कत्यूरियों की धरती पाटिया रियासत में पत्थर युद्ध, निभा रहे 12वीं सदी से चली आ रही पौराणिक परंपरा
कत्यूरीकाल की सांस्कृतिक विरासत व गौरवशाली इतिहास को समेटे पाटिया (प्राचीन पढिया रियासत) में पाषाण युद्घ यानी बगवाल लगभग 47 मिनट तक चली।
By Skand ShuklaEdited By: Updated: Wed, 30 Oct 2019 10:06 AM (IST)
अल्मोड़ा, जेएनएन : कत्यूरीकाल की सांस्कृतिक विरासत व गौरवशाली इतिहास को समेटे पाटिया (प्राचीन पढिया रियासत) में पाषाण युद्घ यानी बगवाल लगभग 47 मिनट तक चली। दक्षिणी बिनसर से निकलने वाली पवित्र भेटुली नदी के एक ओर पाटिया व भटगांव तथा दूसरी तरफ कोट्यूड़ा व कसून के बगवाली वीरों ने एक दूसरे पर पत्थरों की बरसात कर 12वीं सदी से चली आ रही पत्थरयुद्ध की पौराणिक परंपरा को निभाया। इस दौरान लगभग सात रणबांकुरे पत्थर लगने से चोटिल भी हुए, मगर अगले ही पल जयघोष कर विरोधी खेमे के सामने मोर्चे पर डटे रहे।
जिला मुख्यालय से करीब 20 किमी दूर कत्यूरी राजाओं की स्यूनराकोट पट्टी स्थित पाटिया रियासत में गोवद्र्धन पूजा पर प्रतीकात्मक पाषाण युद्ध हुआ। इससे पूर्व पाटिया के कत्यूरी वीरों ने परंपरा के अनुसार गोवद्र्धन पूजन किया। उसी खेत पर गाय की पूजा की गई, जहां पर 12वीं सदी में हुए आक्रमण के दौरान रणबांकुरों ने अपने गोवंश को एकत्र कर सुरक्षा कवच प्रदान किया था। विधिविधान से पूजन के बाद वरिष्ठ लोगों की अगुवाई में युवा रणबांकुरे पंचघटिया रणक्षेत्र के टीले पर एकत्र हुए। ढोल नगाड़ों की गर्जन करती ध्वनि के बीच कोट्यूड़ा व कसून के बगवाली वीरों को ललकारा। वहीं भेटुली नदी के पार से हुंकार भरते कोट्यूड़ा व कसून के वीर भी पहाड़ी से उतरते आगे बढ़े। वीर रस की हुंकार व मातृशक्ति के आह्वïान पर दोनों तरफ से रणबांकुरों ने एकसाथ पत्थर बरसाने शुरू किए। शुरूआत में कुछ धीमा लेकिन जैसे जैसे समय बीतता गया, जोशीले रणबांकुरों ने हवा की गति से पत्थरों से एक दूसरे पर हमले तेज कर दिए।
पत्थरों की चोट को शिव का आशीर्वाद मानते हैं कत्यूरी लड़ाके बगवाल के दौरान चोटिल भी हुए। विभिन्न खामों के चार बगवाली वीरों को बहुत जोर से पत्थर लगे। मगर कुछ सेकंड शांत रहने और रणभूमि की मिट्टी को छूकर ये वीर फिर उसी फूर्ती से विरोधी खेमे पर पत्थर बरसाने शुरू कर देते। सेवानिवृत्त सांख्यिकी अधिकारी गोविंद सिंह बिष्टï कहते हैं कि यह कत्यूरियों पर देवाधिदेव शिव का आशीर्वाद माना जाता है। बगवाल के दौरान कितनी भी तेजी से छोटा बड़ा पत्थर लगे, किसी भी वीर को नुकसान नहीं पहुंचता।
इसलिए पत्थरों से ही किया जाता है युद्ध कहते हैं, कत्यूर शासनकाल जब अवसान की ओर था तब छोटी छोटी ठकुराइयों में बंटे रियासतदार कमजोर पड़ते गए। इसके उलट पढिया रियासत के वीर पढियार, कोट्यूड़ा, कसून व कत्यूरियों के पुरोहित भट्ट वीरों ने अपनी संस्कृति, परंपरा व गोसंरक्षण की रक्षा के लिए साहस नहीं छोड़ा। 12वीं सदी में दीपावली के ठीक दूसरे गोवद्र्धन पूजा के ही दिन दुश्मन सेना ने स्यूनराकोट की रियासत पर हमला बोल दियाथा। तब इन चार रियासतों के वीर कत्यूरियों ने आक्रमणकारियों पर पाटिया में पत्थर वर्षा कर विजयी श्री हासिल की गई थी। पांच मुख्य आक्रमणकारी लड़ाके इसी स्थान पर मार गिराए गए थे। उसे पंचघटिया कहा जाने लगा। बाद में संधि हुई। जीत की यह गौरवशाली परंपरा तभी से चली आ रही।
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