कुकुरमुत्ते को रास आई नैनीताल की आबोहवा, मशरूम हब के रूप में जिले को किया जाएगा विकसित
Nainital Mushroom Hub नैनीताल जिले को मशरूम हब के रूप में विकसित करने का काम शुरू हाे गया है। इसके लिए डीएम धीराज सिंह गर्ब्याल ने विशेष कार्ययोजना तैयार की है। जिसके तहत जिल 500 किसानों को दो महीने में ट्रेनिंग दी जा चुकी है।
मशरूम के कई नाम
मशरूम कवक से बना एक मांसल बीजाणु-युक्त जमीन के ऊपर पैदा होने वाला खाद्य पदार्थ है और भोजन का अच्छा स्रोत है। ये कई तरह के होते हैं। इन्हें हिन्दी में कुकुरमुत्ता, छत्रक, खुम्ब, खुम्भी, सुक्कर, भुुुछत्र, भुछत्री भी कहते हैं।नैनीताल की आबोहवा मशरूम उत्पादन के लिए बेहतर
महिला समूह भी करेंगे मशरूम का उत्पादन
अब तक 2400 किसान जुड़े
वरिष्ठ उद्यान निरीक्षक आरसी जोशी बताते हैं कि अब तक 2400 किसानों को मशरूम खेती से जोड़ा जा चुका है। उन्होंने बताया कि कुमाऊं में 2021-22 में 4310 मीट्रिक टन मशरूम का उत्पादन किया गया था, जिसमें अकेले नैनीताल जनपद में 2150 मीट्रिक टन मशरूम का उत्पादन हुआ। इसके लिए जिले में 11 व्यावसायिक इकाइयां खोली जा चुकी हैं। इन्हें और बढ़ाया जाएगा। वहीं, कुमाऊं में चार राजकीय इकाइयाें के अलावा 14 व्यावसायिक इकाइयां भी संचालित हैदो तरह के मशरूम का होता है उत्पादन
वरिष्ठ उद्यान निरीक्षक आरसी जोशी के मुताबिक, नैनीताल जनपद में दो प्रकार का मशरूम उत्पादित होता है। बटर मशरूम का उत्पादन सितंबर से प्रारंभ होता है, जो मई तक जारी रहता है। इसके उत्पादन में 14 से 18 डिग्री सेंटीग्रेड तक के तापमान की आवश्यकता होती है, जो तीन महीने में तैयार हो जाती है। इसके अलावा डिगरी मशरूम का उत्पादन भी किया जाता है। इसका उत्पादन वर्ष भर होता रहता है। इसके लिए 32 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान की आवश्यकता होती है।मशरूम के फायदे
मशरूम भोजन का अच्छा स्रोत है। यह कैलोरी कम करने में मददगार है क्योंकि इसका फाइबर पेट को भरा हुआ रखता है और भूख को नियंत्रित करता है। इसके अलावा मशरूम में कार्ब्स की मात्रा भी कम होती है। ये कैलोरी और वसा में कम होते हैं और इनमें पानी, प्रोटीन और फाइबर की मात्रा अधिक होती है। इनमें तांबा, पोटेशियम, सेलेनियम, ग्लूटाथियोन और विटामिन सी भी होते हैं।10 हजार लगाकर महीने में 15 हजार तक की हो सकती है कमाई
मशरूम का उत्पादन छोटे स्थानों पर भी किया जा सकता है। वरिष्ठ उद्यान निरीक्षक आरसी जोशी बताते हैं कि 10 गुणा 10 स्क्वायर फीट के कक्ष में एक टन मशरूम का उत्पादन किया जा सकता है। इसमें लगभग दस हजार रुपये की लागत आती है और तीन महीने के बाद 12 से 15 हजार रुपये प्रति माह कमाया जा सकता है।मिलते हैं कई तरह के अुनदान
मशरूम उत्पादन को प्रोत्साहित करने के लिए राज्य सरकार, 50 प्रतिशत अनुदान देती है। जिला योजना के तहत भी 80 प्रतिशत का अनुदान मिल जाता है। इसके अलावा ट्रांसपोर्ट में जिला योजना से 100 प्रतिशत अनुदान, ट्रांसपोर्ट में ही राज्य सेक्टर से 50 प्रतिशत रोड हेड तक अनुदान दिया जा रहा है। वही बीज पर 50 प्रतिशत अनुदान राज्य सहायता से मिलता है। एचएमएइएच योजना के अंतर्गत व्यवसाय इकाई पर 40 प्रतिशत राज्य सहायता, प्रशिक्षण और तकनीकी ज्ञान निशुल्क दिया जा रहा है।मशरूम के कई नाम
मशरूम कवक से बना एक मांसल बीजाणु-युक्त जमीन के ऊपर पैदा होने वाला खाद्य पदार्थ है और भोजन का अच्छा स्रोत है। ये कई तरह के होते हैं। इन्हें हिन्दी में कुकुरमुत्ता, छत्रक, खुम्ब, खुम्भी, सुक्कर, भुुुछत्र, भुछत्री भी कहते हैं।विभाग के द्वारा अधिक से अधिक कास्तकारों को मशरूम उत्पादन से जोड़ने का प्रयास किया जा रहा है। अब तक कई कास्तकारों को इससे जोड़ा भी जा चुका है। समय-समय पर प्रशिक्षण आदि भी आयोजित किए जा रहे हैं। कास्तकारों की आय को बढ़ाने के लिए योजना लाभकारी है।
- डाॅ. नरेन्द्र कुमार, जिला उदयान अधिकारी
मशरूम उत्पादन लाभकारी है। पर समय-समय पर इसमें तकनीकी प्रशिक्षण आवश्यक है। वह समय में नहीं मिल पा रहा है। मैंने कुछ सुझाव सीडीओ को दिए भी हैं और उत्पादन में अन्य सहायता की भी आवश्यकता है।
-मनोज पांडे, मशरूम उत्पादक, सोन गांव भीमताल
मैं भी मशरूम उत्पादन कर रहा हूं। यह अभी तक लाभकारी ही साबित हुआ है। उद्यान विभाग का प्रशिक्षण मददगार साबित हुआ है। उत्पादन करने पर मशरूम के लिए बाजार की कमी नहीं है। सभी जगह बाजार उपलब्ध है।
-ललित सुयाल, मशरूम उत्पादक, सोन गांव