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Bichhu Ghas of Uttarakhand: बिच्छू घास, नाम पर मत जाइए, इसकी खासियत जानकर आपके होश उड़ जाएंगे

Bichhu Ghas of Uttarakhand उत्तराखंड की पहाड़ी पर पाई जाने वाली बिच्छू घास अपने नाम व औषधीय गुणों से लोगाें को आकर्षित करती है। इसका उपयोग साग चाय से लेकर चप्पल व जैकेट तक बनाने में किया जा रहा है।

By Prashant MishraEdited By: Updated: Mon, 25 Jul 2022 05:02 PM (IST)
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Bichhu Ghas of Uttarakhand: इसका उपयोग अभी कम मात्रा में हो पा रहा, जो हो भी रहा वह पारंपिरक है।

हल्द्वानी, ऑनलाइन डेस्क: Bichhu Ghas of Uttarakhand: उत्तराखंड जैवविविधता से भरापूरा राज्य है। यहां प्रकृति ने वनस्पतियों के रूप में काफी कुछ दिया है, जिनका सही मायने में मानव कल्याण के लिए उपयोग व राज्य के विकास में काम किया जाना बाकी है।

यदि इनका संतुलित रूप में उपयोग हो तो पलायन व बेरोजगारी पर काफी हद तक लगाम लग सकती है। आज हम बात करते हैं उत्तराखंड में ऊंचाई पर पाई जाने वाली बिच्छू घास की। इसका उपयोग अभी काफी कम मात्रा में हो पा रहा, जो हो भी रहा वह पारंपिरक है। 

क्या है बिच्छू घास

बिच्छू घास (Bichhu Ghas), सिसुण, कंडाली व नेटल नामों से धीरेे-धीरे लोकप्रिय हो रही है। इसका वानस्पतिक नाम अर्टिका डाईओका है। गर्म तासीर वाले इस पौधे की दुनियाभर में इसकी 250 से अधिक प्रजातियां पाई जाती हैं।

क्यों नाम जुड़ा बिच्छू से

गढ़वाली में इसे कंडाली तो कुमाऊंनी में इसे सिसुण के नाम से जानते हैं। ये घास गलती से छू जाए तो उस जगह झनझनाहट शुरू हो जाती है। इसके कांटेनुमा रोंए से शरीर में बिच्छू जैसा दर्द होता है। ऐसा इसें हिस्टामीन नामक तत्व के कारण हाेता है। 

घास की प्रकृति

पहाड़ पर 4000 फीट से 9000 फीट तक के नमी वाले भूभाग में छायादार जगहों में बहुतायत से पायी जाती है। इसके पौधे चार से छः फीट के होते हैं. इनमें पुष्प जुलाई-अगस्त में खिलते हैं। इसकी तासीर गर्म होती है। इसी कारण से इसे खानपान व अन्य खाद्य चीजों में प्रयोग होता है।

बिच्छू घास के औषधीय गुण

मिनरल, प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, सोडियम, कैल्शियम, आयरन और विटामिन से भरे बिच्छू घास (Bichhu Ghas) का चिकित्सा क्षेत्र में खूब महत्त्व है। शरीर में सूजन आ जाने पर इसकी सूजन वाली जगह में इसे लगाने से सूजन चली जाती है। इसके अलावा यह पित्त दोष और शरीर की जकड़न में भी कारगर है।

इसके बीज से पेट साफ़ होता है। इसका साग पीलिया में काफी फायदा पहुंचाता है। मलेरिया की बीमारी से लड़ने में भी सक्षम है।

मोच या चोट के कारण आयी सूजन व हड्डी के हटने तथा उसमें दरार आने पर इसको प्लास्टर के रूप में उपयोग करते हैं। गर्मी में पहाड़ पर चारे की कमी होती है तो दुधारु पशुओं को बिच्छू घास खिलाई जाती है। इससे दुधारु पशु ज्यादा दूध देते हैं।

बाडी ग्रूमिंग में मददगार

इसकी बूटी से तैयार हेयर-टानिक बालों को गिरने से रोकता है। उनको चमकीला एवं मुलायम बनाता है। इसकी चाय से माेटापे में भी लाभ होता है। इसके साग आंख के लिए लाभदायक है। 

साग-भात का स्वाद लाजवाब

बिच्छू घास की नर्म पत्तियों का पहाड़ पर साग बनाते हैं। इसे मैदानी इलाके की तरह ही इसे चावल के साथ खाया जाता है।

पहाड़ी चावल को यहां झंगोरा कहते हैं। कंडाली-झंगोरा का स्वाद लाजवाब होता है। पयर्टकों के लोकल खाने में इसकी विशेष मांग होती है।

बिच्छू घास से ग्रीन टी भी

बागेश्वर के हेम पंत, हिम आर्गेनिक संस्था के प्रमुख ने बताया कि मल्टी लेवल मार्केटिंग के जरिए यह अपने उत्पादों को अन्य राज्यों में बेचते है। इसमें बिच्छू घास से बनी ग्रीन टी भी है।

हिमालयन ऑग्रेनिक औद्याेगिक उत्पादन सहकारी समिति अल्मोड़ा के माध्यम से भी ग्रीन टी बनाई जा रही है। इसकी चाय की विदेशों में भारी डिमांड है।|

बिच्छू घास के अन्य उत्पाद 

बिच्छू घास (Bichhu Ghas) की बनी चप्पलें सात समंदर पार धूम मचा रही हैं। इसके रेशे से बनी चप्पलें फ्रांस में काफी प्रसिद्ध हैं। 2018 में फ्रांस से 10 हजार पेयर भीमल स्लीपर्स की डिमांड उत्तराखंड को मिली है।उत्तराखंड की कॉटेज इंडस्ट्री के लिए ये उत्साहित करने वाली खबर है। हाल ही में अमेजॉन से विभाग ने 20 उत्पादों की बिक्री के लिए एमओयू साइन किया है।