शिक्षकों ने खुद के प्रयासों से बदली सरकारी स्कूलों की तस्वीर, सराहिए इनके प्रयास को
कैबिनेट का फैसला अच्छा है लेकिन हमारे आसपास कई ऐसे उदाहरण हैं जिन्होंने खुद की इच्छाशक्ति व कर्मठता के बल पर सरकारी स्कूलों की तस्वीर बदल दी।
By Skand ShuklaEdited By: Updated: Mon, 11 Mar 2019 07:58 PM (IST)
हल्द्वानी, जेएनएन : सरकारी स्कूलों में संसाधन जुटाने के लिए प्रदेश सरकार ने स्कूल एडॉप्शन प्रोग्राम को मंजूरी दी है। शुक्रवार को हुई कैबिनेट बैठक में खस्ताहाल व जर्जर स्कूलों को कॉरपोरेट हाउस व स्वयंसेवी संस्थाओं को गोद देने के फैसले पर मुहर लगा दी गई। कैबिनेट का फैसला अच्छा है, लेकिन हमारे आसपास कई ऐसे उदाहरण हैं, जिन्होंने खुद की इच्छाशक्ति व कर्मठता के बल पर सरकारी स्कूलों की तस्वीर बदल दी। ऐसे ही कुछ उदाहरणों पर पेश है दैनिक जागरण की विशेष रिपोर्ट।
बच्चों की खातिर शिक्षक ने गांव में डाला डेरा
हल्द्वानी : सुबह देरी से स्कूल पहुंचने, शाम को घर लौटने की जल्दी में रहने वाले कर्मचारियों के लिए भाष्कर जोशी मिसाल हैं। अल्मोड़ा जिले के राजकीय प्राथमिक विद्यालय बजेला में शिक्षक जोशी ने बच्चों की पढ़ाई की खातिर गांव में डेरा डाल लिया। मूलरूप से सोमेश्वर निवासी जोशी ने अगस्त 2013 में यहां कार्यभार संभाला। अल्मोड़ा से 55 किमी दूर बजेला स्कूल तक पहुंचने के लिए छह किमी पैदल चलना होता है। इसे देखते हुए जोशी स्कूल के पास किराए का कमरे लेकर रहने लगे। तब विद्यालय में दस बच्चे थे। जोशी ने रचनात्मक गतिविधियों व नवाचारी प्रयोग से बच्चों में रुचि जगाई। नतीजतन अभिभावकों ने प्राइवेट स्कूल में पढऩे वाले बच्चों का सरकारी स्कूल में दाखिला करा दिया। आज विद्यालय में 24 बच्चे पढ़ते हैं।
शनिवार को होती हैं नवाचार गतिविधि
विद्यालय में शनिवार का दिन आर्ट-क्राफ्ट, फ्रेबिक पेंटिंग, चित्रकला, कविता, कहानी लेखन में बीतता है। बच्चे कॉमिक्स तैयार करते हैं। बजेला जागरण नाम से निकलने वाली मासिक पत्रिका में क्षेत्रीय समाचारों व बच्चों की एक्टिविटी प्रकाशित होती है।
अंग्रेजी में नाटक प्रस्तुत करते हैं बच्चे अंग्रेजी के नाम से भय खाने वाले बच्चे आज इंग्लिश में नाटक का मंचन करते हैं। इंग्लिश बोलने का धारा प्रवाह ऐसा कि अंग्रेजी मीडियम स्कूल के बच्चे पीछे छूट जाए। बच्चों के बनाए मॉडल देखने लायक होते हैं। शिक्षक ने अपने खर्च से विद्यालय में प्रोजेक्टर लगाया है। पांच साल में विद्यालय की तस्वीर बदल गई। स्वयंसेवी संस्थाएं स्कूल से जुडऩे लगी हैं।
बीईओ की इच्छाशक्ति ने 40 स्कूलों की तस्वीर बदली
रानीखेत : अल्मोड़ा जिले के 40 विद्यालयों में प्रोजेक्टर, लैपटॉप व स्मार्ट टीवी के जरिये नौनिहालों का भविष्य संवारा जा रहा है। ताड़ीखेत ब्लॉक की शिक्षाधिकारी गीतिका जोशी समेत कई अध्यापकों ने जर्जर स्कूल भवनों को कॉन्वेंट जैसी शक्ल देने के लिए वेतन से 4.50 लाख रुपये जुटाए। 'रूपांतरणÓ अभियान के जरिये सरकारी स्कूलों की दशा बदल नया स्वरूप देने के लिए बीईओ को 'मुख्यमंत्री उत्कृष्टता एवं सुशासन पुरस्कार-2018Ó के बाद पांच जनवरी को दिल्ली में मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने 'नेशनल अवार्ड ऑन इनोवेशंस इन एजुकेशन-2019Ó से सम्मानित किया है। यह सम्मान पाने वाली गीतिका उत्तराखंड से एकमात्र शिक्षाधिकारी हैं।इस तरह बढ़ता गया बेहतरी का कारवां
वर्ष 2017 में 'रूपांतरणÓ अभियान पूरे राज्य में शुरू हुआ। गीतिका के आग्रह पर तत्कालीन डीएम इवा आशीष ने अनटाइड फंड दिया। जिले के प्रत्येक ब्लॉक में दो-दो सरकारी स्कूल चिह्निïत हुए। विधायक करन माहरा ने एक सरकारी स्कूल गोद लेकर स्मार्ट टीवी व प्रोजेक्टर लगवाया। स्कूलों में फर्नीचर व सुंदरीकरण के लिए विधायक निधि से 40 लाख रुपये भी दिए। डीएम नितिन भदौरिया ने जिले में सौ सरकारी स्कूलों की कायाकल्प का लक्ष्य रखा है।कॉन्वेंट स्कूलों को टक्कर दे रहे विद्यालय
अल्मोड़ा जिले के 31 स्कूलों में स्मार्ट टीवी से पढ़ाई हो हो रही है। ताड़ीखेत के प्राथमिक विद्यालय टानारैली, सालीखेत, ड्योड़ाखाल में प्रोजेक्टर व कनार, थापला, मोवड़ी स्कूल को लैपटॉप दिए हैं।
जूनियर हाइस्कूल में संचालित किए व्यवसायिक ट्रेड बागेश्वर : जिले के राजकीय जूनियर हाईस्कूल ङ्क्षपगलो के प्रधानाध्यापक सुरेश सती की नवाचारी पहल सरकारी स्कूलों के प्रति अभिभावकों का विश्वास लौटा रही है। सती ने 2008 में जब पिंगलो स्कूल में कार्यभार संभाला तब विद्यालय की छात्र संख्या 33 थी। सती ने शिक्षा की गुणवत्ता सुधारने पर फोकस किया। अभिभावकों की मदद से विद्यालय में कंप्यूटर प्रशिक्षण व सिलाई प्रशिक्षण के दो ट्रेड शुरू कराए। अधिकतर छात्र-छात्राएं पढ़ाई के साथ पसंदीदा ट्रेड में प्रशिक्षण ले रहे हैं। प्रशिक्षण कोर्स तीन-तीन साल के हैं। ङ्क्षहदी, अंग्रेजी, कुमाऊंनी आदि भाषाओं में प्रार्थना सभा, हैंडराइङ्क्षटग, योग, खेल प्रतियोगिताएं भी संचालित हो रही हैं। छात्र-छात्राएं स्टेट लेबल तक पहुंचने लगे हैं। इससे स्कूल की छात्र संख्या 115 तक पहुंच गई है।
रचनात्मक कार्यों में जगाई रुचि विद्यालय में नवाचार पर भी काम हुआ है। 'मेरी संस्कृति, मेरी पहचानÓ के तहत उत्तराखंडी लोक संस्कृति को संजोने का काम हो रहा है। स्थानीय पहनावा, खान-पान, लोकनृत्य, वास्तुकला, ऐपण आदि कार्यक्रम भी आयोजित किए जाते हैं।गवर्नर अवार्ड प्राप्त कर चुके हैं सती प्रधानाध्यापक सती दो साल पूर्व गवर्नर अवार्ड से सम्मानित किए जा चुके हैं। नवाचारी शिक्षा की दिशा में उत्कृष्ट काम के लिए विद्या भारती ने पुरस्कार प्रदान किया। स्कूल के 45 बच्चे राष्ट्रीय निर्धन सह मेधावी छात्रवृत्ति के लिए चयनित हैं। स्वच्छता के लिए विद्यालय पुरस्कृत हो चुका है।यह भी पढ़ें : लापरवाही की हद : खनन का काम पूरा, मजदूरों को अब मिलेंगे सेफ्टी उपकरण व कंबलयह भी पढ़ें : कॉर्बेट नेशनल पार्क में फोटो खींचने पर भड़का हाथी, पर्यटकों पर किया हमला
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