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स्वामी विवेकानंद की तपोस्थली काकड़ीघाट में बढ़ेगी वटवृक्षों की वंशावली

स्वामी विवेकानंद के एकात्ममानवाद के संदेश के साथ गांव गांव तक प्राकृतिक पुनरोत्पादन से उगे पौधे महिलाएं वटसावित्री व्रत पर लगाएंगी। ताकि ये पौधे भविष्य की चुनौति को कम कर पर्यावरण व मानव जीवन बचाने में मदद कर सकें।

By Prashant MishraEdited By: Updated: Tue, 08 Jun 2021 08:47 PM (IST)
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हजारों वर्षों से प्राणवायु दे रहे दो वटवृक्षों के क्लोन तैयार कराने की भी पहल की जा रही है।
दीप सिंह बोरा, अल्मोड़ा। वैश्विक महासंकट कोरोना ने मानव स्वास्थ्य पर सितम तो ढाया। प्राणवायु की महत्ता भी बता दी। ऐसे में सबसे ज्यादा कार्बन डाई ऑक्साइड अवशोषित कर इंसान को सर्वाधिक ऑक्सीजन देने वाले बहुपयोगी महावृक्षों की तरफ रुझान व उनकी छांव तलाशना स्वाभाविक है। आखिर सवाल प्राणवायु का जो है। महामारी के बीच कुछ प्रकृति एवं वृक्ष प्रेमियों ने कृत्रिम ऑक्सीजन की चुनौति से पार पाने को महावृक्ष बरगद (वटवृक्ष) के नन्हे पौधों के संरक्षण और गांव गांव तक इन्हें विस्तार देने का बीड़ा उठाया है। काकड़ीघाट में जीवनदायिनी कोसी व सिरौता नदी के संगम पर युग पुरुष की तपोस्थली से चंद कदम दूर हजारों वर्षों से प्राणवायु दे रहे दो वटवृक्षों के क्लोन तैयार कराने की भी पहल की जा रही है।

बरगद का वृक्ष शुद्ध एवं प्राकृतिक रूप से प्राणवायु देकर मानवजीवन को सुरक्षित रखता है। महासंकट के इस दौर में ऑक्सीजन के संकट ने इसकी महत्ता और बढ़ा दी है। विवेकानंद सेवा समिति की काकड़ीघाट शाखा अध्यक्ष हरीशचंद्र सिंह परिहार ने युग पुरुष की तपोस्थली से कुछ दूर बाबा नीम करोली महाराज के मंदिर में दो वटवृक्षों के बीजों से तैयार नन्हे पौधे संरक्षित किए हैं। वह कहते हैं, स्वामी विवेकानंद के एकात्ममानवाद के संदेश के साथ गांव गांव तक प्राकृतिक पुनरोत्पादन से उगे पौधे महिलाएं वटसावित्री व्रत पर लगाएंगी। ताकि ये पौधे भविष्य की चुनौति को कम कर पर्यावरण व मानव जीवन बचाने में मदद कर सकें।

पांच वर्ष पूर्व ज्ञानवृक्ष के बनाए थे क्लोन

काकड़ीघाट में हिमालय यात्रा पर पहुंचे स्वामी विवेकानंद को सूक्ष्म ब्रह्मांड का ज्ञान पीपलवृक्ष की छांव में मिला था। सर्वाधिक ऑक्सीजन देने वाले हजारों वर्ष पुराने इस वृक्ष से वर्ष 2016 में पंतनगर कृषि विवि के विज्ञानियों ने दो क्लोन तैयार किए थे। एक तपोस्थली में ही पल्लवित होकर युग पुरुष की मौजूदगी का अहसास कराता है। समिति अध्यक्ष हरीश परिहार ने कहा, विज्ञानियों की मदद से इन वटवृक्षों के भी क्लोन तैयार कराए जाएंगे।

क्या कहते हैं वनस्पति विशेषज्ञ

बरगद के बीजों से नए पौधे उगते हैं। पर अंकुरण कम होता है। वानस्पतिक प्रसारण यानी टहनी काट कर लगाने से पौधे तैयार किए जाते हैं। जल व मृदा संरक्षण, मिट्टी की उर्वराशक्ति बढ़ाने और वायुमंडलीय नमी बनाए रखने वाले बरगद वर्षा चक्र को भी संतुलित रखता है। प्राकृतिक रूप से कार्बन डाई ऑक्साइड का काफी अवशोषण कर ऑक्सीजन की मात्रा बढ़ाने वाले वटवृक्ष के लिए पहाड़ की गरम घाटियां माकूल हैं। स्वामी विवेकानंद सेवा समिति की पहल सराहनीय है।

- डा. रमेश सिंह बिष्ट, वनस्पति विशेषज्ञ

'दिन रात ऑक्सीजन देने वाले बरगद के बीजों को बो कर संरक्षित कर सकते हैं। कलम लगाकर भी नए पौधे बनाए जाते हैं पर यह विधि कम सफल है। ज्यादा स्थान घेरने के कारण लोग इसे कम लगाते हैं। मगर खाली जमीन पर इन्हें लगाना चाहिए। वर्तमान में बोनसाई विधि से गमलों में लगाने का प्रचलन बढ़ा है।

- डा. प्रेम प्रकाश, वनस्पति विज्ञान विभाग एमबी पीजी कालेज हल्द्वानी

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