कौसानी की प्रसिद्ध चाय फैक्ट्री बंद होने से हजारों लोग हुए बेरोजगार, सीएम के भरोसे पर उम्मीद कायम
कौसानी के चाय बागान की पहचान पूरे देश में होने लगी थी। पर्यटन के साथ ही स्थानीय लोगों के रोजगार का साधन भी बढऩे लगा था मगर कुप्रबंधन के कारण सब फैक्ट्री बंद हो गई।
By Skand ShuklaEdited By: Updated: Tue, 04 Feb 2020 11:13 AM (IST)
बागेश्वर, चन्द्रशेखर द्विवेदी : कौसानी के चाय बागान की पहचान पूरे देश में होने लगी थी। पर्यटन के साथ ही स्थानीय लोगों के रोजगार का साधन भी बढऩे लगा था, मगर धीरे-धीरे सरकारी नीतियों में खामियां हों या फिर कुप्रबंधन, चाय फैक्ट्री ही बंद हो गई। लोगों के लिए आस बन चुकी इस फैक्ट्री को खोलने के लिए सीएम से लेकर मुख्य सचिव तक भरोसा दिला चुके हैं, लेकिन आज तक सफलता नहीं मिली है। 17 साल पहले खोली गई चाय फैक्ट्री में आज वीरानी छाई हुई है।
ये रहा कंपनी का सफर वर्ष 1994-95 में कुमाऊं मंडल विकास निगम और गढ़वाल मंडल विकास निगम में चाय प्रकोष्ठ की नींव रखी गई। करीब 10 किलोमीटर के दायरे में 211 हेक्टेयर जमीन का चयन चाय के बागान के लिए किया गया, मगर संसाधनों की कम उपलब्धता के कारण उस समय केवल 50 हेक्टेयर जमीन पर ही प्रकोष्ठ ने चाय बागान विकसित किए जो 2001 के आते-आते पूरी तरह से व्यावसायिक चाय बनाने के लिए तैयार हो गए। चाय की अच्छी फसल को देखते हुए 2001 में चाय प्रकोष्ठ ने एक निजी कंपनी गिरीराज को कौसानी में चाय की फैक्ट्री लगाने के लिए आमंत्रित किया।
कंपनी से थीं ये शर्तेंसात जून 2001 को हुए एमओयू के मुताबिक, अनुबंध अगले 25 साल तक जारी रहेगा और चाय फैक्ट्री लगाने का 89 प्रतिशत खर्चा गिरीराज कंपनी को उठाना होगा।
बाजार में उतारी और फैक्ट्री हो गई बंद 2002 में 50 हेक्टेयर में विकसित चाय बागान से 70 हजार 588 किलोग्राम कच्ची पत्तियां उत्पादित हुईं, जिससे करीब 13 हजार 995 किलोग्राम चाय तैयार हुई। इसे उत्तरांचल टी के नाम से बाजार में उतारा गया। मुनाफा देख सरकार ने केएमवीएन और जीएमवीएन को इस कारोबार से हटाकर 2004 में उत्तराखंड चाय विकास बोर्ड का गठन किया। 2013 तक बोर्ड ने 211 हेक्टेयर भूमि में चाय का उत्पादन कर 2.50 लाख किलो कच्ची पत्तियां कंपनी को उपलब्ध कराईं। मगर अगले ही साल जून 2014 को फैक्ट्री ने दम तोड़ दिया।
एक हजार कर्मचारी हो गए बेरोजगार चाय फैक्ट्री में एक हजार लोग कार्यरत थे। यहां स्थानीय लोगों को स्थायी व अस्थायी तौर पर रोजगार मिला था। चाय फैक्ट्री बंद होने से यह सभी बेरोजगार हो गए। कुछ समय तक कंपनी के खुलने का इंतजार करते रहे, लेकिन अब आस भी छूट गई। बेरोजगार इधर-उधर पलायन कर गए।जानिए क्या कहते हैं अधिकारी व विधायक डायरेक्टर, टी-बोर्ड एसके श्रीवास्तव का कहना है कि प्राइवेट कंपनी है, फैक्ट्री खोलने को रिक्वेस्ट की जा रही है। बोर्ड का कोई अंकुश नहीं है, चाय पत्ती देने के लिए हमारी तैयारी है। टी-फैक्ट्री खुलेगी तो स्थानीय रोजगार भी बढ़ेगा। वहीं विधायक बागेश्वर चंदन राम दास ने कहा कि चाय की पत्तियों को लेकर रोजगार की काफी संभावनाएं हैं। बंद फैक्ट्री को खुलवाने के लिए प्रयास किए जा रहे हैं। राज्य सरकार इस मामल में गंभीरता से कार्य कर रही है।
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