तराई के जंगल में मां के लाडले हैं ढाई वर्ष से कम उम्र के दस हाथी, पूरा कुनबा करता है इनकी सुरक्षा
उत्तराखंड में अंतिम बार जून 2020 में हाथियों की गणना हुई थी। तराई की पांच डिवीजनों में 127 हाथी सामने आए थे। सर्किल के दस हाथियों की उम्र अभी ढाई साल के आसपास है। इन्हें कुनबे का लाडला कहा जाता है।
By Skand ShuklaEdited By: Updated: Sun, 11 Sep 2022 08:21 AM (IST)
जागरण संवाददाता, हल्द्वानी : Elephant in Terai Forest Uttarakhand : तराई के जंगल बाघ के अलावा हाथियों के सुरक्षित आशियाने को लेकर जाने जाते हैं। उत्तराखंड में अंतिम बार जून 2020 में हाथियों की गणना हुई थी। तब राज्य में 2026 और वेस्टर्न सर्किल यानी तराई की पांच डिवीजनों में 127 हाथी सामने आए थे।
खास बात यह है सर्किल के दस हाथियों की उम्र अभी ढाई साल के आसपास है। इन्हें कुनबे का लाडला कहा जाता है। मां समेत परिवार के सभी सदस्य इनकी देखभाल में रहते हैं। कम उम्र होने की वजह से कुनबे से बिछडऩा इन्हें संकट में भी डाल सकता है। बाघ या तेंदुए इन्हें घेर भी सकते हैं। इसलिए हाथी इन छोटे सदस्यों को झुंड से अलग यह पीछे नहीं रहने देते।
वन विभाग के अधिकारियों के अनुसार पारिवारिक सदस्यों की चिंता को लेकर हाथियों के अंदर बिल्कुल इंसानों की तरह भाव होते हैं। मातृत्व प्रधान कुनबा होने के कारण मां का किरदार काफी अहम होता है। बिगड़ैल हाथी यानी टस्कर को झुंड से अलग करने में भी बाकी सदस्य परहेज नहीं करते।
एक-दूसरे के प्रति भावनात्मक लगाव होने के कारण संकट के वक्त यह आक्रोशित भी हो जाते हैं। 15 साल से कम उम्र के हाथी को अवयस्क माना जाता है। ऐसे में तराई की पांच डिवीजन में मौजूद इन 10 हाथियों की सुरक्षा को लेकर वन विभाग भी खासा सतर्क रहता है।
गश्त के दौरान इनके पदचिन्हों को भी लगातार ट्रेस करने की कोशिश की जाती है। ताकि इनकी सुरक्षित उपस्थिति के प्रमाण भी मिलते रहे। इसके अलावा हाथी और बाघ के पद्चिन्ह एक ही जगह पर बार-बार ट्रेस होने पर वहां कैमरा ट्रैप भी लगाया जाता है। ताकि जंगल के इन दो ताकतवार वन्यजीवों के एक-दूसरे के प्रति व्यवहार का आकलन भी किया जा सके।
मां के रिश्ते से ज्यादा दुलार : वन संरक्षक
पश्चिमी वृत्त के वन संरक्षक दीप चंद्र आर्य का कहना है कि वैसे तो हाथी को हमेशा कुनबे वाला वन्यजीव माना जाता है। लेकिन 10 साल की उम्र तक लगाव कुछ ज्यादा रहता है। खासकर मातृत्व कुनबे की तरफ से ज्यादा ध्यान रखा जाता है। दूसरी तरफ बाघ में परिवार वाला भाव कम ही नजर आता है। यहां मां ही अपने शावकों की निगरानी करती है।
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