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हिमालय की गोद में इस जगह की खूबसूरती मोह लेती है मन, दुर्भाग्‍य पहुंचने के लिए रास्‍ता ही नहीं

चीन और नेपाल सीमा से लगे सीमांत मुनस्यारी और धारचूला तहसीलों के मध्य स्थित छिपलाकोट पर्वत खूबसूरती और खूबियों का भंडारी समेटे हुए है।

By Skand ShuklaEdited By: Updated: Wed, 18 Sep 2019 12:09 PM (IST)
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हिमालय की गोद में इस जगह की खूबसूरती मोह लेती है मन, दुर्भाग्‍य पहुंचने के लिए रास्‍ता ही नहीं
पिथौरागढ़, ओपी अवस्थी : चीन और नेपाल सीमा से लगे मुनस्यारी और धारचूला तहसीलों के मध्य स्थित छिपलाकोट पर्वत खूबसूरती और खूबियों का भंडारी समेटे हुए है। यह धारचूला, मुनस्यारी, बंगापानी और डीडीहाट तहसीलवासियों का प्रमुख देवस्थल भी है। जिसे स्थानीय लोगों ने अर्द्ध कैलास का नाम दिया है। मान्यता है कि यहां की यात्रा करने के बाद कैलास मानसरोवर के आधे फल प्राप्त हो जाते हैं। इस आस्था के अलावा छिपलाकेदार मध्य हिमालय में कुमाऊं का सबसे खूबसूरत स्थल है। दुर्भाग्य यह है कि आज तक यहां पहुंचने के लिए सुगम मार्ग नहीं बन सका है।

छिपलाकेदार की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यहां पर देवताओं के प्रिय पुष्प ब्रह्मकमल के जंगल हैं। नाजरीकोट के पास चर्थी बुग्याल है जो अपनी खूबसूरती के लिए जाना जाता है। पांच बड़ी झीलें हैं। खतरनाक मार्गों से होकर यहां पहुंचने वाले लोग छिपलाकेदार के दीवाने हो जाते हैं, परंतु प्रकृति का यह सौंदर्य केवल मार्गों के अभाव के चलते दुनिया की नजर से अभी दूर है। उत्तर प्रदेश के दौर में धारचूला की तरफ से छिपलाकोट तक ट्रेक निर्माण का प्रस्ताव तैयार हुआ था। विकास खंड स्तर से सिर्फ प्रस्ताव बनने से ज्यादा आज तक कुछ भी नहीं हो सका। मध्य हिमालय का खूबसूरत स्थल आज भी पर्यटकों और ट्रैकरों की नजर से दूर है। इस बारे में विधायक धारचूला हरीश धामी ने बताया कि छिपलाकोट  में पर्यटन विकास आवश्यक है। इसके लिए कनार, मेतली, गोल्फा तक सड़क निर्माण आवश्यक है। इन स्थानों के लिए सड़कें बन रही हैं। सड़कें बनते ही इस ट्रेक के लिए सरकार पर दबाव बनाया जाएगा।

छिपलाकोट की विशेषताएं 

छिपलाकोट में पांच विशाल कुंड हैं। जिसमें हुक्क्षर कुंड, ब्रह्म कुंड, कटौज कुंड, हर चंद और बाल चंद कुंड हैं। इन कुंडों के चारों तरफ ब्रह्मकमल खिले रहते हैं।

भादौ माह में होती है पूजा-अर्चना

छिपलाकोट एक ऐसा स्थल है जहां पर भादौ माह में पूजा अर्चना होती है। इस अति दुर्गम स्थल पर ग्रामीण भक्त नंगे पैर पहुंचते हैं। लोग अपने बच्चों का यहां पर उपनयन संस्कार कराते हैं। 

चार अलग-अलग स्थानों से पहुंचते हैं छिपलाकेदार 

छिपलाकोट पहुंचने के लिए चार  मार्ग हैं। जिसमें एक मार्ग धारचूला के रांथी, खेत, खेला, जुम्मा होकर जाता है। दूसरा मार्ग बंगापानी के बरम से कनार होते हुए और तीसरा मार्ग बंगापानी के ही जाराजिबली से बैकोट, भनार होते तो चौथा मार्ग बंगापानी के ही सेरा से है। सभी स्थानों से दो दिन की कठिन यात्रा कर ही पहुंचा जा सकता है।

चारों मार्गों को जोड़ कर सर्किट बनने से पर्यटन को लगेंगे पंख 

धारचूला के रांथी, खेत से होकर यदि ट्रैक बने जो छिपलाकोट, नाजुरीकोट से होते हुए अन्य तीन मार्गों से जोड़ा जाए तो यह मध्य हिमालय में उच्च हिमालय जैसे सौंदर्य से भरपूर सबसे आकर्षक ट्रेक होगा। कॉसमस ट्रेक के सुरेंद्र पवार और जगदीश भट्ट का कहना है कि यदि इस ट्रेक में सही मार्ग बना दिए जाएं तो यह हिमालयन रेंज का सबसे आकर्षक ट्रेक होगा और पर्यटन को पंख लगेंगे। रांथी निवासी समाज सेवी केशर सिंह धामी का कहना है कि छिपलाकोट उनकी आस्था का सबसे बड़ा स्थल है। हर तीन वर्ष बाद ग्रामीण यहां जाते हैं । यदि छिपलाकोट के लिए मार्ग बने तो यह क्षेत्र की आर्थिकी में सुधार के साथ ही इस क्षेत्र को पर्यटन के क्षेत्र में एक नया मुकाम देगा। 

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