फूल काश्तकारों की किस्मत बदलेगी लिलियम, ट्यूलिप, ग्लेडियोलस प्रजाति, हलद्वानी में प्रयोग सफल
हॉलैंड साउथ अफ्रीका उत्तरी अमेरिका व एशिया में होने वाली सजावटी (कट फ्लावर) फूलो की प्रजातियों को हल्द्वानी की जमीन भी रास आने लगी है।
By Skand ShuklaEdited By: Updated: Thu, 19 Mar 2020 06:59 PM (IST)
हल्द्वानी, गोविंद बिष्ट : हॉलैंड, साउथ अफ्रीका, उत्तरी अमेरिका व एशिया में होने वाली सजावटी (कट फ्लावर) फूलो की प्रजातियों को हल्द्वानी की जमीन भी रास आने लगी है। हॉलैंड के ट्यूलिप के बाद वन अनुसंधान केंद्र (एफआरसी) ने ग्लेडियोलस व लिलियम के लिए भी अनुकूल वातावरण तैयार कर सफल प्रयोग किया है। यहां नर्सरी में इन दिनों तीनों प्रजातियों के फूल खिले हुए हैं। विभाग का मकसद इन महंगे सजावटी फूलों के अधिकाधिक उत्पादन से काश्तकारों को आर्थिकी मजबूत करने की जानकारी देना है।
हल्द्वानी का वातावरण, तापमान और मिट्टी अनुकूल हॉलैंड के ट्यूलिप को भारत में सबसे पहले कश्मीर में लगाया गया था। जिसके बाद उत्तराखंड में सर्वाधिक ऊंचाई (2500 मीटर) वाले पिथौरागढ़ जिले में इसका ट्रायल किया। जो सफल रहा। इसे देखते हुए वन अनुसंधान केंद्र ने पिछले साल ट्यूलिप के साथ-साथ 16 से 25 डिग्री सेल्सियस तापमान में उत्पादित होने वाले अफ्रीकन ग्लेडियोलस या आइरिश व यूरोप और एशिया के लिलियम पर प्रयोग किया। समुद्र तल से 425 मीटर ऊंचाई पर स्थित हल्द्वानी के वातावरण, तापमान और मिट्टी आदि का विशेष ख्याल रखते तीनों प्रजाति खिल उठी हैं। अनुसंधान केंद्र के रेंजर मदन बिष्ट ने बताया कि नर्सरी में प्रायोगिक सफलता के बाद अब इसे विस्तार दिया जाएगा।
पारंपरिक फूलों से ज्यादा मुनाफा वन अनुसंधान केंद्र द्वारा इन प्रजातियों को तैयार करने का मकसद खूबसूरत नर्सरी तैयार करने से इतर काश्तकारों को इनके आर्थिक लाभ के प्रति जागरूक करना है। उत्तराखंड में पारंपरिक फूलों की खेती की अपेक्षा इनकी खेती कई गुना अधिक मुनाफा देने वाली होगी। बड़े शहरों में कॉमर्शियल फूलों के तौर पर तीनों विदेशी प्रजातियों की काफी डिमांड है।
ट्यूलिप पहले पिथौरागढ़ में लाया गया कश्मीर में बड़ी मात्रा में हॉलैंड के ट्यूलिप की खेती की जाती है। वन अनुसंधान केंद्र की टीम ने वहां से लाकर पहले पिथौरागढ़ में रिसर्च में किया। उसके बाद हल्द्वानी में पौध लगाई। तीनों सर्दियों के अंत में खिलने वाले पौधे हैं। हालांकि इस बार ठंड लंबी खिंचने के कारण यह कुछ देरी से खिले।सुधरेगी किसानों की आर्थिकी
संजीव चतुर्वेदी, वन संरक्षक (अनुसंधान) ने बताया कि बाजार में इन प्रजातियों के फूलों की साल भर डिमांड रहती है। खेती करने पर यह काश्तकारों की आर्थिकी का सशक्त जरिया बन सकता है। अनुसंधान केंद्र इनकी पैदावार से जुड़ी जानकारी इसी नर्सरी के माध्यम से देगा। अब राज्य के अन्य हिस्सों में भी यह प्रयोग किया जाएगा।यह भी पढ़ें : पंचाचूली ग्लेशियर तक पहुंचने में इस बार ग्लेशियर ही बनेंगे पर्यटकों की राह में बाधा
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