त्रिवेंद्र सरकार में नौकरशाही बेलगाम है या मंत्री, एक के एक सामने आ रहे मामलों की जांच जरूरी
त्रिवेंद्र सरकार में कुछ समय पहले सत्तापक्ष के विधायक ही नौकरशाही के रवैये से परेशान दिखे तो अब महिला सशक्तीकरण एवं बाल विकास राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) रेखा आर्य ने फोन नहीं उठाने पर एक आइएएस अधिकारी के अपहरण की तहरीर तक सौंप दी।
नैनीताल पर क्यों चुप रही त्रिवेंद्र सरकार
किसी शहर को संवारने में अहम योगदान होता है वहां की पालिका का। पालिका यानी शहर की सरकार। जब यह सरकार ही आर्थिक रूप से पंगु हो जाए, तब विकास कैसे होगा? सवाल बड़ा है, लेकिन जवाब देने वाले गायब हैं। पर्यटन के क्षेत्र में अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त सरोवर नगरी नैनीताल का यह इस समय यही हाल है। त्रिवेंद्र सरकार भले ही पर्यटन क्षेत्रों के विकसित करने का कितना ही दावा कर रही हो, लेकिन नगर पालिका नैनीताल को नौ करोड़ का भुगतान करने में असमर्थ है। लिहाजा पालिकाध्यक्ष सचिन नेगी आमरण अनशन को मजबूर हैं। पांच दिन से अनशन करने के बावजूद सरकार आंखें मूंदी हुई हैं। भले ही पालिकाध्यक्ष विपक्षी दल के हों, पर निकाय की अनदेखी ठीक नहीं। कुछ नेताओं के लिए यह सियासी ड्रामा भर है। बावजूद इसके सरकार का हकीकत से मुंह मोडऩा भी सियासी चालबाजी ही कही जाएगी।
ऐसे में कोरोना कैसे होगा नियंत्रित
कोरोना को नियंत्रित करने के सरकारी इंतजाम हो या लोगों की जागरूकता, हर जगह लापरवाही दिखी। इस समय कोरोना का ग्राफ तेजी से बढऩे लगा है, फिर भी हालात नहीं सुधरे। शुरुआती महीने को छोड़ दें, तो इसके बाद सभी का रवैया लापरवाह ही रहा। कांटेक्ट ट्रेसिंग को लेकर महज खानापूर्ति। टेस्टिंग तो बढ़ गई, लेकिन रिपोर्ट मिलने को लेकर फजीहत झेलने की मजबूरी। पॉजिटिव पाए जाने पर सही समय पर सही जानकारी उपलब्ध नहीं कराना। यह तो प्रशासनिक लापरवाही रही, वहीं लोग भी बेपरवाह हो गए। बीमार होने पर जांच नहीं कराना। पॉजिटिव व्यक्ति के संपर्क में आने पर खुद को आइसोलेट न करना। शारीरिक दूरी की धज्जियां उड़ाना। मास्क को ठुड्डी के नीचे लटका देना। यह सब वजहें हैं, जिसकी वजह से कोरोना संक्रमण का प्रसार तेजी से हुआ और हो रहा है। आखिर अब तो लोगों को सचेत हो जाना चाहिए।
उम्मीद में स्कूलों का भविष्य
राज्य में शिक्षा की बेहतरी फिलहाल उम्मीद पर ही टिकी रहती है। कभी चुनावों से पहले के वादे में तो फिर सरकार बनने के बाद सीएम व शिक्षा मंत्री की घोषणाओं में। पूर्व की कांग्रेस सरकार में मॉडल स्कूल नाम दिए गए थे, जहां रंगाई-पुताई से बात आगे नहीं बढ़ सकी थी। त्रिवेंद्र सरकार में भी साढ़े तीन साल में राज्य के 174 स्कूलों का नाम अटल आदर्श स्कूल जरूर कर दिया गया, लेकिन इनमें सुविधाओं के नाम पर अभी निर्णय ही होने में हैं। सीएसआर (कॉरपोरेट रिस्पांसबिलिटी फंड) से इन स्कूलों में फर्नीचर, अतिरिक्त शौचालय बनाने का निर्णय पहले ही हो गया था। प्रत्येक ब्लॉक के दो-दो राजकीय इंटर कॉलेज चिन्हित करने का निर्णय भी था। निर्णय की सराहना होनी भी चाहिए थी, लेकिन सरकार के निर्णय धरातल पर कब उतरेंगे? इसे कौन सुनिश्चित कराएगा? कितना समय लग जाएगा? इसकी कोई डेडलाइन भी तय नहीं है।