड़े जमीदारों के वहां धावा बोल खूब लूटपाट करता। गौलापार के सुल्तान नगरी का नाम भी इस डाकू के साथ जुड़ा है। स्थानीय लोगों के अलावा जनप्रतिनिधि कहते भी हैं कि सुल्ताननगरी कभी घना जंगल हुआ करता था। उस दौर में डाकू सुल्ताना ब्रिटिश पुलिस से बचने के लिए अक्सर इस जंगल में छुप जाता था। सुल्ताना को मरे भले 95 साल के आसपास हो गए हो मगर सुल्तान नगरी का नाम अब भी नहीं बदला।
गौलापार में सर्किट हाउस से सटा हुआ सुल्तान नगरी गांव गौलापार की खेड़ा पंचायत का हिस्सा है। वर्तमान में यहां 250 परिवारों में कुल 1200 लोग रहते हैं। जिनका पेशा काश्तकारी है। खेड़ा के पूर्व क्षेत्र पंचायत सदस्य अर्जुन बिष्ट बताते हैं कि उस दौर का कोई शख्स अब नहीं बचा। हम लोगों ने अपने बुजुर्गों के मुंह से सुना था कि इस घने जंगल में तब कभी-कभी सुल्ताना डाकू का ठिकाना हुआ करता था। इसलिए आज भी सुल्तान नगरी कहा जाता है। नैनीताल रोड पर शीशमहल के पास भी एक सुल्ताननगरी है। इसे भी सुल्ताना डाकू से जोड़ा जाता है। हालांकि, गौला नदी इस क्षेत्र से गुजरती हुई निकलती है। और नदी पार गौलापार की सुल्तान नगरी है।
तीस साल की उम्र में फांसी : ब्रिटिश अफसरों की नाक में दम करने वाले सुल्ताना डाकू को तीस साल की उम्र में 1924 के आसपास हल्द्वानी जेल में फांसी दी गई थी। सुल्ताना पर किताबें लिखी गईं और फिल्म भी बनी। हालांकि, उसके जीवन और किस्सों को लेकर अलग-अलग बातें होती है। वहीं, कुछ लोग उसकी पैदाइश मुरादाबाद तो कुछ नजीमाबाद में बताते हैं। सुल्ताना के जीवन को लकर स्पष्टता से ज्यादा किस्से हैं। यह किस्से एक से दूसरी पीढ़ी को ट्रांसफर हो रहे हैं।