Uttarakhand Lockdown Day 3 : उत्तराखंड में 855 विचाराधीन बंदी व कैदियों की रिहाई का रास्ता साफ
कोरोना संक्रमण रोकने के लिए उत्तराखंड की जेलों में बंद सजायाफ्ता कैदी व विचाराधीन बंदियों को रिहाई की प्रक्रिया शुरू हो गई है।
नैनीताल, जेएनएन : कोरोना संक्रमण रोकने के लिए उत्तराखंड की जेलों में बंद सजायाफ्ता कैदी व विचाराधीन बंदियों को रिहाई की प्रक्रिया शुरू हो गई है। सर्वोच्च न्यायालय के दिशा-निर्देश पर गठित समिति की विडियोकॉन्फ्रेसिंग से हुई बैठक में तय हुआ कि सात साल या इससे कम सजा वाले अपराध के कैदी व बंदियों को पैरोल या अंतरिम जमानत पर रिहा किया जाएगा। बंदी व कैदियों को ऑनलाइन आवेदन जिला एवं सत्र न्यायाधीश कोर्ट में करना होगा, जबकि डीएम, एसपी,एसएसपी घर तक छोड़ने का इंतजाम करेंगे। इस प्रक्रिया में सोशल डिस्टेंसिंग व लॉकडाउन के नियमों का कड़ाई से अनुपालन करना होगा।
राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण के कार्यपालक अध्यक्ष न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया की अध्यक्षता में हुई बैठक में तय हुआ कि राज्य में सात साल या इससे कम सजा के अपराध वाले 264 कैदी व 627 विचाराधीन बंदी हैं। जो पैरोल या अंतरिम जमानत की परिधि में आते हैं। जबकि 36 बीमार कैदी हैं। इन्हें उपचार मुहैया कराने के निर्देश सरकार को दिए गए। साथ ही आइसोलेशन में भेजने की सिफारिश को गई है। बैठक में राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण सदस्य सचिव डॉ जीके शर्मा, एडीजी कारागार आदि मौजूद रहे।
सुप्रीम कोर्ट ने स्वत: लिया था संज्ञान
पिछले दिनों सुप्रीम कोर्ट ने जेल में बंद कैदियों की कोरोना से सुरक्षा के इंतजामों पर स्वत: संज्ञान लेकर शुरू की गई सुनवाई में कहा था कि संविधान के अनुच्छेद 21 में मिले जीवन के अधिकार के तहत यह सुनिश्चित किया जाना जरूरी है कि कोरोना संक्रमण जेलों में न फैले। कोर्ट ने जेलों में भीड़ कम करने के लिहाज से ये आदेश जारी किए हैं ताकि कैदियों के बीच निश्चित दूरी सुनिश्चित हो और उन्हें संक्रमण से बचाया जा सके। ध्यान रहे कि कुछ दिन पहले ईरान में बड़ी संख्या में कैदियों की रिहाई की गई है।
जेलों में क्षमता से ज्यादा भीड़ गंभीर चिंता का मुद्दामुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ ने आदेश में कहा था कि जेलों में क्षमता से ज्यादा भीड़ गंभीर चिंता का मुद्दा है। विशेषतौर पर कोरोना महामारी को देखते हुए। कोर्ट ने प्रत्येक राज्य और केंद्र शासित प्रदेश को एक हाईपावर कमेटी गठित करने का आदेश दिया। इस कमेटी में स्टेट लीगल सर्विस कमेटी के अध्यक्ष, प्रिंसिपल सेक्रेटरी गृह या जेल और डीजीपी कारागार को शामिल करने के लए कहा था। कोर्ट ने कहा कि यह हाईपावर कमेटी तय करेगी कि किस श्रेणी के कैदियों को अंतरिम जमानत या पैरोल पर कितने समय के लिए रिहा किया जा सकता है। कोर्ट ने कहा कि उदाहरण के तौर पर उन कैदियों की रिहाई पर विचार हो सकता है जो सात साल या उससे कम सजा के जुर्म में दोषी या विचाराधीन हैं। या जो लोग कानून में तय अधिकतम सजा से कम सजा पाए हैं।
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